Meerut : डंडे के बड़े-बड़े गुण हैं. हमारे देश में डंडा रखना बिना लाइसेंस का जन हथियार है. बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने तो डंडे को ही अपना स्टेट्स सिंबल बना दिया था. लालू यादव ने पटना में लाठी रैली करके इसके गुण गिनाए थे. आरएसएस अपने स्वयंसेवकों को डंडा कौशल सिखाता है. ऋषि-मुनि भी हाथ में दंड लेकर चलते थे. इस डंडे की क्वालिटी से यूपी सरकार के नगर विकास मंत्री आजम खां भी नतमस्तक हैं. उनका कहना है ‘डंडा हाथ में रखिये तब अफसरान सुनेंगे.’ मंत्री जी के इस डायलाग पर पब्लिक अमल करे तो क्या होगा? यही जानने की कोशिश की आई नेक्स्ट ने...


संडे हो या मंडे, हाथ में रखे डंडेशहर के अधिकारी सकते में हैं कि उनके मंत्री ने आखिर ऐसा क्यों कह दिया! दरअसल डंडे को रखना कोई कानूनी जुर्म भी नहीं है। किसी तरह की परमीशन और लाइसेंस की जरूरत भी नहीं होती। डंडा लेकर चलना हमारी पुरानी परंपरा भी रही है। और डंडा रखने भर से ही काम हो जाए तो लेकर चलने में शर्म कैसी?डंडे के फायदेकल्पना कीजिए। आप लाइसेंस बनवाने के लिए डंडा लेकर आरटीओ चले गए। वहां फार्म लिया। फीस जमा की। अगर दो दिन बाद भी काम नहीं हुआ और डंडा लेकर पहुंच रहे हैं तो निश्चित तौर पर असर पड़ेगा। हां, इतना ध्यान रखें डंडा ना चलाएं, धमकाएं भी नहीं। नहीं तो आपके खिलाफ सामने वाला केस दर्ज करा सकता है। केवल साथ रखेंं इस डंडे में इतनी आंच होती है कि उससे ही काम हो जाता है।


बोले डीएम साहबक्या पब्लिक के डंडा लेकर सरकारी दफ्तरों में पहुंचने पर आसानी से काम हो जाएगा? सवाल सुनकर डीएम हंसते हैं। फिर कहते हैं। अब मैं इस पर क्या कहूं फिर एक बार हंसते हैं। फिर कहा, मैं इस पर कोई कमेंट नहीं करूंगा। हंसते हैहर जगह नहीं चलेगा डंडे का फॉर्मूला

मंत्री जी के डंडा शास्त्र पर जब आई नेक्स्ट ने शहर के कुछ अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कुछ इस तरह राय दी।'अब मंत्री जी ने ऐसा क्यों और किनके लिए कहा मुझे पता नहीं। जब वो मेरठ आए थे तो प्रशासन की काफी तारीफ करके गए थे। वैसे भी हमारे यहां ऐसी कोई नौबत नहीं आने वाली है। कुछ अधिकारी हैं जिनका बिहेवियर पब्लिक के प्रति सही नहीं है। उन्हें अपने अंदर सुधार करने की जरुरत है। क्योंकि हम पब्लिक के ही रुपयों से ही सैलरी पा रहे हैं.'- राजकुमार सचान, नगर आयुक्त'अपने यहां तो काफी अच्छा काम चल रहा है। मैं तो किसी तो दोबारा फोन करने की नौबत नहीं आने देता। पूरा काम फिट करके रखता हूं। वैसे भी हमारे डिपार्टमेंट में इस तरह की नौबत नहीं आएगी.'-डॉ। राजबीर सिंह, एनएसए'हमारे यहां तो काफी परफेक्ट काम चल रहा है। ऐसी वक्त तो कभी नहीं आएगा कि पब्लिक हमारे दरवाजों के बाहर डंडे लेकर खड़े हों.'-ओम प्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार, सीसीएसयू 'देखिये सभी काम करने का तरीका अलग-अलग होता है। आजम खां साहब मंत्री हैं। कुछ कह सकते हैं। उनके बयान के बारे में हम क्या कह सकते हैं.'

-यशपाल सिंह, चीफ टाउन प्लानर, एमडीए'मैं तो इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता कि डंडे के बल पर सभी काम हो जाएंगे। हर जगह अलग माहौल होता है। काम हमेशा प्यार से ही होता है। और बात रही मेरे डिपार्टमेंट की तो मैं जब तक हूं ऐसा माहौल कभी पैदा नहीं होने दूंगा.'-डॉ। विनय अग्रवाल, प्रिंसीपल, मेडिकल कॉलेज 'अब डंडे से तो कोई काम नहीं हो सकता है। वैसे भी हमारे यहां तो ऐसी कोई नौबत नहीं आएगी। पब्लिक को पूरी सुविधा मिल रही है। अगर कोई शिकायत होती है तो तुरंत दूर कर दी जाती है.'- डॉ। अमीर सिंह, सीएमओ डंडे लेकर चलने का फायदा1 - डंडा लेकर निकलने पर कोई आंख उठाकर देखने की हिमाकत नहीं करेगा2 - डंडा देखकर कोई दंबग अपनी दबंगई नहीं दिखा सकेगा।3 - चेन स्नेचर डंडा देखकर चेन स्नेचिंग से पहले दस बार सोचेगा।4- लुटेरे लूट करने के लिए पास आने को घबराएंगे।5- डंडे से लफंगों को लड़कियां अच्छी तरह सबक सिखा सकती हैं।6- डंडा रखने से किसी बेकाबू जानवर से बच सकेंगे।
7- बंदूक, कïट्टा, पिस्टल भूल से भी चल गया तो जान जा सकती है लेकिन डंडा केवल रखने भर से ऐसा कोई रिस्क नहीं है।नब्बे रुपए का डंडामेरठ। डंडा बाजार में तेजी आ गई है। लगता है ये आजम खां के बयानों का असर है। कल तक पचास रुपए का मिलने वाली बेंत नब्बे रुपए की मिल रही है। सदर बाजार के एक दुकानदार ने बताया कि मजबूत और हल्के बेंत की काफी डिमांड है।हर हाथ में डंडाघर के बालिग सदस्य डंडा रखना शुरू करे तो दस से बारह लाख लाख डंडे चाहिए। बाजार में इतने डंडे उपलब्ध नहीं हैं। दुकानदारों का कहना है कि अगर मांग बढ़ी तो इसे मंगाने में कुछ दिनों का वक्त लगेगा।

Posted By: Inextlive