प्रयागराज में मुंडन संस्कार के बाद काशी में पिंडदान के बाद गया में पितरों के बैठाने का विधान तीन सूत्र से काम करने पर पितरों को मिलती है मुक्ति वंशजों को मनचाहा फल प्रयाग को पितृ मुक्ति का पहला द्वार काशी को मध्य और गया को अंतिम द्वार माना जाता है


वाराणसी (ब्यूरो)पितृपक्ष में कई लोग सीधे गया में जाकर पितरों को बैठाने के बाद सोचते हैं कि उनके पितर अब परेशान नहीं करेंगे तो ऐसा नहीं है। यह बहुत बड़ी भूल होगी। पितरों को पिंडदान के तीन सूत्रों में पूजन का विधान है। प्रयाग मुंडे, काशी पिंडे, गया दंडे। यानि सबसे पहले प्रयागराज में जाकर बाल मुंडवाने की प्रथा है। इसके बाद काशी के पिशाचमोचन में पिंडदान करने के बाद गया में पितरों को बैठाने का विधान है। ऐसा करने के बाद भी पितर आपको फल देते है.

वाया काशी होकर गया

पिंडदान करने के लिए गया जाने का रास्ता काशी होकर ही जाता है। इसलिए पितृपक्ष में पितरों को गया बैठाने से पहले प्रयागराज जरूर जाएं, इसके बाद काशी में आकर पिशाच मोचन में पिंडदान करें, इसके बाद गया जाकर पितरों को बैठाने का विधान है। लेकिन इसके बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। पितृपक्ष में काशी के पिशाच मोचन कुंड में आकर तर्पण, पिंडदान, त्रिपिंडी करने के बाद चले जाते है। यहीं वजह है कि उनके पितर खुश नहीं होते है और उनका परिवार हमेशा परेशान रहता है।

पहले पिशाचमोचन में पिंडदान फिर गया में श्राद्ध

पितृपक्ष में पिशाचमोचन कुंड पर पितरों को पिंडदान करने वालों की भीड़ बढ़ गयी है। प्रहलादघाट से लेकर अस्सी घाट तक तर्पण, अर्पण और पिंडदान करने वालों की भीड़ आ रही है। बाल मुंडवाने के बाद तर्पण का विधान से सुबह से शुरू हो रहा है तो शाम तक चल रहा है। इनमें कई ऐसे भी है जो यहां पिंडदान करने के बाद सीधे गया में अपने पितरों को बैठाने चले जाते है। इसलिए गया जाने से पहले अपने किसी पुरोहित या फिर कर्मकांडी ब्राह्मïण से इसके बारे में जानकारी ले लेनी चाहिए.

काशी में मोक्ष

कर्मकांडी पुरोहित शिव कुमार तिवारी का कहना है कि काशी में मृत्यु को खास माना जाता है। पितरों को पिंडदान करने से प्रयागराज में जाकर मुंडन संस्कार कराना चाहिए। इसके बाद काशी में पिंडदान किया जाता है। प्रयाग को पितृ मुक्ति का पहला और सबसे मुख्य द्वार माना जाता है। काशी को मध्य और गया को अंतिम द्वार कहा जाता है। प्रयाग में श्राद्ध कर्म का आरंभ मुंडन संस्कार से होता है। यहां मुंडन के बाद बालों का दान किया जाता है.

तर्पण करने की परंपरा

उसके बाद तिल, जौ और आटे से 17 पिंड बनाकर विधि विधान के साथ उनका पूजन करके उन्हें गंगा में विसर्जित करने और संगम में स्नान कर जल का तर्पण किए जाने की परंपरा है। त्रिवेणी संगम में पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ ही प्रयाग में वास करने वाले 33 करोड़ देवी-देवता भी पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं। पिशाचमोचन कुंड पर लोग अपने परिजनों के आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। वैसे तो यहां पितरों के तर्पण करने वाले रोज ही यहां आते हैं। किन्तु मान्यता है कि पितृपक्ष में तर्पण करने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है। पितृपक्ष में पूर्वजों को याद करके पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है।

त्रिपिंडी और श्राद्ध

पिशाचमोचन कुंड एक ऐसा स्थान है, जहां के बारे में मान्यता है कि इस कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पूर्वजों को प्रेत-आत्माओं की बाधा और अकाल मृत्यु से होने वाली व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। यही वजह है कि पितृपक्ष में हजारों पितरों की शांति के पिंडदान करने को पहुंचे हंै.

गया में पितरों को बैठाने से पहले प्रयागराज में मुंडन संस्कार कराने का विधान है। इसके बाद काशी में पिंडदान के बाद ही गया में बैठाने का विधान है, तभी पितर खुश होते हंै.

पंशिव कुमार तिवारी, श्राद्धकर्म पुरोहित

Posted By: Inextlive