Varanasi : कुछ महीने पहले टै्रफिक पुलिस ने एक के बाद एक तमाम इंतजाम कर डाले. सिग्नल लाइट्स लगवाए गए. जहां डिवाइडर नहीं था वहां रोड्स को गोलार्ड कोन और प्लास्टिक चेन से बांधा गया. एडवांस बैरियर लगाये गये. जेब्रा लाइन बनायी गयीं. दुकानों के आगे पार्किंग के लिये मार्किंग की गयी. इसके लिये टै्रफिक पुलिस ने दस लाख रुपये खर्च किये. एनजीओ आदि से हेल्प ली. सिग्नल लाइट्स भी लगायी गईं. इन पर 28 लाख रुपये खर्च हुये. लगा कि अब टै्रफिक की व्यवस्था मुम्बई-दिल्ली जैसी एडवांस हो जाएगी. समय बीता और देखते ही देखते टै्रफिक का सारा सिस्टम कोलैप्स कर गया. फिर से सिटी की गाडिय़ां टै्रफिक पुलिस के हाथ के इशारे से दौडऩे लगी हैं.


टूट गयी सिग्नल लाइट-एक साल पहले सिटी के अंधरापुल, चौकाघाट, मलदहिया, कचहरी समेत एक दर्जन चौराहों पर टै्रफिक सिग्नल लगाये गये-ये बेहद एडवांस सिस्टम इलेक्ट्रिक और सोलर एनर्जी से चलने वाले थे-शुरू के कुछ दिन यह अपनी मर्जी से चलते रहे-तीन महीने पहले एसएसपी ने इन्हें बंद करा दिया-सिग्नल तो नहीं चालू हुआ लेकिन पोल पर टंगे सिग्नल टूटने लगे हैै-तेलियाबाग, कैंट, गोदौलिया आदि पर सिग्नल लाइट्स टूट गए हैंनजर नहीं आ रही जेब्रा लाइन-हर चौराहे के आगे जेब्रा लाइन बनायी गयी-इसका ऐम टै्रफिक के दौरान व्हीकल्स को जेब्रा लाइन के पहले रोकना था-कुछ दिनों तक इस पर काफी सख्ती रही-होमगार्ड के जवान टै्रफिक को जेब्रा लाइन के आगे किसी को नहीं जाने देते थे-वक्त बीता और जेब्रा लाइन के नियम पर किसी का ध्यान नहीं रहा


-अब जेब्रा लाइन भी नजर नहीं आती है। जिसकी मर्जी जहां तक अपने व्हीकल को लेकर चला जाता है। गुम हो गये गोलार्ड कोन-सिटी की तमाम रोड्स पर डिवाइडर नहीं हैं-इसका फायदा उठाते हुये लोग जिधर से चाहे आते और जाते थे-इसे रोकने के लिये टै्रफिक पुलिस ने लहुराबीर, कबीरचौरा, इंग्लिशिया लाइन, कैंट स्टेशन समेत दो दर्जन से अधिक रोड्स पर गोलार्ड कोन लगा दिया

-गोलार्ड कोन को प्लास्टिक की चेन से बांधा गया-एक-दो महीने तक सब कुछ ठीक रहा -सबसे पहले प्लास्टिक चेन गायब हुई फिर गोलार्ड कोन गायब हो गये-अब कहीं-कहीं गोलार्ड कोन रस्सी से बंधे नजर आते हैं-अब सब पहले की तरह आते-जाते हैं।बदहाल हैं बैरियर-जिन प्लेसेज पर गोलार्ड कोन से काम चलने वाला नहीं था वहां पर बैरियर लगाया गया-कचहरी, पुलिस लाइन, लहुराबीर, कबीरचौरा, गोदौलिया, सिगरा समेत कई प्लेस पर इन्हें लगाया गया-लोहे की भारी-भरकम बैरियर से पार होकर दूसरे लेन तक जाना बेहद मुश्किल था-छुïट्टा पशुओं और हैवी व्हीकल की मार से बैरियर टूट गये-टूटी-फूटी बैरियर अब टै्रफिक के लिये प्रॉब्लम बन गये हैंपïिट्टयों का कहीं पता नहीं-सिटी की सबसे बड़ी प्रॉब्लम पार्किंग की है -रोड साइड गाडिय़ों को खड़ा करना लोगों की मजबूरी है-व्हीकल बेतरतीब खड़े न हों इसके लिये पूरी सिटी में रोड साइड में व्हाईट लाइन मार्किंग की गयी-रूल बना कि व्हीकल लाइन के अंदर खड़ी होनी चाहिये। बाहर रहीं तो चालान होगा-कुछ गाडिय़ों का चालान भी हुआ -कुछ दिनों बाद न तो इस बात का ध्यान टै्रफिक पुलिस को रहा और न ही पब्लिक कोनहीं नजर आ रहे ऑटो स्टैण्ड

-पांच हजार लीगल और पांच हजार इललीगल ऑटो की बेलगाम बाढ़ टै्रफिक के लिये सबसे बड़ी प्रॉब्लम है-हर आधे किलोमीटर पर ऑटो स्टैण्ड बना हुया है जो रोड के एक बड़े हिस्से को घेरे हुये है-ऑटो स्टैण्ड को लिमिटेड करने के  लिये गोदौलिया, कचहरी, कैंट, लंका समेत दस स्थान निर्धारित किये गये-यलो लाइन से इनकी सीमा बनायी जाना तय किया गया-यह प्लैन कामयाब नहीं हो सका और ऑटो बेलगाम ही रहेव्हील क्लैम्प ने किया कबाड़ा-रोड साइड व्हीकल खड़ी कर टै्रफिक जाम करने वालों पर लगाम के लिये टै्रफिक पुलिस ने व्हील क्लैम्प लगाने का उपाय खोजा-टै्रफिक पुलिस ने लोकल पुलिस के साथ मिलकर व्हील क्लैम्प लगाने की मुहिम छेड़ दी-व्हील क्लैम्प लगे हर व्हीकल से पांच सौ रुपये फाइन वसूला जाने लगा-व्हील क्लैम्प लगाने का तरीका वसूली का तरीका बन गया-इससे बचने के लिये टै्रफिक पुलिस अब व्हील क्लैम्प से बचने लगी है

Posted By: Inextlive