गर्मी में हर साल पानी की क्राइसिस आम है। अनियोजित निर्माण से लेकर पानी की बर्बादी रोकने के लिए सरकार के पास कोई पॉलिसी नहीं है। जिसके कारण बड़ी मात्रा में पानी का दुरुपयोग हो रहा है। सिटी में तमाम उद्योगों से लेकर सिंचाई समेत डेयरी संचालन में पानी का मिसयूज हो रहा है। जगह-जगह बर्बादी के कारण पानी की कमी हो रही है। एक्सपर्ट का कहना है इस पर सरकार को नियंत्रण लगाना चाहिए। 2019 से जल संस्थान की ओर से वाटर पॉलिसी भी तैयार है। लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका। यहीं कारण है लाखों लीटर पानी रोजाना बर्बाद हो रहा है।

देहरादून (ब्यूरो) दून की आबादी 14 लाख के पार पहुंंच गई है। जल संस्थान के मानकों के अनुसार 135 लीटर पानी प्रति व्यक्ति को रोजाना चाहिए, लेकिन कई जगहों पर 50 लीटर से भी कम पानी मिल रहा है। जल संस्थान के अधिकारियों के मुताबिक शहर के कई इलाकों में तेजी से बसावट हो रही है, जिससे पानी पर निर्भरता भी बढ़ रही है। पानी का दुरुपयोग भी बढ़ रहा है। लोग पीने के पानी को कार वाशिंग, सिंचाई आदि में इस्तेमाल कर रहे हैं, इसको लेकर पब्लिक को भी अवेयर होना चाहिए। इसके साथ ही जल संस्थान के अधिकारियों की मानें तो संस्थान की ओर से कॉमर्शियल कनेक्शन पर रोक लगाई गई है।

इन एरिया में पानी कम
वसंत विहार, इंदिरा नगर, इन्दिरा पुरम, कृषाली गांव, राजपुर, ऋषिविहार, ठाकुरपुर, आसन एरिया, राजेंद्र नगर, मसूरी रोड, सहस्रधारा रोड, झाझरा, कैनाल रोड, जाखन

क्राइसिस के यह कारण
- बढ़ता अर्बनाइजेशन
- इलीगल बोरिंग
- रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं
- पेड़ों का कटान
- खत्म होती खेती

यहां मिसयूज होता है पानी
-पीने के पानी से गाडिय़ों की धुलाई।
-डेयरियों में पशुओं को नहलाना।
-आरओ में फिल्टर के लिए हजारों लीटर पानी की बर्बादी।
-कूलर के इस्तेमाल से पानी की बर्बादी।
-वाटर पाक्र्स में पानी की बर्बादी।

एक नजर
-सिटी में करीब 1.80 लाख आवास
- आरटीओ में 9 लाख वाहनों की संख्या रजिस्टर्ड
- एक घर में दो से चार वाहन
- वाहनों को धोने के लिए होता है पीने के पानी का इस्तेमाल।
-आकड़ों पर जाए तो रोजाना धूलती हैं, 18 हजार से ज्यादा गाडिय़ां।
-एक गाड़ी को धोने के लिए इस्तेमाल होता है 50 से 75 लीटर पानी।

वाटर पॉलिसी पेंडिंग
20 दिसंबर 2019 को तत्कालीन सचिव डॉ। भूपेन्द्र कौर औलख ने जल संस्थान के नियोजन, विकास एवं प्रबंधन के लिए ढांचा तैयार करने के साथ ही सुरक्षित व शुद्व पेयजल, स्वच्छता, सिंचाई, वनीकरण व जैव विविधता के साथ कृषि के लिए उत्तराखंड जल नीति 2019 तैयार की गई थी। जिसके तहत जल के इस्तेमाल के लिए एनओसी की शर्तों का पालन करना जरूरी होगा। एनओसी का पालन न करने के एवज मेंं मोटा जुर्माना भुगतना पड़ेगा। इस पॉलिसी के तहत जुर्माने की रकम 50 हजार रुपये से शुरू होकर 1 करोड़ रुपये तक रखी गई है। जबकि निति तैयार होने के बाद भी इसे बीते चार 5 सालों से लागू नहीं किया जा रहा हैं।


डेयरी संचालक व आरओ प्लांट समेत गाडिय़ों के धोने वाले गैराज में कॉमर्शियल कनेक्शन होता है। इसके बाद भी अगर कोई प्राइवेट कनेक्शन पर इनका संचालन करता है तो उनका चालान किया जाता है। पानी जरूरी है। ये बात सभी को समझनी होगी। सामूहिक तरीके से पानी को बचाया जाना जरूरी है।
विनोद रमोला, एसई, जल संस्थान देहरादून

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Posted By: Inextlive