..अर्द्धकुंभ निपटते ही धर्मनगरी में पसरा सन्नाटा
- बाजारों से गायब हुई रौनक, चौक-चौबारे सूने
- अर्द्धकुंभ की ड्यूटी पर आए अधिकारियों का कार्यकाल भी हुआ समाप्त HARIDWAR: धर्मनगरी हरिद्वार में छह साल में एक बार होने वाले अर्द्धकुंभ खत्म होने के बाद रौनक व उल्लास पूरी तरह गायब हो गया है। अलग-अलग स्थानों पर सजे पड़े चौक सूने होते जा रहे हैं। बस अड्डा भी पुरानी जगह चला गया है। सांस्कृतिक पंडाल हट चुका है। मेले की सारी व्यवस्थाएं समाप्त हो गई हैं। इसके साथ ही अधिकारियों का भी कार्यकाल खत्म हो गया है। धर्मनगरी से गायब हुई रौनकहरिद्वार में गंगा के पावन तट पर लगने वाले कुंभ-अर्द्धकुंभ केवल स्नान की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं होते। चार माह तक चलने वाले मेले में धर्म-संस्कृति, रोजगार-व्यापार व पर्यटन की अपार सम्भावनाएं भी उड़ान भरती हैं। यहां जुटने वाली करोड़ों श्रद्धालुओं के आवागमन से स्थानीय व्यापारियों को जो मुनाफा होता है, उसके लिए उन्हें लम्बे समय तक इंतजार करना होता है। साधु-संतों व आम लोगों को इस दौरान कथा-प्रवचनों व सत्संग का मौका भी मिलता है। इतना ही नहीं अर्द्धकुंभ की झलक को पाने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में सैलानी भी आते हैं। एक जनवरी से शुरू होकर फ्0 अप्रैल तक चले अर्द्धकुंभ की रौनक अब धर्मनगरी से गायब हो चुकी है। पंतद्वीप, चंडीद्वीप, गौरीशंकर, रोड़ी बेलवाला, ऋषिकुल, धीरवाली व हर की पैड़ी के निकट लगे पुलिस के कैंप भी हट गए हैं। सुंदर सा लगने वाला शहर बेजान सा नजर आ रहा है।
प्रवेश द्वार में भी पसरा सन्नाटा दिल्ली-देहरादून रोड पर सिंहद्वार को मेला प्रशासन भी अर्द्धकुंभ का प्रवेश द्वार मानता है। मेले के लिए सजाया गया प्रवेश द्वार सूना पड़ा हुआ है। यही हाल देहरादून की ओर से पड़ने वाले प्रवेश द्वार का भी है। देहरादून से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रवेश द्वारा सप्तत्रऋषि चौक से माना जाता है पहले लाइटों और हो¨डग से सजा प्रवेश द्वार अब सूने हो गए हैं। हट गई प्रदर्शनियां, उजड़ गए पंडालमेले में लगाई गई प्रदर्शनी भी सैटरडे की रात को हट चुकी है। पंतद्वीप में प्रदर्शनी को जगह मिली हुई थी। जिसमें विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनी लगी हुई थी। नामिम गंगे से लेकर प्रदेश के विभिन्न स्वादिष्ट भोजन के साथ-साथ जूस, कपड़े आदि के प्रदर्शनी में स्टाल लगे हुए थे। पास में ही बना सांस्कृतिक पंडाल भी उजड़ चुका है। इस पंडाल से सूबे की विभिन्न गायकी हस्तियों ने प्रस्तुति देकर दर्शकों का मन मोहा। मेला समाप्त होने के बाद अब यह सांस्कृतिक पंडाल भी उजड़ गया है।
बदल गया बस अड्डा चार महीनों के लिए बनाया गया अस्थाई बस अड्डा आज संडे को अपनी पुरानी जगह पर चला गया। एक जनवरी को शुरू हुए अर्द्धकुंभ के मद्देनजर बस अड्डे को ऋषिकुल में शिफ्ट किया गया था। मेले की समाप्त होते ही संडे से बस अड्डे का संचालन स्थाई बस अड्डे से ही हो रहा है। सफाई कर्मचारी भी हो गए गायब मेले के मद्देनजर दो कंपनियों को मेले की सफाई व्यवस्था का जिम्मा सौंपा गया था। नगर निगम ने शहर की सफाई के लिए फ्भ्0 कर्मचारियों को इस व्यवस्था में रखा था। जोकि प्रत्येक वार्ड में जाकर सफाई व्यवस्था कर रहे थे। चार महीनों तक दो भागों में बांटकर शुलभ व स्पर्श गंगा कंपनियों ने शहर की सफाई व्यवस्था नगर निगम के कर्मचारियों के साथ मिलकर संभाली। हालांकि, इसमें नगर निगम के कर्मचारियों का खासा रोल नहीं रहा था। लेकिन, अब कंपनियों का समय खत्म हो चुका है। आज शहर में कई इलाकों में कर्मचारी ही नजर नहीं आए। अचानक से कर्मचारी कम होने का असर सफाई व्यवस्था पर दिखाई दे रहा है।