GORAKHPUR: इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी हर साल भ्00 से अधिक लोगों को मौत के आगोश में ले जा रही है तो ट्रामा सेंटर के अभाव में एक्सीडेंट के दौरान मौत की घटनाएं बढ़ रही है। एम्स की जरूरत है, मगर सिर्फ वादों और कहावतों में ही बन रहा है। इसलिए इस इलेक्शन में गोरखपुराइट्स ने तय किया है कि वोट उसी को देंगे, जो गोरखपुर को समझेगा।

सड़कों पर मेडिकल वेस्ट

एम्स की बातें तो होती हैं, लेकिन गोरखपुर में मेडिकल वेस्ट के रिसाइकिलिंग की व्यवस्था नहीं है। कई नर्रि्सग होम और अस्पताल सड़कों पर ही मेडिकल वेस्ट फेंक देते हैं। इनके बैक्टिरिया हवा में उड़ते हुए हमारे शरीर में दाखिल हो जाते हैं और हमारे शरीर को कई गंभीर बीमारी दे जाते हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, फीमेल डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में तो एक कंपनी मेडिकल वेस्ट लेने आती है। कुछ ऐसी ही व्यवस्था मेडिकल कॉलेज की भी है। मगर कभी-कभी विवाद के कारण वहां का मेडिकल वेस्ट सड़कों तक आ जाता है।

बिना स्पेलिस्ट के कैसे बनेगा एम्स?

गोरखपुर को एम्स की जरूरत है। सभी नेता बड़े-बड़े वादे भी करते हैं, मगर हकीकत सिर्फ हवा तक रहती है। एम्स के अभाव में सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है। यही नहीं सिटी में अधिकांश स्पेशलिस्ट की भी कमी है। जिसके लिए गोरखपुराइट्स को लखनऊ, वाराणसी और दिल्ली, मुंबई जाना पड़ता है। सिटी में इंडोक्राइनोलॉजिस्ट, इंडोक्राइन सर्जन, कार्डियोथोरेपिक एंड वेसकुलर सर्जन, नेफ्रोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिक सर्जन, पीडियाट्रिक एनेस्थेटिक और आंको सर्जन की कमी है। जिनके अभाव में कई लोगों की जान चली जाती है।

कहां से निकलता है कितना वेस्ट

एक्सपर्ट के मुताबिक एक पेशेंट के इलाज के दौरान लगभग क् किलो बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है। गोरखपुर में डेली करीब क्000 मरीजों का इलाज होता है। इस हिसाब से परडे दस कुंटल बायो मेडिकल वेस्ट निकलता है।

खतरनाक है ग्राउंड वॉटर

बायो मेडिकल वेस्ट खुलेआम फेंका जाता है। जो स्वीपर उठाकर नदी या नालों के किनारे फेंक देते हैं। इसके चलते ग्राउंड वाटर भी प्रदूषित हो रहा है। जो फ्यूचर में जानलेवा साबित हो सकता है। वहीं कुछ नर्सिगहोम खुद को बचाने के लिए बायो मेडिकल वेस्ट को बिना किसी सुरक्षा के जला देते हैं, इससे एयर में कई वायरल और बैक्टीरिया फैल जाते है, जो गंभीर बीमारी को फैला सकते हैं।

पांच तरह के होते हैं मेडिकल वेस्ट

पैथालॉजिकल वेस्टेज - ट्यूमर, टिशू, ब्लड कॉटन, एप्रेन, एनाटमिकल वेस्ट तथा सर्जरी के बाद काटे गए ह्यूमन बॉडी के पॉ‌र्ट्स।

प्लास्टिक वेस्टेज - सीरिंज, ब्लड पैक, कैथेटर, ग्लब्स, ट्यूबस, केन्यूलस।

केमिकल वेस्टेज - इलाज में कई केमिकल का इस्तेमाल होता है, जो बाद में अगर खुला फेंक दिया जाए तो नुकसान कर सकता है।

साइटो टॉक्सिक वेस्टेज - कैंसर की जांच में यह वेस्ट निकलता है, जो काफी खतरनाक होता है।

रेडियोएक्टिव वेस्टेज - टिशू और बॉडी फ्लयूड जनरेट वेस्ट।

ऐसे करना चाहिए डिस्पोजल

यलो कंटेनर - बॉडी के कटे पार्ट।

ब्लैक कंटेनर - सीरिंज, ग्लब्स, ड्रिप।

रेड कंटेनर - प्लास्टर व अन्य मेडिकल वेस्ट।

इन बीमारियों का बढ़ जाएगा खतरा

कैंसर, एचआईवी, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, टीबी, टायफाइड, डायरिया, स्किन डिजीज, हैजा, आई इंफेक्शन।

निस्तारण न करना अपराध है

बायो मेडिकल वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) के क्998 के प्रोवेजन के अंतर्गत मेडिकल कचरे को खुलेआम फेंकना गैरकानूनी है। पब्लिक प्लेस, म्यूनिसिपल कारपोरेशन एक्ट, पुलिस एक्ट क्9म्9 की धारा फ्ब् के तहत यह एक अपराध है। एनवॉयरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट क्98म् की धारा क्भ् के तहत अगर कोई दोषी पाया जाता है तो उसे भ् साल की सजा हो सकती है।

Posted By: Inextlive