पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं और नवाज़ शरीफ की सरकार को लगता है कि लकवा मार गया है. तीन महीने पहले ही तो नवाज़ शरीफ उम्मीदों की लहर पर सवार होकर चुनाव जीते थे. लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर नवाज़ शरीफ से कहाँ चूक हो गई?


जब नवाज़ शरीफ प्रधानमंत्री बने थे उस वक़्त लोगों को लग रहा था कि वो पाकिस्तान को बड़ी मुश्किलों से निजात दिलाएंगे. ये मुश्किलें थीं बेकाबू चरमपंथ, चौतरफा संकट, गिरती हुई अर्थव्यवस्था, बिजली की कमी और कमजोर विदेश नीति.इसके बजाय जोर पकड़ते चरमपंथ को लेकर लोगों की बढ़ती नाराज़गी के बोझ तले नवाज़ शरीफ बुरी तरह से लड़खड़ा गए हैं. मुल्क की आर्थिक हालत खस्ता है और उनकी सरकार लाचार दिख रही है.यहाँ तक कि नौकरशाही के वरिष्ठ पद खाली हैं. सार्वजनिक निगमों के प्रमुखों की नियुक्ति नहीं की गई है और अमरीका और ब्रिटेन जैसे महत्वपूर्ण देशों में राजदूतों की तैनाती का इंतजार किया जा रहा है.


हालांकि सेना और चुनी हुई सरकार की साझीदारी को लेकर चल रही बातचीत के बहुत कम नतीजे सामने आए हैं. पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार इस बातचीत से सेना और चुनी हुई सरकार के एक ही जुबान में बात करने की उम्मीद की जा रही थी.पाकिस्तान के राजनेताओं, विशेषज्ञों और सेना से हफ्तों तक चले लंबे सलाह मशविरे के बाद नवाज शरीफ ने नौ सितम्बर को पाकिस्तानी तालिबान की चुनौती से निपटने की रणनीति की घोषणा की.

इस नीति का पाकिस्तान के सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन भी किया लेकिन ज्यादातर विशेषज्ञों और सेना ने इसे खारिज कर दिया.शरीफ की सरकार ने तालिबान को चरमपंथी संगठन घोषित करने के बजाय साझीदार घोषित कर कहा कि तालिबान से बिना शर्त बातचीत के दरवाजे खोले जाएंगे. सरकार की ओर से बुलाई गई एक सर्वदलीय बैठक में भी अमरीका और नैटो को पाकिस्तान में चरमपंथ के लिए जिम्मेदार ठहराया गया.तालिबान से बातचीतइस पर तालिबान ने 30 से ज्यादा माँगों की अपनी सूची पेश की जिसमें पाकिस्तान में इस्लामी शरिया कानून लागू करना और देश के कबाइली इलाके से सेना वापस बुलाने जैसी माँगें भी शामिल थीं.15 सितंबर को देश के सुदूर उत्तर-पश्चिमी इलाके में हुए जानलेवा बम धमाके में मेजर जनरल सनाउल्लाह खान नियाजी और एक कर्नल की मौत हो गई. तालिबान ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली और ठीक इसी दिन चार अलग अलग हमलों में सात सैनिक मारे गए.भारत की सशर्त बातचीत की पेशकश को पाकिस्तान की सेना ज्यादा तवज्जो नहीं देती. सेना का कहना है कि भारत कश्मीर जैसे विवादास्पद मुद्दों सहित बाकी तमाम मसलों पर समग्र बातचीत की शुरुआत करे. सेना ने नवाज़ शरीफ से कहा है कि वो जरूरत से ज्यादा तेजी से भारत को लेकर आगे बढ़ रहे हैं.

हालांकि 10 साल के अंतराल के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर गोली-बारी का सिलसिला जारी है. इस साल, ऐसी झड़पों में दोनों देशों के दर्जनों सिपाही और आम लोग मारे गए हैं.हाफिज सईद पर खुफिया एजेंसियों का तगड़ा नियंत्रण है और सितंबर की शुरुआत में उन्हें राजधानी इस्लामाबाद में भारत विरोधी एक बड़ी रैली करने की इजाजत दी गई.इस बीच लंबी हिचकिचाहट के बाद भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने न्यूयॉर्क में चल रही संयुक्त राष्ट्र की बैठक के दौरान नवाज शरीफ से मिलने पर सहमत हो गए हैं लेकिन भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि "हमें कुछ नतीजे चाहिए."

Posted By: Satyendra Kumar Singh