नसबंदी के बाद फिर से बनी मां
इन बच्चों का जन्म माता पिता के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है क्योंकि इनके जन्म से पहले ही शांति की नसबंदी हो चुकी थी. लेकिन फिर से गर्भवती होने के लिए आठ साल पहले उन्होंने नसबंदी पलटवाने का ऑपरेशन करवाया.इस ऑपरेशन की वजह थी 26 दिसंबर 2004 में हिंद महासागर में आई सूनामी जिसमें इस जोड़े के सभी चार बच्चों की मौत हो गई थी.उस दिन सुबह लगभग सवा आठ बजे शांति हर रोज़ की ही तरह घर का काम कर रही थीं. उनके बच्चे, पांच साल की बेटी चेरन, चार साल का बेटा चोलन और एक साल के जुड़वा बच्चे सतीश और शशिदेवी वहीं पास में खेल रहे थे. शांति के पति स्वामीनाथन भी मछली पकड़ने जा चुके थे.
अगले ही लम्हे में जो हुआ उससे इस जोड़े और दक्षिण भारत के तटीय इलाकों में रहने वाले हज़ारों लोगों की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी.शांति बताती हैं कि लाख कोशिशों के बावजूद वे सूनामी की लहरों से अपने बच्चों को नहीं बचा पाईं.
वे कहती हैं, “हर तरफ़ पानी था...लहरें इतनी ज़बरदस्त थीं कि ईंटों की दीवारें तक ढह गईं. मैं घर के अंदर थी. पानी इतनी तेज़ी से आया कि उसने मेरे बच्चों को मुझसे छीन लिया. मैं खुद ही लहरों से जूझ रही थी तो मैं बच्चों को कैसे बचाती?”सूनामी का कहर
वे कहते हैं, “राहत शिविर से लौटने के बाद मैं सोच रहा था कि वहां चिकित्सीय मदद काफ़ी है. ऐसे में बतौर डॉक्टर मैं कैसे इनकी मदद कर सकता हूं. तब मुझे कुछ साल पहले कुंबकोणम में हुए उस हादसे की याद आई जिसमें एक स्कूल में आग लगने से बहुत से बच्चों की मौत हो गई थी."वो कहते हैं, "मैंने टीवी पर उनके रोते-बिलखते मां-बाप को देखा था जो कह रहे थे कि हमने नसबंदी करवा ली थी और अब हम बच्चों के बिना कैसे रहेंगे. सूनामी के बाद मुझे ये विचार आया कि क्यों न मैं महिलाओं का नसबंदी पलटने वाला ऑपरेशन करूं ताकि ये फिर से गर्भवती हो सकें.”डॉ. नीलाकंदन ने तब इन शिविरों में रह रहे लोगों तक ये बात पहुंचाई कि जो जोड़े ऑपरेशन करवाना चाहते हैं, वे उनके लिए ये ऑपरेशन मुफ़्त में करेंगे. एक-दो ऑपरेशन सफल होने के बाद और लोगों तक ये बात पहुंची और तब आस-पास के गांवों के अलावा नागापट्टिनम जैसे दूर शहर से भी संतान के इच्छुक दंपत्ति उनके पास पहुंचे.
अगले एक-दो महीनों में डॉक्टर नीलाकंदन के पास 65-70 महिलाएं आईं जिनकी जांच के बाद उन्होंने लगभग 40-45 महिलाओं का ऑपरेशन किया. ऑपरेशन सफल हुआ है या नहीं, ये जानने के लिए उन्होंने कुछ महीने बाद एक मुफ़्त शिविर आयोजित किया. उन्होंने पाया कि लगभग 40 में से 30 के करीब महिलाओं में रीकैनेलाइज़ेशन ऑपरेशन सफल रहा.'भगवान की मर्ज़ी'जो महिलाएं ये ऑपरेशन कराने डॉक्टर नीलाकंदन के पास गईं उनमें शांति भी थीं. लेकिन ऑपरेशन सफल होने के बावजूद जब शांति गर्भवती नहीं हो पाईं तब उन्हें डॉक्टर नीलाकंदन ने उन्हें आईवीएफ़ यानी टेस्ट ट्यूब बेबी की सलाह दी. और जब ये तरीका भी असफल रहा तब शांति की उम्मीदें पूरी तरह टूट गईं.
वे कहते हैं, “इसकी वजह शायद विश्वास है. देखिए, सभी अच्छे लोग हैं, सभी भगवान की पूजा करते हैं. तो फिर सूनामी जैसी आपदा से लाखों लोग क्यों मरे? मुझे लगता है कि शांति का फिर से गर्भवती होना भगवान की मर्ज़ी थी. मैं सिर्फ़ उसकी मर्ज़ी को पूरा करने का माध्यम भर था.”आज भी आंखें नमआज शांति, स्वामीनाथन, भाग्यलक्ष्मी, शक्तिवेल और उन जैसे सैकड़ों लोग भी अपने-अपने तरीके से सूनामी को एक बुरे सपने की तरह भुलाकर आगे बढ़ चुके हैं.शक्तिवेल बताते हैं, “हर साल 26 दिसंबर को लोग मृतकों को श्रृद्धांजलि देने जाते हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं करता. मेरा परिवार जाता है लेकिन मैं नहीं.. मैं पुरानी यादें भुलाने की कोशिश कर रहा हूं.”हिंद महासागर की सूनामी के बाद रीकैनेलाइज़ेशन ऑपरेशन की वजह से बहुत से जोड़ों को फिर से 'अम्मा-अप्पा' शब्द सुनने का मौका मिला. इन ख़ुशियों से नौ साल पहले मिले दुख की कसक और टीस कम भले ही हो गई हो, लेकिन पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है.शांति बताती हैं, “हां, मैं उन बच्चों के बारे में सोचती हूं.. जब मैं उन्हें याद करके रोती हूं तो ये बच्चे मुझे घेर कर पूछते कि अम्मां क्यों रो रही हैं. मैं इनसे कुछ नहीं कहती.. मैं सिर्फ़ अपने आंसू पोंछ लेती हूं.”