लगा चुके हैं शतक
स्वतंत्रता सेनानी नसीम मिर्जा चंगेजी की उम्र 106 साल हो चुकी हैं। इसके बावजूद वह अभी भी चलने-फिरने में समर्थ हैं। चंगेजी बताते हैं कि कई लोग उनके पास आकर पूछते हैं कि आपकी लंबी उम्र का राज क्या है। तब चंगेजी सिर्फ एक जवाब देते हैं कि - कम खाओ, कम बोलो, कम सोओ और ज्यादा जियो।

कम खाओ,कम बोलो,कम सोओ और ज्‍यादा जियो : 106 साल के चंगेजी के टिप्‍स
भगत सिंह को दी थी पनाह
अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या के जुर्म में शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके दो साथियों को 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। इससे पहले लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह लाहौर से दिल्ली के लिए निकल गए थे। वह कई स्थानों पर भेष बदल कर रहे। इस कड़ी में दिल्ली भी उनका अहम पड़ाव रहा। वे यहां पुरानी दिल्ली में भी रहे। यहां पर जिस व्यक्ति ने शहीद भगत सिंह को आश्रय दिया था, वे अभी जिंदा हैं। उम्र है 106 साल और नाम है नसीम मिर्जा चंगेजी।

कम खाओ,कम बोलो,कम सोओ और ज्‍यादा जियो : 106 साल के चंगेजी के टिप्‍स
कैसे रहते थे यहां
चंगेजी साहब पुरानी दिल्ली के कूंचा घासीराम में रहते हैं। वे स्वयं में जीता जागता इतिहास हैं। प्रस्तुत है उनकी बताई कहानी उन्हीं की जुबानी। 'यह समय 1929 का था। मेरे पास बैरिस्टर आसिफ अली ने एक युवक को पैगाम के साथ भेजा, कहा कि यह आपके पास रहेगा। नाम भगत सिंह बताया गया। मैंने भगत सिंह को आश्रय दिया। वे ब्राह्मण के भेष में मेरे घर रहते थे। मैं मुसलमान हूं तो उनके भोजन के लिए बराबर की दूसरी गली में रहने वाले अपने दोस्त दयाराम से कहा। दयाराम वकालत कर रहा था। उसका परिवार संपन्न था। दयाराम के घर से भगत सिंह के लिए खाना आता था।

कम खाओ,कम बोलो,कम सोओ और ज्‍यादा जियो : 106 साल के चंगेजी के टिप्‍स
बम फेंकने की तैयारी बनी
फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में बैठक हुई। उस समय नेशनल असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई गई थी। यह काम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को सौंपा गया। भगत सिंह सुबह नाश्ता कर ब्राह्मण के भेष में निकल जाते थे और नेशनल असेंबली में मौका मुआयना करते थे कि कहां से बम फेंकने के लिए जाना है। उन्होंने एक दिन बताया कि मुझे असेंबली में प्रवेश करने का रास्ता मिल गया है। तब कहा था कि मैं बम फेंकूंगा जरूर, मगर कोई मरेगा नहीं। मेरा मकसद किसी को मारना नहीं है।

शहीद हो जाने के लिए रहते थे तैयार
उस जमाने में कोई मुखबिरी नहीं करता था। पुलिस को नहीं पता था कि भगत सिंह दिल्ली आ चुके हैं। सो पता नहीं चल सका। स्वाधीनता आंदोलन हम भी लड़ रहे थे, मगर भगत सिंह के सिर पर आजादी का जुनून सवार था। जज्बा ऐसा था कि वह तो घड़ी के चौथाई समय में भी शहीद हो जाने के लिए तैयार थे, जबकि उनसे पहले उनके साथी अशफाक उल्ला को 1927 में फांसी हो चुकी थी। भगत सिंह ने समय आने पर बम फेंका। देश को आजादी मिली। मगर वह आजादी नहीं मिली, जो भगत सिंह चाहते थे। वे चाहते थे कि सभी कौम के लोग एक साथ रहे और देश तरक्की करे।

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