कानपुर। Milind Soman book Made In India: मिलिंद सोमन की किताब मेड इन इंडिया अपने लॉन्च के साथ ही चर्चा में आ गई है। इस किताब में मिलिंद ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं के बारे में बताया है। मेड इन इंडिया में उन्होंने ये भी कहा है कि उनका राष्ट्रीय स्वयं सेवक दल यानि RSS से गहरा रिश्ता रहा है। ये बात जानने के बाद लोगों की किताब में दिलचस्पी बढ़ गई है। किताब मे मिलिंद ने लिखा है कि उनके फादर इस संस्था के सदस्य थे और इसकी आइडियलॉजी पर फेथ रखते थे। उन्होंने इससे बकायदा शाखाओ से जुड़ कर काम किया था। मिलिंद मुंबई के शिवाजी पार्क ट्रेनिंग सेंटर में जाया करते थे। उनके फादर को इस बात में बहुत ज्यादा यकीन था कि इससे युवाओं की लाइफ में अनुशासन, जीने के तरीके, फिटनेस और सोचने के ढंग में बड़े बदलाव आते हैं। उस दौर में ये सब मिलिंद के साथ के कई लड़के करते और उनकी लाइफ में शिवाजी पार्क की एक रूटीन चीज थी।

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Book Review - Roopa!! I finished reading Made in India last night. I was sad the memoir lasted only some 230 pages. I didn't want it to end at all. It is unputdownable from the start, with all that edge-of-the-seat drama running(😉) parallel in the two stories. Such an inspiring story, written so, so beautifully, so deliciously, in your inimitable style. It's so quintessentially and wonderfully Roopa-esque! 😍😘 Your language is as savoury as the person you are writing about but then, isn't it always! I don't know why Milind Soman thinks he was always lucky because clearly, he has worked very hard and consistently, always upping the ante for others and for himself. This past week, all I thought about when I wasn't reading Made in India was that I should get back to yoga, running and swimming and maybe do the triathlon one day and be an inspiration to my son, as Aai was to Soman. It's his greatness and humility to say everything fell in place serendipitiously for him but we do know that creating great fortunes for ourselves is often in our own hands. Sure, he was born with good looks and great genes but that he made that his asset and didn't squander it away or take it for granted, is rare. I'm going to read this book again. For it's compelling style, it's beautiful language and the awe-inspiring Demi-God. Congratulations to both of you, once again!♥❤💜 . . Thank you for the review @sindhu.hande 🙂

A post shared by Milind Usha Soman (@milindrunning) on Feb 22, 2020 at 4:47am PST

चिढ़ होती थी

मिलिंद ने अपनी किताब में कहा कि वो कोई बहुत अच्छा दौर नहीं था क्योंकि वे इससे खुश नहीं थे। अपने से अलग किस्म के लोगों के बीच वे साइडलाइन किया हुआ महसूस करते थे।उन्हें इस बात से बहुत चिढ़ होती थी कि उनके पेरेंटस ने उनसे बिना पूछे इन चीजों में धकेल दिया है, और वे इसका हिस्सा बिल्कुल भी नहीं बनना चाहते थे।फिर उनकी एक आंटी ने इस चीज से उनको बचाया। हालांकि इस बात से उन्हें रियलाइज हुआ कि अगर थोड़ा ध्यान से देखेंगे तो हमेशा अपने लिए किसी ना किसी को खड़ा पायेंग। यहां उन्होंने दो-तीन अच्छे दोस्त बनाए थे।

वॉक की पड़ी आदत

किताब में उन्होंने बताया तभी से रोज शाम को वॉक पर जाना उनकी आदत सी बन गई थी, और वो पूरी जिंदगी रही है। हर हफ्ते शाम 6 से 7 बजे के बीच वे शाखा जाते थे जिसके बारे में उनकी यादें पूरी तरह अलग हैं। वे अपनी खाकी शॉर्ट्स में मार्च और कुछ योग करते थे, आउटडोर जिम में कुछ थोड़ा सा वर्कआउट भी होता था। वे गाने गाते थे, संस्कृत मंत्र पढ़ते थे जिनका उन्हें मतलब भी नहीं पता होता था और अपने साथियों के साथ गेम्स खेलते थे जिसमें बहुत मजा आता था।

हिंदू होने के बारे में बात नहीं की

मिलिंद ने कहा अब जब वो मीडिया में आरएसएस को कम्युनल और नुकसान पहुंचाने वाले प्रोपैगैंडा से जुड़ा कहते हुए देखते सुनते हैं तो बहुत ज्यादा परेशान हो जाते हैं। इसके पीछे की वजह बताते हुए मिलिंद ने लिखा उनके पिता भी आरएसएस का हिस्सा रहे हैं और वह एक बहुत प्राउड हिंदू थे। वे बेशक कभी नहीं समझ पाए कि इसमें गर्व करने जैसा क्या था लेकिन उनको ये भी नहीं लगा कि इसमें कंप्लेन्ट करने जैसा क्या है। उनको नहीं पता कि उनकी शाखा के लोग हिंदू होने के बारे में क्या सोचते थे, पर ये सच था कि उन्होंने इस बारे में अपने विचार कभी उनके और बाकी साथ के लोगों के सामने कभी नहीं रखते थे। अगर उनके ऐसे कोई विचार थे तब भी।

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