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DEHRADUN: आगामी लोकसभा को देखते हुए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से लाडपुर स्थित पंचायत घर में मिलेनियल्स टॉक किया गया. यूथ ने उस प्रतिनिधि को वोट देने की बात कही, जो मंदिर, मस्जिद से हटकर बात करेगा और विकास के नाम पर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार का रूट मैप तैयार करेगा, ऐसे में अब साफ हो जाएगा कि धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले प्रतिनिधि को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. पिछले पांच सालों में सरकार अपने मेनिफेस्टो में विकास के जो प्वाइंट रखे थे. इस चुनाव जिन प्वाइंट्स पर काम नहीं हुआ है, वह भी कई अटकलें पैदा करेंगी. यूथ का कहना है कि चुनाव में सत्ता की बागडोर जिन लोगों के हाथ में रहेगी, उनको एक-एक पाई का हिसाब भी चुकाना होगा.

यूथ को लॉलीपॉप न दें
संडे को लाडपुर में हुई मिलेनियल्स टॉक में यूथ ने उन प्रतिनिधियों को सचेत किया है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के नाम पर वोट की खसोट कर सत्ता की कुर्सी पर काबिज होते थे और पांच साल बाद फिर यूथ के बीच उन्हीं मुद्दों को लेकर मैदान में उतरते थे. यूथ का कहना है इस बार ऐसे जनप्रतिनिधि का बॉयकाट किया जाएगा. ऐसे में इस बार का लोकसभा इलेक्शन हॉट रहेगा.

कड़क मुद्दा
युवा डिग्री के बोझ के तले दब गए हैं. सरकार के पास युवाओं को रोजगार देने के लिए कोई प्लेटफॉर्म तैयार नहीं किया है. सरकार ने हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन इस बार अपना वोट व्यर्थ नहीं जाने देंगे और अपना वोट को सही इस्तेमाल करेंगे.

तुषार पाल, समाज सेवी

मेरी बात
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार सरकार का चुनाव में सबसे हॉट मुद्दा रहता है. लेकिन, ये सुविधाएं आज भी आम लोगों को नहीं मिल रही है. सरकार सिस्टम के हाल बुरे हैं और प्राइवेट संस्थानों ने लूट मचा रखी है. इस बार उसी प्रतिनिधि को वोट दिया जाएगा, जो सरकारी सिस्टम को बेहतर करने की बात करेगा.

 


अंकिता, बिजनेस वुमेन

सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ
आचार संहिता लागू हो गई है. अब चुनाव प्रचार के लिए पार्टियों के प्रतिनिधि घर-घर वोट मांगने जाएंगे. पिछले चुनाव में किए गए वादे का हिसाब मांगा जाएगा. उसके बाद ही अपना वोट का यूज किया जाएगा. आम जनता को गुमराह करना आसान नहीं है.

बबीता, बिजनेस वुमेन

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दिन प्रतिदिन एजुकेशन बहुत महंगी होती जा रही है. सरकार को सरकारी सिस्टम में प्राइवेट जैसी सुविधा देना चाहिए. जिससे गरीब का बच्चा कम पैसों में डिग्री हासिल कर सके, दून की शिक्षा का हब जरूर है, लेकिन एजुकेशन लेना बहुत कठिन है. इस बार अपना वोट सही जगह यूज किया जाएगा.

तान्या , वर्किग

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प्रदेश में होने वाले एग्जाम में इंटरव्यू सिस्टम समाप्त करना चाहिए. इंटरव्यू में सबसे ज्यादा धांधली की जाती है, जिससे गरीब का बच्चा पीछे रह जाता है. इसके साथ ही जो भी भर्ती की जाती है, वह आउटसोर्स के बजाय नियमित होनी चाहिए. जिससे लोग मांगों को लेकर धरने पर न बैठना पड़े.

मनीष गुप्ता, समाज सेवी

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महिलाओं की सुरक्षा के दावे खोखले साबित हो रहे हैं. नाबालिग बच्चियों के साथ अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. जहां पुलिस का पूरा तंत्र बैठा हुआ है, यदि वहीं महिला सुरक्षित नहीं है, तो प्रदेश के अन्य जिलों का क्या हाल होगा. चुनाव से पहले सरकार को इस पर ठोस कानून लाना होगा.

ऐश्वर्या सूद, शिक्षिका

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राज्य बनने के बाद पहाड़ से तेजी से पलायन हुआ है. गांव खंडहर में तब्दील हो गए हैं. जो भी पार्टी सत्ता में आई, वह पलायन रोकने के लिए ठोस नीति नहीं बना पाई. हमारा सुझाव है कि सरकार पहाड़ों में छोटे-छोटे उद्योग स्थापित करे, जिससे पलायन रोकने में आसानी होगी.

विजय बमोला, शिक्षक

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जुमलाबाज प्रतिनिधि को वोट नहीं दिया जाएगा. युवा रोजगार के लिए दर दर की ठोकरें खा रहा है. इन पांच सालों में बेरोजगारों की फौज तेजी से बढ़ी है. चुनाव में पार्टियों के प्रतिनिधि बड़े - बड़े दावे करते हैं और सत्ता की कुर्सी हासिल करने के बाद वादे से मुकर जाती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा.

सिद्धात पाल, स्टूडेंट

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इस बार का वोट गलत जगह नहीं जाएगा. इन 18 सालों में जो वादे किए गए, वह पूरे नहीं हुए हैं. हर बार प्रतिनिधि अपने चुनावी मेनिफेस्टों में जो विकास का रूट मैप तैयार किया जाता है. कुर्सी में बैठने के बाद जिंदाबाद, मुर्दाबाद के नारों के बीच गायब हो जाते हैं. ऐसे प्रतिनिधि को वोट नहीं दिया जाएगा.

सुरेश प्रजापति, बिजनेस मैन

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दून में नशे का कारोबार तेजी से फैल रहा है. पुलिस के हत्थे हर रोज एक नशा तस्कर चढ़ रहा है. पुलिस नशे के असली ठिकाने तक नहीं पहुंच पा रही है. ऐसे में शिक्षण संस्थान में पढ़ रहे 50 प्रतिशत छात्र नशे की चपेट में आ चुके हैं. जिससे उनका भविष्य अंधकार में जा रहा है.

प्रथम ठाकुरी, स्टूडेंट

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चौथी बार भी देहरादून नगर निगम स्वच्छ सर्वेक्षण में फिसड्डी रहा है. जबकि रुद्रपुर को छोड़कर अन्य नगर निगम अच्छे पायदान पर रहे हैं. जहां सरकारी अमला पूरा बैठा हुआ है, यदि वहीं के हालात ठीक नहीं होंगे, तो अन्य जिलों की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

मयंक पाल, समाज सेवी