जन्म और मृत्यु पंजीकरण को लेकर कोताही
देश भर में जन्म और मृत्यु पंजीकरण को लेकर हो रही कोताही की यह हकीकत सामने आई है ताजा नागरिक पंजीकरण (सीआरएस) रिपोर्ट में. भारत के महापंजियक की ओर से तैयार की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक अब तक देश में सिर्फ 66.9 फीसद मृत्यु और 81.3 फीसद जन्म ही पंजीकृत हो रहे हैं. ये आंकड़े वर्ष 2009 तक के पंजीकरण के आधार पर तैयार किए गए हैं.
सामने नहीं आती एक साल तक के नवजात की मौत
एक साल तक के नवजात बच्चों की मौत के मामले तो सामने ही नहीं आ रहे. सरकारी पंजीकरण के मुताबिक एक साल तक के एक हजार बच्चों में महज आठ की मौत हो रही है. जबकि वास्तव में नवजात मृत्यु दर इससे छह गुनी से भी ज्यादा है. इसी साल के नमूना सर्वेक्षण (एसआरएस) के मुताबिक देश में नवजात शिशु मृत्यु दर 53 फीसद है. इसी तरह देश भर में लड़कियों के जन्म और मृत्यु दोनों का ही पंजीकरण लडक़ों के मुकाबले कम हो रहा है. जन्म और मृत्यु पंजीकरण के लिहाज से कुछ वर्ष पहले तक तो हालत और बुरी थी. वर्ष 2000 में सिर्फ 48.7 फीसद मृत्यु और 56 फीसद जन्म का पंजीकरण हुआ था.
कहां हो रहा कितना पंजीकरण
राज्य जन्म मृत्यु (फीसद में)
बिहार 45 20.6
छत्तीसगढ़ 49.4 56.9
हरियाणा 96 86.8
हिमाचल प्रदेश 100 88.1
जम्मू-कश्मीर 68.7 55.1
झारखंड 51.6 50.1
मध्य प्रदेश 83.1 54
पंजाब 100 97.8
उत्तर प्रदेश 73.5 54.3
उत्तराखंड 69.1 47.1
पश्चिम बंगाल 88.2 63.4
चंडीगढ़ 100 100
दिल्ली 100 100
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राष्ट्रीय 81.3 66.9
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हक ही नहीं कानूनन जरूरी भी
जन्म और मृत्यु पंजीकरण कानून 1969 के मुताबिक हर जन्म और मृत्यु का पंजीकरण कानूनन अनिवार्य है. यह न सिर्फ हर नवजात का हक है बल्कि उसकी पहचान स्थापित करने की दिशा में पहला कदम भी है. किसी भी इलाके के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना बनाने का आधार भी यही बनता है. इसलिए परिवार के मुखिया को इसके लिए जवाबदेह माना गया है.
Report by: Mukesh Kejriwal (Dainik Jagran)
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