कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। निर्जला एकादशी हिंदुओं के लिए एक पवित्र दिन है। यह ज्येष्ठ महीने में शुक्ल पक्ष के दौरान 11 वें चंद्र दिवस (एकादशी) को पड़ती है जो आमतौर पर मई या जून के महीने में होती है। इस दिन भक्त 24 घंटे उपवास रखते हैं और जल तक नहीं ग्रहण करते हैं। निर्जला एकादशी बेशक थोड़ी कठिन है लेकिन यह साल भर में पड़ने वाली सभी 24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस वर्ष निर्जला एकादशी 2 जून को मनाई जा रही है। एकादशी तिथि जून 20 को शाम 04:21 पर प्रारम्भ होगी और जून 21 को शाम 01:31 बजे समाप्त होगी। यह सबसे फलदायी एकादशी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने पापों से मुक्ति मिलती है, लंबी उम्र और मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है। वहीं जो निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान मिलता है।

निर्जला एकादशी के लिए पूजा विधि
रात में फर्श पर सोएं।
सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
साफ पीले कपड़े पहनें और अपने ऊपर गंगाजल का छिड़काव करें।
सूर्य देव पर जल चढ़ाएं।
भगवान विष्णु को फूल, फल, अक्षत, चंदन और धुर्वा घास चढ़ाएं।
नमो भगवते वासुदेवै नमः का जाप करें।
निर्जला एकादशी व्रत कथा का पाठ करें और आरती करें।
भगवान को मिठाई जैसे लड्डू, गुजिया आदि का भोग लगाएं।
परिवार में सभी के साथ प्रसाद बांटें।
ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को धन और वस्त्र अर्पित करें।
अगले दिन पारण के समय निर्जला व्रत तोड़ें।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी को पाण्डव एकादशी और भीमसेनी एकादशी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। दृक पंचांग के मुताबिक पाण्डवों में भीम को खाने-पीने का अत्यधिक शौक था। वह अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नहीं थे। इसकी वजह से वह एकादशी व्रत को भी नहीं कर पाते थे। भीम के अलावा अन्य पाण्डव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीम अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान थे। भीम को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहे हैं। इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गए तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
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