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PATNA :
प्लास्टिक से बने सामानों का प्रयोग आज हर आदमी के लिए आम हो गया है. आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि हम हर साल जाने-अनजाने 50 हजार माइक्रो प्लास्टिक के टुकडे़ खा जाते हैं. ये कण सिंथेटिक कपड़ों, रोज काम में आने वाली चीजों आदि किसी भी माध्यम से हमारे शरीर में जा रहे हैं. एक रिसर्च के मुताबिक ये प्लास्टिक के कण सांस और खाने के माध्यम से हमारे बॉडी में प्रवेश कर रहे हैं. यदि माइक्रो प्लास्टिक के अंश खून में मिल जाए तो बीमार होना तय है. दरअसल, प्लास्टिक वातावरण में नष्ट होने वाली चीज नहीं है लेकिन यह एक बडे़ हिस्से से छोटे हिस्से में टूटकर बारीक कण में परिवर्तित होकर हवा के साथ घुल-मिलकर सांस के माध्यम से शरीर में आ सकते हैं.

शरीर में टिश्यूज की जगह तक बदल सकते हैं
एक्सपर्ट के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक के शरीर में मौजूद होने के नुकसान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह टिश्यूज को बदल सकता है और शरीर के उस हिस्से की प्रतिरक्षा तंत्र को प्रभावित कर सकता है. उदाहरण के लिए अगर एक व्यक्ति सिर्फ बोतलबंद पानी पीता है तो उसके शरीर में एक साल में करीब एक लाख 30 हजार माइक्रोप्लास्टिक के कण जा सकते हैं.

सावधानी से करें प्लास्टिक से बने सामान का प्रयोग
एनआईटी पटना में सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ एनएस मौर्या बताते हैं कि प्लास्टिक के माइक्रोपार्टिकल पानी से आसानी से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. इसलिए ऐसी चीजों का प्रयोग और डिस्पोजल सावधानी से करना चाहिए. शरीर में माइक्रो प्लास्टिक लीवर और इंटेनस्टाइन में जमा होने लगता है. शुरुआत में इसके बारे में कुछ पता भी नहीं होता है.

सभी प्रकार से है नुकसानदेह
हम जिसे आम बोलचाल की भाषा में प्लास्टिक कहते हैं वह केवल प्लास्टिक का कैरीबैग नहीं है बल्कि इसके कई प्रकार है. कम डेनसिटी से अधिक डेनसिटी के आधार पर प्लास्टिक के प्रकार हैं- पीपी (पॉली प्राप्लीन), पीई (पॉलिइथलीन), पीएस (पॉली सिटयेरिन), पेट (पॉली इथलिन टेरेफिटलेट) और पीवीसी यानि पॉली विनाइल क्लोराइड. इसमें पालीइथलिन और पीवीसी का प्रयोग सबसे अधिक होता है. लेकिन नुकसानदेह सभी हैं.

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