मिल रहे हैं खुद किसानों से

मदद करने के इस क्रम में ये लोग मंडियों में जाकर खुद किसानों से मिल रहे हैं। उनसे मिलकर वह उन्हें बुआई के लिए जमीन तैयार करने व बीजों के बारे में उचित सलाह भी दे रहे हैं। इस क्रम में वह इससे पहले आए सूखे के अनुभव को लेकर भी किसानों से मिल रहे हैं और अपने पुराने अनुभव को उनके साथ शेयर कर रहे हैं। इसके साथ ही मानसून से जुड़ी तैयारियों को लेकर पंजाब व हरियाणा के सिंचाई वाले इलाकों में धान और कपास की बुआई को लेकर जमीन तैयार की जा रही है।

किसान संगठनों का यह है मानना

इस तरह की तैयारियों के मद्देनजर किसान संगठनों का भी मानना है कि सरकारी उपदेशों को सुनने से बेहतर है कि किसी प्रोग्रेसिव किसान का खेत देखा जाए। इसको लेकर किसान जागृति मंच के प्रेसिडेंट व लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सुधीर पंवार कहते हैं कि इस साल समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दौरा करते हुए कामयाबी की कहानियों को साझा कर रहे हैं। मानसून की कमजोर स्थिति को देखते हुए वह किसानों को धान की खेती के बजाय जौ-बाजरा, उड़द या मूंग की बुआई करने की सलाह दे रहे हैं।

रिसर्च इंस्टीट्यूट ने उठाया कदम

उन्होंने कहा कि इस साल खरीफ की पैदावार पर कमजोर मानसून का असर न हो, इसके लिए रिसर्च इंस्टिट्यूट्स की ओर से कई आपातकालीन योजनाओं को तैयार किया गया है। इन सभी तरह की योजनाओं को लागू करने के लिए वे सरकारी कर्मियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इसी क्रम में हिमांचल प्रदेश में दिल्ली की देव भूमि चेन प्राइवेट लिमिटेड राज्य सरकार के संग ग्रीन हाउस लगाने की योजना भी है। इसके माध्यम से कंपनी वहां के किसानों को यह दिखाना चाहती है कि शिमला से 40 किलोमीटर दूर मटियाना में इस मौसम में जलस्तर को किसी तरह से रिचार्ज कर सकती है।

देव भूमि से मिली जानकारी

इसको लेकर जानकारी देते हुए देव भूमि के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय अग्रवाल कहते हैं कि वह स्टेट एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी संग मिलकर काम करना चाहते हैं। इसके लिए वह इजरायल व नीदरलैंड की कंपनियों से भी बात कर रहे हैं। ताकि मानसून की बिगड़े हुए रुख का सामना मजबूती के साथ किया जा सके और आने वाली मुश्किलों को पहले से ही भांपकर उसके प्रति चौंकन्ना हुआ जा सके।

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