इन घरों के सामने ड्योढ़ी बनी हुई है और वहां बैठने के लिए जगह भी है जो लाल पत्थर से तैयार की गई है. यहां से कुछ ही दूरी पर फूलों से भरे गार्डेन दिखते हैं.

हर कोने पर सफ़ेद चर्च और क्रॉस दिखता है.

पिछले गुरुवार तक  गोवा में पारा नाम का ये गांव बेहद शांत था और सब कुछ सामान्य था. लेकिन बुधवार की रात जब लोबोवाड्डो इलाक़े में एक नाइजीरियाई नागरिक की लाश मिली, उसके बाद यहां की तस्वीर बदल गई.

उसके बाद नाइजीरियाई नागरिक और अफ़्रीक़ी मूल के अन्य लोग इस घटना के विरोध में सड़कों पर उतर आए और पुलिस तथा स्थानीय लोगों में झड़पें होने लगी.

दुर्भाग्य से अचानक स्थानीय मीडिया में पारा को नाइजीरियाई नागरिकों की एक अलग बस्ती के तौर पर पेश किया जाने लगा.

नाइजीरियाई नागरिकों के विरोध प्रदर्शन के कारण क़रीब तीन घंटे तक यातायात प्रभावित रहा और इस घटना को बीते हुए एक दिन भी नहीं हुआ था कि वहां "से नो टू ड्रग्स, से नो टू नाइजीरियंस" जैसे प्रतीक चिन्ह नज़र आने लगे.

एक हफ़्ते के भीतर ही यहां जातिवादी और प्रतिक्रियावादी चीज़ें उभरने लगीं.

शक की निगाहें

पारा पंचायत के आदेश में दो बातें सामने आईं जिन पर सवालिया निशान लगे. पहला आदेश यह था कि स्थानीय लोगों को  नाइजीरियाई और अन्य विदेशियों को किराए पर घर देने से मना किया जाए.

इस पंचायत ने केटी क्रिस बार एवं रेस्तरां के लाइसेंस को रद्द करने की मांग भी की जहां अफ़्रीक़ी समुदाय के लोग अक्सर जाते हैं.

एक हफ़्ते के ठीक बाद पारा में कोई अशांति का माहौल नहीं दिखा और मीडिया के प्रचारित किए गए मसले भी तब स्पष्ट हो गए जब स्थानीय लोगों ने पंचायत के नाइजीरियाई लोगों को बाहर करने के सवाल का कोई जवाब देने से इनकार कर दिया.

गोवाः 'से नो टू ड्रग्स,से नो टू नाइजीरियंस'

केटी क्रिस रेस्तरां को बंद कर दिया गया है. केटी का कहना है कि उन्हें अपने कर्मचारियों को घर भेजना पड़ा क्योंकि मीडिया की पक्षपाती रिपोर्टों की वजह से लोग यहां आने से डर रहे थे.

एक नाइजीरियाई युवक मैक (बदला हुआ नाम) स्कूटर पर आराम फ़रमाते हुए अपने फ़ोन में व्यस्त हैं. जब उनसे यह पूछा जाता है कि वह कब से गोवा में हैं, वह थोड़े ग़ुस्से में आ जाते हैं.

वह कहते हैं, "मैं यहां गोवा के वीज़ा पर नहीं आया था. मैं यहां भारत के वीज़ा पर आया था. इसलिए आप मुझसे यह पूछ सकते हैं कि मैं भारत में कब से हूं. एक बार अगर मुझे वीज़ा मिलता है तो मैं जहां भी चाहूं किसी भी शहर में जा सकता हूं."

नाइजीरिया में बसे भारतीय दोस्तों के एक समूह के साथ वह भारत में पहली बार साल 2007 में आए थे. उसके बाद से ही वह अक्सर यहां आते रहते हैं. मैक का कहना है कि उन्हें गोवा पसंद है.

वह कहते हैं, "यहां जो कुछ हो रहा है उस पर भरोसा नहीं होता लेकिन यह सब कुछ रंग से जुड़ा हुआ है."

उन्हें इस बात का दुख है कि केटी क्रिस को स्थानीय लोगों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ा. उन्हें केटी का पश्चिमी-अफ़्रीक़ी खाना पसंद है. वह कहते हैं, "आपको कैसा लगेगा जब आप कहीं जाएं और लोग आपको कहें कि सभी भारतीय रेस्तरां बंद हैं."

ड्रग कारोबार से शिकायत

केटी का पक्ष है कि उन्हें राजनीतिक वजहों से निशाने पर लिया जा रहा है क्योंकि वह पिछले साल पंचायत चुनाव में खड़ी हुईं थीं.

वह कहती हैं, "वे (अफ़्रीक़ी) सभी जगह जाते हैं, बागा डेक, अंजुना और कैफ़े कॉफ़ी डे. फिर तो सबको बंद करना चाहिए सिर्फ़ केटी क्रिस रेस्तरां हीं क्यों? वे जानवर नहीं हैं. न तो सभी अच्छे हैं और न ही सभी बुरे. लेकिन ऐसे ही लोगों पर सवालिया निशान क्यों खड़े किए जाएंगे?"

मैक का कहना है कि सरकार उन लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई कर सकती है जिनके पास वैध दस्तावेज़ नहीं हैं लेकिन किसी को भी निशाने पर लेना डरावना है.

गोवाः 'से नो टू ड्रग्स,से नो टू नाइजीरियंस'

स्थानीय लोगों का दावा है कि नाइजीरियाई नागरिक उन इलाक़ों में रहते हैं जहां अवैध गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है और वे उन इलाक़ों को बदनाम कर रहे हैं.

उनकी शिकायत है कि ड्रग के कारोबार से ज्यादातर विदेशी लोग ही जुड़े हैं जो अवैध तरीक़े से रहते हैं और यह किशोरों और युवकों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है.

एक अन्य व्यक्ति भी नाम न बताने की शर्त पर कुछ ऐसा ही कहते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि यह ड्रग के अवैध ख़रीद-फ़रोख़्त की प्रक्रिया को ख़त्म करने के बजाए विदेशी माफ़िया की खोज से जुड़ी है.

सूत्रों का दावा है कि इस हत्या के पीछे चापोरा के एक स्थानीय ड्रग माफ़िया का ही हाथ था. इस मामले में एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी हुई है.

स्थानीय लोग माफ़िया गिरोह और राजनीति की सांठगांठ वाली अंदरूनी राजनीति पर ज्यादा बात नहीं करते हैं.

उम्मीद है बाक़ी

बाहरी लोगों के आने से गोवा भले ही थोड़ा असुरक्षित लगता हो लेकिन यह सब उम्मीद से परे नहीं है.

पोरवोरिम के एक मशहूर सुपर मार्केट में अफ़्रीक़ी मूल के दो युवकों को मीट सेक्शन में रोज़गार मिला है.

यह ख़बर मिली कि दंगे के एक दिन बाद वे लोग अपनी ड्यूटी पर आए थे. वे बड़े नम्र और शांत तरीक़े से चिकन और मीट का वज़न लेते हैं और ग्राहकों की मांग पर उसे काट कर दिया गया.

वहां अंदरूनी तनाव महसूस किया जा सकता है. लेकिन सुपरमार्केट के मालिक उन पर हमेशा अपनी निगरानी वाली निगाह बनाए रखते हैं ताकि कोई गड़बड़ी न हो.

अगर ऐसे लोग गोवा में मौजूद रहेंगे तो मुमकिन है कि गोवा फिर पर्यटकों की पसंदीदा जगह वाली अपनी पुरानी पहचान हासिल कर ले.

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