लेकिन अस्थायी शिक्षकों की की स्थायी बन चुकी व्यवस्था ने ऐसे शिक्षकों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है.

इन्हें हमेशा नौकरी जाने का डर सताता रहता है. इनके भीतर की इसी असुरक्षा का फायदा उठाकर उनसे तरह-तरह के ऐसे ग़ैर शैक्षणिक काम भी कराए पड़ते हैं जो इनके कार्यक्षेत्र में नहीं आता.

एक सर्वेक्षण से पता लगा है कि डीयू की शैक्षणिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले ये शिक्षक हर दिन शोषण, मानसिक यंत्रणा, ज़्यादा काम और असुरक्षा के ऐसे वातावरण में नौकरी करते हैं जिसे किसी भी आधार पर मानवीय नहीं कहा जा सकता.

सर्वेक्षण

सर्वे के मुताबिक एड हॉक शिक्षकों की हालत

सर्वे में 223 शामिल, 133 महिला, 90 पुरुष

223 में से 9 के साथ यौन दुर्व्यवहार

एफ़वाईयूपी के बाद 62 की नौकरी खत्म

32 फ़ीसदी को 3 महीने का कॉन्ट्रैक्ट

64 फ़ीसदी को समर सैलरी नहीं

48 फ़ीसदी को 18 से ज्यादा लेक्चर

69 फ़ीसदी विषय नहीं चुन सकते

64 फ़ीसदी को नौकरी जाने का डर

44 फ़ीसदी के साथ दुर्व्यवहार

दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज में एड हॉक शिक्षक के रूप में कार्य करने वाली अल्बीना शक़ील ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर यह सर्वेक्षण किया, जिसमें एड हॉक शिक्षकों ने अपनी पहचान ज़ाहिर किए बिना बताया कि उन्हें किस तरह के माहौल में कार्य करना पड़ता है और किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

इस सर्वेक्षण में विश्वविद्यालय के 4000 में से केवल 223 एड हॉक शिक्षकों ने हिस्सा लिया.

बीबीसी ने भी कई एड हॉक शिक्षकों से बात की. एड हॉक शिक्षकों की पहले से असुरक्षित नौकरी के खतरों को देखते हुए हमने उनकी पहचान गुप्त रखी है.

दीपाली कुमारी (साउथ कैंपस) – हमें ये डर हमेशा सताता रहता है कि चार महीने बाद क्या होगा. कहीं हमें निकाल न दिया जाए. बीच में वर्कलोड कम हो जाता है तो बीच में भी हटाया जा सकता है. हमें कुछ भी पढ़ाने को दे दिया जाता है. जिस विषय में हमारी विशेषज्ञता नहीं है वो भी हमें पढ़ाने को कहा जा सकता है.

हमें चार महीने में केवल तीन छुट्टी मिलती है. नौकरी की अनिश्चितता की वजह से कई शिक्षक शादी के कई साल बाद भी बच्चे नहीं पैदा कर पा रहे.

एडहॉक टीचर: 'बीमार होने या गर्भवती होने पर नौकरी जा सकती है'

मैं कई ऐसी एड हॉक शिक्षकों को जानती हूं जिनकी प्रेग्नेंट होने की वजह से नौकरी चली गई है.

सुमित कुमार (साउथ कैंपस)- एड हॉक टीचर हमेशा इस कोशिश में लगा रहता है कि एचओडी और सीनियर टीचर उससे खुश रहें ताकि जब भी स्थायी नियुक्ति का मौका आए तो वो उसके लिए प्रयास करें.

इसके अलावा कॉलेज में जो भी पढ़ाने से अलग काम होते हैं, उनमें जरूरी तौर से एड हॉक टीचर की मंशा जाने बिना लगा दिया जाता है और इसमें कोई विकल्प नहीं होता.

हालांकि एड हॉक टीचर के रूप में एक उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोज़गार को अपनी शैक्षणिक प्रतिभा दिखाने का मौका भी मिलता है. 51-52 हज़ार रुपए की तनख्वाह भी मिलती है जिसे कम नहीं कहा जा सकता.

मंगेश कुमार (नॉर्थ कैंपस) – मैं साल 2007 से एड हॉक टीचर के रूप में पढ़ा रहा हूं. उससे पहले मैं गेस्ट टीचर था. जिस कॉलेज में मैं एड हॉक टीचर के रूप में नियुक्त हुआ था वहां अचानक मेरे पद को ओबीसी के लिए आरक्षित कर मुझे हटा दिया गया.

कॉलेजों में कुछ लोग चाहते हैं कि एड हॉक की व्यवस्था बनी रहे ताकि उनसे असुरक्षा की वजह से जो ग़ुलामी करवाई जाती है उसे क़ायम रखा जा सके. कई कॉलेजों में एड हॉक सीनियर टीचर के कहने पर उनकी क्लास को पढ़ाते हैं.

आप पीएचडी हों, एम फ़िल हों या एमएड हों, एड हॉक टीचर के रूप में आपको इनक्रीमेंट का लाभ नहीं मिलता, पीएफ़ की सुविधा नहीं है.

एडहॉक टीचर: 'बीमार होने या गर्भवती होने पर नौकरी जा सकती है'

11-12 साल से पढ़ा रहे कुछ लोगों को हाल ही में एक कॉलेज से यह कहकर निकाल दिया गया कि आप योग्य नहीं हैं. अगर ऐसा था तो सवाल व्यवस्था पर उठता है कि क्या 11-12 साल से वह शिक्षक अपने विद्यार्थियों के साथ अन्याय कर रहा था.

हद तो तब हो जाती है जब विद्यार्थी भी आपको एहसास दिलाने लगते हैं कि आप एड हॉक टीचर हैं और चाय वाला भैया भी आपकी अवहेलना करने लगता है.

रजत कुमार (दक्षिणी परिसर) – कुछ कॉलेजों में एड हॉक टीचरों के लिए स्टूडेंट फ़ीडबैक का सिस्टम चल रहा है. अगर छात्र टीचर के बारे में ख़राब फ़ीडबैक देते हैं तो उन्हें लगने लगता है कि उनकी नौकरी पर ख़तरा है. इस व्यवस्था की वजह से एड हॉक टीचर को अतिरिक्त सतर्क रहना पड़ता है कि कहीं छात्र ख़राब फ़ीडबैक न दे दें. फ़ीडबैक का ऐसा प्रावधान स्थायी शिक्षकों के लिए नहीं होता. चाहे वो जैसा पढ़ाएं.

यौन उत्पीड़न

एडहॉक टीचर: 'बीमार होने या गर्भवती होने पर नौकरी जा सकती है'एड हॉक शिक्षकों पर सर्वे करनेवाली अल्बीना शकील ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि सर्वेक्षण में हिस्सा लेनेवाले 223 लोगों में से नौ को यौन उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ा.

जब बीबीसी ने इस मुद्दे पर विश्वविद्यालय के कुलपति दिनेश सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि आज ही डीयू में 4000 एड हॉक शिक्षक पढ़ा रहे हैं. पिछले 10 सालों में कभी भी ऐसा नहीं रहा कि विश्वविद्यालय में 2000-2500 से कम एड हॉक शिक्षक रहे हों.

दिनेश सिंह ने कहा, "जल्दी ही एड हॉक शिक्षकों के स्थान पर कॉलेजों में स्थायी शिक्षक नियुक्त हो जाएंगे. चार साल की परियोजना लागू हो रही थी, वर्कलोड ठीक से कैलकुलेट होना था. उसका सारा काम पूरा हो गया है और सभी कॉलेजों में रोस्टर बन गया है. अब मेरे हिसाब से नई नियुक्तियों में कोई बाधा बची नहीं है."

केंद्रीय उच्च शिक्षा सचिव अशोक ठाकुर का कहना था, "दिल्ली विश्वविद्यालय में एड हॉक टीचर्स का मसला बहुत महत्वपूर्ण है. मेरी डीयू के कुलपति से इस बारे में चर्चा हुई है. उन्होंने कहा है कि नई भर्ती के लिए विज्ञापन आ गए हैं और जल्दी ही समयसीमा के तहत इन रिक्तियों को भरा जाएगा."

दूसरा पहलू

एडहॉक टीचर: 'बीमार होने या गर्भवती होने पर नौकरी जा सकती है'इस तस्वीर का दूसरा रुख भी है. बीबीसी को जानकारी मिली है कि एड हॉक टीचर्स की नियुक्ति पूरी तरह से कॉलेज प्रशासन के स्तर पर होती है जिसमें कुछ ही लोग निर्णायक भूमिका में होते हैं.

ऐसी नियुक्तियों में कॉलेज के बाहर के किसी निर्णायक मंडल के न होने की वजह से खूब धांधलियां होती हैं और कई ऐसे उम्मीदवारों को पहचान और पहुंच के आधार पर नियुक्ति मिल जाती है जो कतई पद के क़ाबिल नहीं होते.

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति दिनेश सिंह ने इस स्थिति की मौजूदगी को आधिकारिक रूप से स्वीकार तो नहीं किया, लेकिन ये आश्वासन ज़रूर दिया कि अगर ऐसा है तो इस नेटवर्क और रैकेट को तोड़ा जाएगा.

उम्मीद यही है कि आने वाले समय में जल्दी ही योग्य एड हॉक शिक्षक स्थायी नियुक्ति पाएंगे और उनमें से जो कुछ एड हॉक ही रह जाएंगे उनके काम करने की हालत में सुधार आएगा.

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