बिना सुने लिया फैसला

इससे पहले केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को सुप्रीमकोर्ट में कहा था कि भुल्लर की फांसी माफी की याचिका स्वीकार की जा सकती है. दया याचिका निपटाने में देरी के आधार पर फांसी माफी की मांग करने का हक देने वाले सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद इस मसले पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती. केंद्र सरकार की इस दलील के बाद सुप्रीमकोर्ट ने आगे की बहस सुने बगैर भुल्लर की फांसी माफी की मांग याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

देरी पर सजा बदलने की मांग

भुल्लर को पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष एमएस बिट्टा की कार पर बम विस्फोट करने की साजिश रचने पर मौत की सजा सुनाई गई थी. इस हमले में नौ लोग मारे गए थे जबकि बिट्टा सहित कई अन्य घायल हुए थे. सुप्रीमकोर्ट आजकल भुल्लर की पत्नी की ओर से दाखिल क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई कर रहा है. सुप्रीमकोर्ट अपने गत 21 जनवरी के फैसले के आधार पर भुल्लर की याचिका पर विचार कर रहा है. उस फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि आतंकी गतिविधियों और टाडा जैसे कानून में दोषी अपराधियों को भी दया याचिका के निपटारे में देरी के आधार पर फांसी की सजा उम्रकैद में बदलने की मांग करने का अधिकार है. चुनाव के वक्त सरकार के रुख में आया यह बदलाव अहम माना जा रहा है. पंजाब में अकाली दल समेत करीबन सभी राजनीतिक दल भुल्लर की फांसी माफ करने की हिमायत कर रहे थे. चुनाव के ऐन पहले सुप्रीम कोर्ट में सरकार के इस बयान को राजनीतिक लाभ लेने की दृष्टि से भी देखा जा रहा है.

भुल्लर का स्वास्थ

बृहस्पतिवार को मामले पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने भुल्लर के स्वास्थ्य की ताजा स्थिति जाननी चाही. पीठ जब इस बारे में सुनवाई कर ही रही थी कि केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने कहा कि इस सब पर विचार करने की कोई जरूरत नहीं रह जाती. सुप्रीमकोर्ट के गत 21 जनवरी के फैसले को देखते हुए भुल्लर की फांसी माफी की मांग वाली याचिका स्वीकार की जा सकती है. वाहनवती ने कहा कि उस फैसले में सुप्रीमकोर्ट देरी के आधार पर भुल्लर की फांसी माफी से इनकार करने वाले 12 अप्रैल 2012 के फैसले को खारिज कर चुका है. ऐसे में अब किसी और बहस की जरूरत ही नहीं रहती. दया याचिका निपटाने में देरी के आधार पर उसकी याचिका स्वीकार की जा सकती है.

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