अब देश में एक ऐसा टेबलेट यानी मोबाइल यंत्र आ गया है जो कुछ ही मिनटों में ये सारे टेस्ट कर देगा और वो भी वाजिब कीमत पर आपके घर आकर.

शायद आपको यक़ीन न हो लेकिन हर टेस्ट में खर्च आता है सिर्फ़ 50 रुपए.

इस यंत्र को 'स्वास्थ्य स्लेट' का नाम दिया गया है और ये किसी भी आईपैड या टैबलेट जैसा ही होता है. बस अंतर इतना है कि इसमें मेडिकल परीक्षणों से जुड़े कुछ यंत्र लगाए गए हैं.

टैबलेट के ज़रिए न केवल दूर गांवों तक मेडिकल टेस्ट की सुविधा पहुंचाई जा सकती है बल्कि इसके आकड़ों को लंबे समय तक एक डाटा बैंक में सुरक्षित रखा जा सकता है. जब चाहें जहां चाहें एक नंबर के ज़रिए आप ये डाटा अपने लिए मुफ्त में इस्तेमाल कर सकते हैं.

कमाल का आइडिया

लेकिन ये कमाल का आइडिया है किसका. ये मोबाइल मेडिकल यंत्र बनाया है कानव कहोल ने. कानव पेशे से बायो इनफॉर्मैटिक्स इंजीनियर हैं औऱ अमरीका में लंबे समय तक काम कर चुके हैं.

कानव ने अमरीका में एरिज़ोना यूनिवर्सिटी में लंबे समय तक पढ़ाने का काम किया और फिर उन्होंने सोचा कि क्यों न देश वापस लौटा जाए और कुछ नया किया जाए.

आते ही दिल्ली के पांच अस्पतालों में से किसी में भी डॉक्टरों से समय नहीं मिल पाना उनके लिए बहुत प्रेरणादायी रहा.

वो कहते हैं, ''मैं एक आम मरीज़ की तरह दिल्ली के पांच अस्पतालों एम्स, गंगाराम, फोर्टिस, तिब्बिया कॉलेज और मौलाना आज़ाद में डॉक्टर को दिखाने गया. एम्स में मुझे चार दिन तो केवल पर्चा बनवाने में लगे और डॉक्टर के पास स्टूल पर मुझे केवल 45 सेकण्ड का वक़्त मिला. बाकि जगहों पर डॉक्टर के साथ बिताये समय का मेरा औसत था 59 सेकण्ड.''

सहायक के लिए तकनीक

कानव कहते हैं कि पश्चिम में ज़्यादातर तकनीक बनाई जाती है डॉक्टरों के इस्तेमाल के लिए लेकिन यहाँ डॉक्टरों को कई गुना ज़्यादा काम करना होता इसलिए उन्होंने तय किया कि वो ऐसी तकनीक बनाएंगे जो कि एक आम ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी के लिए हो.

कानव का दावा है "हमारा यह टैबलेट और इससे जुड़े अटैचमेंट कोई भी चला सकता है."

इस टैबलेट में जीपीएस की मदद से इससे यह भी पता लग जाएगा कि जिस आदमी की जांच की गई हैं वो दरअसल कहाँ मौजूद था उसकी तस्वीर होगी और उसका सारा डाटा एक सर्वर में होगा जो वो दुनिया में कहीं भी कभी इस्तेमाल कर सकेगा.

इसका मतलब ये है कि अगर सरकारी एजेंसियाँ इसका इस्तेमाल करने लगें तो जन-स्वास्थ्य से जुड़े प्रामाणिक आंकड़े जुटाए जा सकते हैं.

काहोल कहते हैं, " ज़्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि उन्हें बीपी या डायबिटीज़ की बीमारी है. अगर वो आरंभ में ही दवा ले लें तो वो आगे के भारी भरकम इलाज से बच जाएंगें. हमारे यहाँ इतने कम डॉक्टर हैं कि उनका इस्तेमाल बहुत सोच-समझ कर होना चाहिए."

यह टैबलेट और इसके साथ के सारे अटैचमेंट अभी क़रीब 20 हज़ार के हैं जो आगे चल कर 15 हज़ार के हो जाएंगें और समय के साथ इसमें और भी टेस्ट जोड़े जा सकते हैं.

'सस्ती तकनीक ला सकती हैं क्रांति'

भारत के जाने माने दिल के डॉक्टर (ह्रदय रोग शल्य चिकित्सक) और मेदंता मेडिसिटी के प्रमुख डॉ नरेश त्रेहान कहते हैं "सस्ती तकनीक भारत में आम लोंगो तक स्वास्थ्य पहुँचाने में बहुत ही कारगर साबित हो सकते है. सर्वाधिक ज़रुरत प्रिवेंटिव केयर के क्षेत्र में है. अगर आदमी साफ़ पानी पीएगा तो वो कई बीमारियों से बचा रहेगा."

त्रेहान के अनुसार अगर भारत में केवल आम बीमारियों का डाटाबेस हो तो भारत सरकार निजी क्षेत्र, एनजीओ और सरकारी सुविधाओं को मिला कर भारत के हर हिस्से को ज़रुरत के मुताबिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करा सकती है.

त्रेहान कहते हैं सबसे बड़ी चुनौती है क्रियान्वयन की.

यह बात कानव भी मानते हैं लेकिन वो यह भी मानते हैं की भारत में भी चीज़ें बदली जा सकती हैं और वो अपनी कोशिश कर रहे हैं.