प्रयागराज ब्यूरो । बारिश के पानी को खींचकर पाताल तक पहुंचाने वाले तालाब शहर में सिसक रहे हैं. यहां इनके अस्तित्व पर संकट के बादल दिखाई दे रहे हैं. कभी पूजा पाठ से लेकर स्नान तक के काम में आने वाला नवल राय कीडगंज तालाब का अपना एक वजूद था. इसका इतिहास एक दो नहीं कई पीढिय़ों से जुड़ा बताया जाता है. इस तालाब से जुड़ी कहानी कुछ बुजुर्ग अपने बच्चों को बता और सुना गए हैं. जिसका लिखित दस्तावेजी प्रमाण तो नहीं, सुनी सुनाई बातें व किवदंतियां लोगों की जुबां पर आज भी हैं. जिसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे. बावजूद इसके इस तालाब की सुरक्षा व संरक्षा के मामले में प्रशासनिक उपेक्षा ग्राउंड पर साफ दिखाई देती है. चंद लोग ही नहीं तालाब के एक बड़े हिस्से पर सरकारी बिल्डिंग तक खड़ी कर दी गई है. करीब 03 बीघा 15 विस्वा, 09 धूर यानी 0.845 हेक्टेयर में क्षेत्र फल का यह तालाब आज चारों तरफ से सिकुड़ता जा रहा है. तालाब के चारों तरफ हवेलियां तनती जा जा रही हैं और तालाब सिकुड़ते जा रहे हैं.

कभी बुलंद थी इस तालाब की तकदीर
खैर शहर के कृष्णा नगर वार्ड कीडगंज में स्थित तालाब नवल राय का एरिया नगर निगम व तहसील के दस्तावेज में आज भी कई बीघे का बताया जाता है. नगर निगम में आरटीआई पर पूर्व पार्षद कमलेश सिंह को सौंपी गई रिपोर्ट में इस तालाब को तीन बीघे से अधिक बताया गया है. मगर मौजूदा समय में देख कर ही कोई भी बता सकता है कि मौके पर तालाब उतना नहीं है, जितना कि कागज बता रहे हैं. लोकल में रहने वाले पप्पू व राहुल कहते हैं कि इस तालाब से जुड़ी एक वर्षों पुरानी कहानी है. कहते हैं बड़े बुजुर्ग पिता जी के पिता जी यानी बाबा बताया करते थे कि एक वक्त था जब इस तालाब में लोग स्नान किया करते थे. शादी विवाद या पर्वों पर इस तालाब कि किनारे एकत्रित होकर लोग पूजा पाठ जैसी रस्में अदा करते थे. गाय, भैंस व घोड़े सहित अन्य मवेशियों को भी लोग इस तालाब में पानी पिलाते व नहलाते थे. तालाब के पास एक मंदिर हुआ करती थी. वह मंदिर कहां है? आज यह बताने वाला कोई नहीं है. लोग बताते हैं कि बड़े बुजुर्ग कहा करते थे कि इस तालाब में सोने की पिग यानी सुअर की मूर्ति है. अब इन बातों में कितनी सच्चाई है, फिलहाल इस बात का कोई दस्तावेजी साक्ष्य किसी के पास नहीं है. हर कोई सुनी सुनाई कहानी ही बताते और जानते हैं.

25 से 30 फीट गहरा है तालाब
उपेक्षा के शिकार इस तालाब नवल राय में आज भी धोबी समाज के कुछ लोग कपड़े धुलने का काम करते हैं. तालाब कि किनारे कपड़ा धुलने के लिए रखी गई पत्थर की चटिया इस बात का उदाहरण हैं. हालांकि तालाब में कपड़ा धुले जाने की तस्दीक स्थानीय लोग भी करते हैं. कहते हैं कि यह काम वे तालाब में कई पीढ़ी से करते आ रहे हैं. अब यह बात दीगर है कि तालाब में जलकुंभी से भरी पड़ी है. अब न तो इसमें कोई स्नान करता है और न ही पूजा पाठ के लिए कोई आता है. तालाब में गंदगी काफी है. लोगों की मानें तो इस तालाब की गई 25 से 30 फीट की है. एक समय था जब इसमें एक बांस जितना गहरान था. तालाब के पास से कभी ट्रेन किला तक जाया करती थी. मगर अब जहां ट्रैक था उस जगह रोड बना दी गई है.

तालाब के इस कंडीशन का दोषी कौन?
राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के अंतर्गत इस तालाब पर के एक बड़े हिस्से में 6.78 करोड़ की लागत वित्तीय वर्ष 2029-2019 में नमामि गंगे के तहत 11 एमएलडी सीवेज पंपिंग स्टेशन न्यू बैरहना के नाम से बना दिया गया है.
ठीक इसके पीछे तालाब को पाट करके ही पानी की टंकी भी बनाई गई है. इतना ही नहीं, आरटीआई में दी गई सूचना इस तालाबी नंबर पर एक धर्मशाला के साथ 15 लोगों के मकान भी बताए गए हैं.
बात यहीं से खत्म हो जाती तब पर भी ठीक था. मौके पर जाकर देखने से पता चलता है कि तालाब में चारों तरफ से लोग बढ़ते ही जा रहे हैं. तालाब के सिकुडऩे की एक अहम वजह यह भी है.
अब ऐसी स्थिति में प्रशासन द्वारा वाटर रिचार्जिंग के मद्देनजर तालाबों को संरक्षित करने का अपाला जाने वाला राग महज छलावा ही कहा जा सकता है.
इस तालाब की कंडीशन प्रशासनिक उपेक्षा व कागजी खानापूर्ति की हकीकत को बयां कर रही है.
तालाब नवल राय की यह कंडीशन तब है जब वाटर रिचार्जिंग के अभाव में शहर का भू-जल स्तर तेजी से खिसक रहा है.
हालात के मद्देनजर सवाल यह उठता है कि तालाब के इस कंडीशन का दोषी कौन है? जिला प्रशासन की उपेक्षा या नगर निगम की अनदेखी, अथवां लेखपाल की मनमानी.

तालाब नवल राय हमारे ही वार्ड में है. जुलाई में मैं खुद जलकुंभी की सफाई कराया था. क्षेत्र में सीवर की समस्या थी. इस लिए जगह के अभाव में सीवेज पंपिंग स्टेशन यहां बनाया गया. यह सच है कि तालाब धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है.
मुकेश कुमार
पार्षद कृष्णा नगर