अशुभ का संकेत

प्राचीन किंवदंती के अनुसार इस ‘सुपर ब्लड मून’ को संभावित प्रलय का अशुभ संकेत माना जाता है। इससे पहले ‘सुपर मून’ के साथ पूर्ण चंद्र ग्रहण 33 वर्ष पूर्व पड़ा था और पिछले 115 वर्षों में ऐसा मात्र 5 बार हुआ है।

 

चंद्रमा पर नहीं पड़ती सीधे रोशनी

‘सुपर ब्लड मून’ केवल तभी देखने को मिलता है। जब चंद्र ग्रहण हो और जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के निकटतम बिंदु पर हो। चंद्रमा जैसे ही पृथ्वी के ठीक पीछे इसकी छाया में आता है तो रंग गहरा लाल हो जाता है। इसका कारण यह है कि चंद्रमा पर सीधे सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती है बल्कि पृथ्वी के वायुमंडल से अपवर्तित होकर ही सूर्य की रोशनी पहुंच पाती हैं।

 

एक घंटा 12 मिनट तक होगा

नासा के वैज्ञानिकों ने कहा कि चंद्रमा की कक्षा पूरी तरह गोल नहीं है। इसलिए यह कभी कभी कक्षा में चक्कर लगाते समय अपेक्षाकृत पृथ्वी के अधिक नजदीक होता है और बड़ा दिखाई देता है। इस बार असामान्य बात यह है कि सुपरमून के साथ-साथ पूर्ण चंद्र ग्रहण भी पड़ रहा है। इस प्रकार की घटनाएं 1900 के बाद से केवल 5 बार (1910, 1928, 1946, 1964 और 1982 में) हुई हैं। पूर्ण चंद्रग्रहण रविवार रात को 10 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगा और 1 घंटा 12 मिनट तक रहेगा।

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