- शहर के 38 चौराहों के आइलैंड पर नहीं है छतरी

- कड़कती धूप में ड्यूटी करने को मजबूर हैं ट्रैफिककर्मी

- खुद का कोई फंड न होने की वजह से ट्रैफिक डिपार्टमेंट मजबूर

LUCKNOW: जेठ की तपती दोपहरीशहर का टेम्परेचर ब्क्.फ् डिग्री सेल्सियसगर्म हवा का थपेड़ा ऐसा मानो किसी ने जोरदार तमाचा जड़ दिया होअगर आपसे पूछा जाए कि ऐसे मौसम में आप क्या करेंगे तो आपका जवाब शर्तिया यही होगा कि अगर कोई बेहद जरूरी काम नहीं होगा तो एसी रूम से बाहर नहीं निकलेंगे। पर, ठीक इन्हीं कंडीशन में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कड़कती धूप में अपनी ड्यूटी को अंजाम दे रहे होते हैं। हम बात कर रहे हैं ट्रैफिक पुलिस के जवानों की। हैरानगी की बात यह है कि इन जवानों को धूप से बचाने के लिये चौराहों के आइलैंड पर छतरी तक मौजूद नहीं है। ऐसे में भीषण गर्मी के चलते ट्रैफिक कर्मियों का हीट स्ट्रोक का शिकार होना जारी है।

फ्8 चौराहे हैं छतरी विहीन

शहर की बदहाल ट्रैफिक सिस्टम को संभालने की जिम्मेदारी निभाने के लिये ट्रैफिक कर्मियों का टोटा तो है ही, जो कर्मी मौजूद हैं उनके लिये भी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। हालात यह हैं कि शहर के फ्8 चौराहों पर ट्रैफिक आइलैंड तो मौजूद हैं लेकिन, धूप और पानी से बचाने के लिये उन पर छतरी मौजूद नहीं है। ऐसे में इन चौराहों पर ट्रैफिक गवर्न करने के लिये तैनात होने वाले ट्रैफिक कर्मियों को दिनभर धूप में झुलसना पड़ता है। जिस वजह से कई ट्रैफिक कर्मी हीट स्ट्रोक का भी शिकार हो चुके हैं। बीते दो दिनों में भी तीन जवानों को ड्यूटी के दौरान ही उठाकर हॉस्पिटल पहुंचाना पड़ा। हॉस्पिटल पहुंचने वालों में रविवार को हजरतगंज चौराहे से लालजी सरोज और सोमवार को लालबत्ती चौराहे से संजय कुमार और शेख ततउवर को बुरी हालत में हॉस्पिटल पहुंचाना पड़ा।

नहीं है खुद का फंड

जवानों की इस दुर्दशा को देखने के बाद भी ट्रैफिक ऑफिसर्स इस प्रॉब्लम को दूर करने में खुद को असहाय पाते हैं। दरअसल, ब्ख् लाख की आबादी वाले इस शहर का ट्रैफिक सिस्टम की जिम्मेदारी संभालने वाले ट्रैफिक डिपार्टमेंट के पास अपना खुद का कोई फंड ही नहीं है। उसे आइलैंड बनवाने, उन पर छतरी लगवाने, डिवाइडर कोन, नाइट जैकेट और स्पीड ब्रेकर लगवाने के लिये नगर निगम, एलडीए और कॉरपोरेंट कंपनीज की ओर ताकना पड़ता है। एक ऑफिसर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि चालान के जरिए वे लोग हर महीने लाखों रुपये गवर्नमेंट के खजाने में जमा करते हैं, लेकिन इसके बदले उन्हें मामूली जरूरतों के लिये भी कोई फंड का न मिलना निराशा की बात है।

सताती हैं मूर्तियां

आइलैंड पर छतरी न होना ट्रैफिककर्मियों के लिये एक बड़ी समस्या है ही, इसके अलावा शहर के चौराहों पर बीएसपी और बीजेपी के शासनकाल में लगवाई गई मूर्तियां भी ट्रैफिककर्मियों को कम परेशान नहीं कर रहीं। असल में बीच चौराहे पर पैडस्टल बनाकर लगाई गई इन मूर्तियों की वजह से ट्रैफिक आइलैंड मूर्ति के एक तरफ स्थापित कर दिये गए। मूर्ति के एक तरफ होने की वजह से आइलैंड पर ड्यूटी कर रहे ट्रैफिक जवान को रोड के दूसरे सिरे की ओर देखने के लिये बार-बार आइलैंड से नीचे उतरना पड़ता है। पर, मामला पॉलिटिकल होने की वजह से कोई भी ऑफिसर इसके बारे में सोचना भी मुनासिब नहीं समझता।