मुशर्रफ के ख़िलाफ़ मंगलवार से देशद्रोह के आरोपों में मुकदमा शुरू होना था.

इससे पहले अदालत ने उनकी इस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि केवल सैन्य अदालत में ही उनका मुकदमा चल सकता है.

यह अभियोग उन पर वर्ष 2007 में संविधान को निलंबित कर आपातकाल लगाने के मामले में चलाया जाएगा.

कई अन्य मामलों में ज़मानत पा चुके परवेज़ मुशर्रफ़ ने कहा, "मुझ पर सभी आरोप राजनीति से प्रेरित हैं."

70 वर्षीय  मुशर्रफ पर इसके अलावा हत्या और न्यायालय पर बंदिशें लगाने के भी आरोप हैं.

पाकिस्तान में पहली बार किसी पूर्व सैन्य शासक पर देशद्रोह का मुक़दमा चलाया जा रहा है.

असफल दलील

परवेज़ मुशर्रफ ने एक सैन्य तख्तापलट में 1999 में सत्ता हासिल की थी और वह 2008 तक देश के राष्ट्रपति रहे. इसके बाद एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार ने उन्हें इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर दिया.

"मैंने जो भी किया वह पाकिस्तान के और पाकिस्तान की जनता की भलाई और कल्याण के लिए था"

-परवेज़ मुशर्रफ

इसके तुरंत बाद वह देश से बाहर चले गए थे.

सोमवार को उनके वकील ने यह दलील दी थी कि 2007 में सेना प्रमुख होने के कारण मुशर्रफ के ख़िलाफ केवल एक सैन्य अदालत को ही उन पर मुकदमा चलाने का अधिकार प्राप्त है.

लेकिन इस्लामाबाद के उच्च न्यायालय ने उनकी यह दलील ख़ारिज कर दी. न्यायालय ने जजों और वकीलों की नियुक्ति पर उठाई गई आपत्ति को भी ख़ारिज कर दिया.

2008 में इस्तीफ़ा देने के बाद परवेज़ मुशर्रफ़ स्वघोषित निर्वासन के तहत दुबई और लंदन में रहे.

'मैं भागूँगा नहीं'

इस साल में मार्च में आम चुनावों में हिस्सा लेने के लिए वो पाकिस्तान लौटे लेकिन उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया.

मुशर्रफ के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुकदमा टला

वह अपने शासन काल से संबंधित बहुत से आरोपों का सामना भी कर रहे हैं.

पिछले हफ़्ते परवेज़ मुशर्रफ ने अपने नौ साल के शासन काल के दौरान किए गए कार्यों का बचाव किया था.

उन्होंने कहा, "मैंने जो भी किया वह पाकिस्तान के और पाकिस्तान की जनता की भलाई और कल्याण के लिए था."

उन्होंने पाकिस्तान के एक निजी टीवी चैनल एआरवाई से कहा, " मैं सभी मुकदमों का सामना करूँगा, मैं भागूंगा नहीं."

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