लखनऊ (ब्यूरो)। योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में इस बार दूसरे दलों से आए नेताओं से ज्यादा पार्टी के निष्ठावान और मेहनती विधायकों को तवज्जो दी गयी है। सरकार गठन के दौरान तमाम बाहरी नेताओं को मंत्री बनाए जाने से उपजी नाराजगी को इस बार दूर करने का प्रयास किया गया है। खास बात यह है कि मंत्रियों के चुनाव में उनके कामकाज का खासा ध्यान रखा गया है। उदाहरण के तौर पर संत कबीरनगर के इटवा से चुनकर आए सतीश द्विवेदी को राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है जिन्होंने विद्यार्थी परिषद से अपने सियासी सफर की शुरुआत के बाद विधानसभा चुनाव में सपा के वरिष्ठ नेता एवं तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय को करारी शिकस्त दी थी। वहीं रमाशंकर सिंह पटेल पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के गढ़ मिर्जापुर से जीत हासिल करके आए हैं। इसके अलावा आनंद स्वरूप शुक्ला ने सपा का किला माने जाने वाले बलिया से चुनाव जीता था।

काम के बदले मिला प्रमोशन

मंत्रिमंडल विस्तार में प्रमोशन पाकर कैबिनेट में जगह पाने वाले मंत्रियों की बात करें तो पहला नाम ग्राम्य विकास मंत्री डॉ। महेंद्र सिंह का आता है। उन्होंने अपने विभाग में किए गये तबादलों के जरिए नई मिसाल कायम की जिसे अब बाकी विभाग भी अपनाने जा रहे है। वहीं लगातार देश भर में होने वाले चुनावों में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। असम में बतौर चुनाव प्रभारी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया था। इसी तरह सुरेश राणा ने प्रदेश के गन्ना किसानों की वर्षों से चली आ रही समस्याओं को दूर करने के लिए तमाम ऐसे प्रयास किये जिससे वे मुख्यमंत्री के पसंदीदा मंत्रियों में शुमार हो गये। गन्ना किसानों को सालों से बकाया भुगतान कराने के साथ बंद पड़ी चीनी मिलों को खुलवाने में उन्होंने खासी मेहनत की। यही वजह है कि ढाई साल के दौरान विपक्ष या किसान गन्ने के मुद्दे पर कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर पाए जो प्रदेश में हर साल एक परंपरा बन चुका था। वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष एवं कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के बगावती तेवरों के बाद अनिल राजभर ने उनको करारा जवाब देकर पार्टी की नजरों में अपने नंबर बढ़ा लिए। वहीं भूपेंद्र चौधरी ने भी घोटालों का गढ़ बन चुके पंचायती राज विभाग का कायाकल्प किया। खासकर केंद्र सरकार की योजनाओं को उन्होंने समय रहते अमली जामा पहनाया।

क्षेत्रीय समीकरणों का भी ध्यान

मंत्रिमंडल विस्तार में क्षेत्रीय समीकरणों का भी खासा ध्यान रखा गया है। पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर, आगरा, फतेहपुर सीकरी, बुलंदशहर, बदायूं, शामली के विधायकों को मंत्री बनाया गया है तो वाराणसी के तीन विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल कर पीएम के संसदीय क्षेत्र को भी तोहफा दिया गया है। बुंदेलखंड क्षेत्र के दो विधायकों को भी मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है। वहीं कानपुर नगर और कानपुर देहात को भी प्रतिनिधित्व देने में कंजूसी नहीं बरती गयी।

जातीय गणित भी साधा

पहले मंत्रिमंडल विस्तार में शपथ लेने वाले 23 मंत्रियों के जरिए राज्य सरकार ने जातीय गणित भी दुरुस्त करने के प्रयास किए है। शपथ लेने वालों में छह ब्राह्मण, तीन वैश्य, दो क्षत्रिय, एक गुर्जर, एक पाल, दो कुर्मी, दो जाट, एक राजभर, एक कश्यप और एक लोध के साथ अनुसूचित जाति के तीन मंत्री हैं। वहीं यदि पूरे मंत्रिमंडल की बात करें तो कुल 56 मंत्रियों में 27 अगड़े, 21 पिछड़े और सात अनुसूचित जाति के मंत्रियों के अलावा एक मुस्लिम मंत्री शामिल हैं।

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