- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के चौकानें वाले आंकड़े

- देश में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर

आगरा। मेट्रो सिटी का रूप ले रही ताज नगरी का भविष्य बीमार है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 की रिपोर्ट के अनुसार आगरा में 0 से 5 वर्ष के बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इनकी संख्या 44.7 प्रतिशत है। इसमें 34.8 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है। रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को कुपोषण में दूसरा राज्य बताया गया है। यहां 46.3 प्रतिशत बच्चे (0-5 वर्ष) कुपोषण के शिकार हैं, वहीँ 39.5 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय प्रत्येक 10 वर्ष में कुपोषण से जुड़ी रिपोर्ट तैयार कराता है। इसमें पहली बार जिलेवार रिपोर्ट तैयार की गई है। आगरा में 3 फरवरी 2016 से लेकर 17 सितंबर 2016 तक सर्वे परिवार, महिलाओं और पुरुषों का सर्वे किया गया। इसमें शहर और ग्रामीण दोनों इलाकों को शामिल किया गया और अब रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इसमें आगरा का भविष्य स्वास्थ्यगत कारणों से कमजोर है। इसकी वजह अधिकांश नवजात को मां का दूध नहीं मिलना है। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में कुपोषण के कारणों की जांच करके उनका खुलासा किया गया है।

81.4 प्रतिशत नवजातों को मां का दूध नसीब नहीं

आगरा के 81.4 प्रतिशत मासूमों को जन्म के तुरंत बाद मां का गाढा और पीला दूध नसीब नहीं होता है। मासूमों को दूध नहीं मिलने के कारण वे अन्य बीमारियों से भी ग्रसित और कुपोषित हो जाते हैं। स्वास्थ्य संबंधी बीमारी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जबकि उप्र में यह रेशियो 75 प्रतिशत है।

बच्चे-महिलाएं जूझ रही खून की कमी से

जिले में 0-5 वर्ष तक के बच्चों में 51.7 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है। बच्चों में खून की कमी का सीधा कारण खानपान है। वहीं परिवार में अनुपलब्धता को भी दर्शाता है। वहीं राज्य में 63.2 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है। आगरा में 43.3 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में सर्वे के दौरान खून की कमी पाई गई। इसका ही खराब असर जन्म लेने वाले बच्चों पर पड़ा है।

75 जिलों में हुआ सर्वेक्षण

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 प्रदेश के हर जिले में किया गया है। इसमें बुंदेलखंड जिलों में कुपोषण की स्थिति काफी दयनीय है। वहीं पश्चिम उत्तर प्रदेश का आंकड़ा भी चिंतनीय है।

कुपोषण में टीकाकरण फैक्टर भी

जन्म के तुरंत बाद कई रोगों से दूर रखने के लिए नवजात को टीका लगाया जाता है। लेकिन रिपोर्ट बताती है कि जिले में 60.9 प्रतिशत बच्चों को ही पूर्ण टीकाकरण का लाभ मिला है। यहां पूर्ण टीकाकरण की प्रक्रिया में बीसीजी, पोलियो, खसरा, टिटनेस, हेपटाईटिस बी, विटामिन ए सहित कई टीके लगाए जाते हैं। जिससे बच्चों को बीमारियों से सुरक्षा मिलती है। जबकि इसका प्रतिशत राज्य में 51.1 है।

प्रसव से पहले जांच में भी पिछड़ा

रिपोर्ट में कुपोषण से जुड़े एक-एक बिंदु पर सर्वे किया है। इसमें गर्भवती महिलाओं में प्रसव से पहले होने वाली चार जांच को भी अपने दायरे में रखा है। इस जांच में गर्भ के भीतर सांस ले रहे बच्चे की सही स्थिति पता चलती है, लेकिन राज्य में सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से इन जांचों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है। जिले में सिर्फ 37.2 प्रतिशत महिलाओं का ही प्रसव से पहले 4 महत्वपूर्ण जांच संभव हो रही है। वहीं राज्य में ये आंकड़ा महज 26.4 प्रतिशत है।

21 फीसदी लड़की उम्र से पहले ब्याही

जांच के दौरान जिले का एक कड़वा सच सामने आया। जानकारी मिली कि आगरा जिले में 21.3 प्रतिशत लड़कियों की शादी अब भी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है। इससे ऐसी शादीशुदा लड़कियों के ऊपर मानसिक, स्वास्थ्यगत कुप्रभाव पड़ता है। साथ ही सबसे अधिक परेशानी कम उम्र में महिला के गर्भवती होने पर शुरू होती है।