जोधपुर झाल पुराने रूप में लौटा
जलाधिकार फाउंडेशन के आगरा चैप्टर की वर्ष 2015 में शुरुआत की गई। सेक्रेटरी इंजीनियर दिवाकर तिवारी ने बताया कि शुरुआत स्कूल-कॉलेज से हुई। यहां अवेयरनेस प्रोग्राम किए जाते थे। बच्चों और टीचर्स को यमुना बचाने, ग्राउंड वॉटर रिचार्ज, सेव वॉटर आदि के बारे में अवेयर किया जाता था। संस्था की ओर से बड़ा कार्य जोधपुर झाल को लेकर किया गया। 1967 से किसानों का इस जमीन पर कब्जा था। ये सिंचाई विभाग की जमीन थी, अंग्रेजों के समय में ये रिजर्व वायर हुआ करता था। यहां बड़ी मात्रा में पानी को स्टोर किया जाता था। जोधपुर झाल के दोनों तरफ नहरें बहती हैं। नहरों का जो ओवरफ्लो होता था, उसे जोधपुर झाल में स्टोर किया जाता है। 2016 में प्रकरण संज्ञान में आया। इसके बाद संस्था की ओर से इसे कब्जा मुक्त कराने का प्रयास किया गया। इसे दोबारा से झील का स्वरूप दिया गया। मौजूदा समय में वहां पानी का रिजर्व वायर है। अब ये विदेशी पक्षियों के प्रवास का फेवरेट स्पॉट बन गया है। इसके साथ ही कीठम से ओवरफ्लो होकर पानी यमुना की ओर जाता है। यहां चेकडैम बनाने का प्रयास किया जा रहा है। सिकं दरा इंडस्ट्रियल एरिया में नहर को बड़े तालाब का स्वरूप देने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे शास्त्रीपुरम और सिकंदरा क्षेत्र में पानी की उपलब्धता पर्याप्त हो सके। इसके साथ ही उखर्रा नहर को लेकर भी लगातार प्रयास किया जा रहा है।

गंगाजल से सुधरी स्थिति
शहर में ग्राउंड वॉटर की स्थिति के बारे में सेक्रेटरी इंजीनियर दिवाकर तिवारी कहते हैं गंगाजल की सप्लाई शुरू होने के बाद ग्राउंड वॉटर की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन ये मामूली है। क्योंकि अब लोगों की सबमर्सिबल पर निर्भरता कम हुई है। लेकिन शहर में गंगाजल की बर्बादी की जा रही है। गंगाजल शहर में पीने के पानी के रूप में लाया गया था। लेकिन पीने के पानी को रोजमर्रा के कार्यों में यूज किया जा रहा है। गंगाजल में भी सीमित पानी है। गंगाजल की हो रही बर्बादी को रोका जाना चाहिए।

आरडब्ल्यूएच के लिए देते हैं टेक्निकल गाइडेंस
जलाधिकार फाउंडेशन के सेक्रेटरी इंजी दिवाकर तिवारी ने बताया कि हर किसी को घर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग बनाना चाहिए। इसमें खर्चा भी अधिक नहीं आता है। संस्था पदाधिकारियों की ओर से लोगों को अवेयर करने के साथ रेन वॉटर हार्वेस्टिंग डेवलप करने के प्रति टेक्निकल गाइडेंस भी दी जाती है। अगर एक हजार स्क्वायर फीट की रूफ है तो रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम में आठ से 11 हजार रुपए का खर्चा आता है। छत से बारिश के पानी के लिए पाइप तो वैसे भी लगाया जाता है। इस पाइप को सीवेज की जगह पिट्स कर उससे जोडऩा होता है। इन पिट्स को एक बोरिंग से जोड़ा जाता है। बोरिंग की गहराई 70 से 80 फीट होनी चाहिए। अगर सबमर्सिबल की पुरानी बोरिंग है तो उसका भी यूज किया जा सकता है। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार हो जाता है।


ये किया जाए
- यमुना की 5 फीट से 25 फीट तक डीसिल्टिंग की जाएगी, नदी के बेड पर प्लास्टिक जमी हुई है, इसकी सफाई करने की जरूरत है
- जितने भी वॉटर रिजर्व वायर हैं। तालाब, नहरें, झील आदि उनकी सफाई हो, जिससे पानी जमीन में जा सके।
- यमुना पर जल्द से जल्द बैराज का निर्माण किया जाए, जिससे शहर का ग्राउंड वॉटर रिचार्ज हो सके
- घरों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार किया जाए

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आगराइट्स को नदी से जोड़ा
शहर में यमुना नदी बदहाली का शिकार है। जीवनदायिनी यमुना का पल-पल दम घुट रहा है। ऐसे में लोगों को नदी से जोडऩे और उसका महत्व बताने के लिए पर्यावरणविद् ब्रज खंडेलवाल के मार्गदर्शन में वर्ष 2014 में रिवर कनेक्ट कैंपेन की शुरुआत की गई। इस कैंपेन के तहत नदी को बचाने के लिए आमजन को साथ लाया गया। यमुना आरती की शुरुआत की गई। आज भी नदी के किनारे स्थित यमुना आरती स्थल पर रोज आरती की जाती है। जो लोग पहले नदी में कूड़ा व अन्य सामान डालकर गंदा करते थे, अब वह यमुना की आरती में उमड़ते हैं। शहर और शहरवासियों के लिए नदी का महत्व किस तरह आवश्यक है इसको लेकर भी कैंपेन जरिए लोगों को अवेयर किया गया। इसबार ताज महोत्सव के तहत हरिद्वार-वाराणसी की तर्ज पर पहली बार आरती स्थल पर भव्य आरती का आयोजन किया गया, जिसका मनमोहक दृश्य देखते ही बनता था। कैंपेन के संयोजक ब्रज खंडेलवाल ने बताया कि शहर का ग्राउंड वॉटर सुधारना है तो उसके लिए जरूरी है कि यमुना नदी में पानी रहे। इससे पहले जरूरी है कि नदी के बेड की सफाई की जाए। डीसिल्टिंग हो। नदी का बेड गाद और प्लास्टिक से भरा हुआ है। जिसके चलते मॉनसून के समय जो भी पानी आता है, वह जमीन के नीचे नहीं जा पाता।

ग्राउंड वॉटर की स्थिति बदहाल
पर्यावरणविद् ब्रज खंडेलवाल ने बताया कि शहर में ग्राउंड वॉटर की स्थिति बदहाल है। यमुना किनारे के कई एरियाज में भी पानी 300 फुट तक पहुंच चुका है। ऐसे में लोगों को इसको लेकर अवेयर होने की आवश्यकता है।
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ओवर एक्सप्लॉइटेड कैटेगिरी में शहर
शहर ओवर एक्सप्लॉइटेड कैटेगिरी में है। यानी जितना पानी जमीन से निकाला जाना चाहिए, उससे ज्यादा ग्राउंड वॉटर का यूज किया जा रहा है। एक्सपट्र्स ने बताया कि ये अलार्मिंग सिचुएशन है। जबकि 2017 में शहर क्रिटिकल कैटेगिरी में था। हालात तेजी से बदत्तर हो रहे हैं। शहर में ग्राउंड वॉटर अब 65 से 70 मीटर के बाद ही मिलता है। कई एरियाज में ये आंकड़ा 100 के आसपास तक पहुंच गया है। जिससे पानी की क्वालिटी में भी गिरावट आ रही है। ऐसे में काक

क्या है इनका मतलब
सेफ: सेफ जोन वह है जहां ग्राउंड वॉटर की अवेलेबिलिटी का 50 परसेंट से कम पानी का यूज (जमीन से निकाला गया) है। एक एग्जामपल से इस तरह समझा जा सकता है कि अगर कहीं ग्राउंड वॉटर में 100 लीटर की अवेलिबिलिटी है, उसमें से 50 लीटर से कम पानी निकाला जाता है तो ये सेफ जोन है।

सेमी-क्रि टिकल: ये वह कैटेगिरी है जब अवेलेबल ग्राउंड वॉटर का 50 से 70 परसेंट पानी निकाला जाए। ये सेमी क्रिटिकल में आता है। इसे शुरुआती तौर पर चेतावनी माना जाता है। इस कैटेगिरी में सुधार के लिए 100 परसेंट ग्राउंड वॉटर के रिचार्ज की आवश्यकता होती है। यानी अगर कहीं अवेलेबिलिटी 100 लीटर है तो उसमें 100 लीटर पानी का रिचार्ज करने की ही आवश्यकता होगी।

क्रिटिकल: इसमें अवेलेबल वॉटर के दोहन का आंकड़ा 70 से 90 परसेंट तक पहुंच जाता है। क्रिटिकल जोन में एक्शन लेने की जरूरत होती है। जिससे हालत में सुधार लाया जा सके। इस कैटेगिरी से बाहर निकलने के लिए 150 परसेंट रिचार्ज की आवश्यकता होती है।

ओवर एक्सप्लॉइटेड: इसमें ग्राउंड वॉटर के यूज की डिमांड 100 परसेंट तक पहुंच जाती है या इसे भी क्रॉस कर जाती है। ये सबसे खराब कैटेगिरी है। इसमें 200 परसेंट ग्राउंड वॉटर रिचार्ज होना चाहिए। तभी स्थिति में सुधार हो सकता है।

क्या है वॉटर रिचार्ज?
जिस तहर जमीन से पानी निकाला जाता है, उसी तरह जमीन में पानी भी पहुंचता है, उसे ग्राउंड वॉटर रिचार्ज कहते हैं। ग्राउंड वॉटर रिचार्ज कई तरीके से होता है। इसमें रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, नहर, तालाब, बारिश, नदी आदि मुख्य भूमिका निभाते हैं।

वॉटर रिचार्ज के तरीके
- रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
- नहर
- तालाब
- बारिश
- नदी
- चेक डैम
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असेसमेंट यूनिट नेम कैटेगिरीज

अछनेरा --- सेमी क्रिटिकल
आगरा सिटी---- ओवर एक्सपलॉइटेड
अकोला- ओवर एक्सपलॉइटेड
बाह-क्रिटिकल
बरौली अहीर - ओवर एक्सपलॉइटेड
बिचपुरी-ओवर एक्सपलॉइटेड
एत्मादपुर -ओवर एक्सपलॉइटेड
फतेहाबाद -ओवर एक्सपलॉइटेड
फतेहपुर सीकरी -ओवर एक्सपलॉइटेड
जगनेर -सेमी क्रिटिकल
जैतपुर कलां -क्रिटिकल
खंदौली-ओवर एक्सपलॉइटेड
खेरागढ़-सेमी क्रिटिकल
पिनाहट -सेमी क्रिटिकल
सैंया- ओवर एक्सपलॉइटेड
शमसाबाद -ओवर एक्सपलॉइटेड

नोट:::(सेंट्रल ग्राउंड वॉटर रिसोर्स द्वारा वर्ष 2022 में ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट की रिपोर्ट में बताई गई स्थिति.)
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इन भवनों में जरूरी है रेन वॉटर हार्वेस्टिंग
रेन वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर लोगों में जागरूकता आई है। सरकारी विभागों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के निर्माण के साथ अब प्राइवेट बिल्डिंग में भी इस सिस्टम को डेवलप किया जा रहा है। 300 स्क्वायर मीटर या इससे अधिक क्षेत्र में भवन निर्माण कराने के लिए नक्शा पास कराने को एडीए में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का सिक्योरिटी मनी डिपोजिट किया जाता है। जो इसकी गारंटी होता है कि मकान स्वामी की ओर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम डेवलप किया जाएगा। निर्माण पूरा होने के बाद उसे ये सिक्योरिटी मनी वापस मिल जाता है। वहीं, पुराने भवनों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को लेकर कोई कार्रवाई नहीं होती। एडीए की ओर से नक्शा पास के लिए आने वाले आवेदनों पर ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग सुनिश्चित किया जाता है।


कौन सी छत कितना पानी समेटेगी
एरिया रिचार्ज हेतु अवेलेबल रेन वॉटर
100 80 हजार
200 1.6 लाख
300 2.4 लाख
500 4 लाख
1000 8 लाख

नोट:: एरिया स्क्वायर मीटर में व रेन वॉटर लीटर प्रतिवर्ष दिया गया है.

ग्राउंड वाटर में शहर के सबसे प्रभावित क्षेत्र

- कु ंडौल: 52.85 मीटर
- अमरपुरा: 45.82 मीटर
- विजय नगर: 37.62 मीटर
- पीडब्ल्यूडी ऑफिस: 37.78 मीटर

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इस तरह रहता है साइकिल
प्री मानसून
मई-जून

पोस्ट मानसून
अक्टूबर-नवंबर


आगरा सिटी

प्री मॉनसून-2022
27.74

पोस्ट मॉनसून-2022
27.49

प्री मॉनसून-2023
27.46

पोस्ट मॉनसून-2023
26.27


कं क्रीट का बिछाया जाल
शहर जिस तरह विकास की राह पर आगे बढ़ा, उसी तरह प्राकृतिक संसाधनों की कमी होने लगी। इसमें सबसे प्रमुख ग्राउंड वाटर है। शहर में ग्राउंड वाटर किस तरह विकराल स्थिति में पहुंच चुका है, इसका अंदाजा आंकड़ों से लगाया जा सकता है। कुंडौल स्थित डीएवी इंटर कॉलेज में ग्राउंड वाटर 56.59 मीटर पर पहुंच चुका है। अमरपुरा में ये वॉटर लेवल 45.82 मीटर तक जा चुका है। शहर के अन्य एरियाज की भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति है। शहर में तेजी से बढ़ रहा कंक्रीट का जाल भी इसकी वजह है। पहले सड़क किनारे फुटपाथ की जगह मिट्टी की होती थी या फिर ईंट से बना फुटपाथ भी होता था, तो बारिश का पानी उससे रिस कर जमीन में जाया करता था। जमीन इस पानी को सोख लेती थी। लेकिन विकास के दौर में सभी फुटपाथ पक्के हो गए हैं। इन्हें सीसी का बना दिया गया है या फिर सीमेंटेड इंटरलॉकिंग टाइल्स लगा दिए गए हैं, जिससे पानी तो छोडि़ए बारिश की एक बूंद भी जमीन में जाना मुमकिन नहीं है।

सड़क किनारे बनाए जा सकते हैं रेन वाटर हार्वेस्टिंग के पिट्स
सड़क किनारे रेन वाटर हार्वेस्टिंग के पिट्स (गड्ढे) बनाए जा सकते हैं। इससे बारिश के दौरान नालियों में बहने वाला पानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग के इन पिट्स के जरिए जमीन में चला जाए। लेकिन शहर में इसको लेकर अनदेखी की जा रही है। अगर ताजनगरी में इस व्यवस्था को लागू किया जाए तो न सिर्फ बारिश का पानी बर्बाद होने से बचाया जा सकेगा, बल्कि शहर के ग्राउंड वाटर में भी इजाफा होगा।
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रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तो सभी को घर में बनवाना चाहिए। इसमें कोई अधिक खर्चा भी नहीं आता है। आरडब्ल्यूएच बनने से शहर में वॉटर लेवल बढ़ेगा।
शिवम द्विवेदी, सीनियर जियोफिजिसिस्ट व नोडल अधिकारी ग्राउंड वॉटर डिपार्टमेंट

ग्राउंड वॉटर एक प्राकृतिक संपदा है। इसे सहेजेन के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले यमुना नदी की बदहाली को दूर किया जाए। नदी की डीसिल्टिंग हो, जिससे बारिश का पानी जमीन में जा सके।
डॉ। देवाशीष भट्टाचार्य, पर्यावरणविद्


ग्राउंड वॉटर की स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक है कि तालाब, नहरें, नदी और जो भी वॉटर रिजर्व वायर हैं, उनकी सफाई की जाए, जिससे पानी जमीन में जा सके। संस्था की ओर से रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को लेकर टेक्निकल गाइडेंस भी दी जाती है।
इंजी दिवाकर तिवारी, सेक्रेटरी, जलाधिकार फाउंडेशन

यमुना नदी की डीसिल्टिंग होनी चाहिए। नदी में लगातार पानी छोड़ा जाना चाहिए। नदी पर बैराज का भी जल्द निर्माण शुरू होना चाहिए।
ब्रज खंडेलवाल, संयोजक, रिवर कनेक्ट कैंपेन

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