कलेक्ट्रेट पर पेरेंट्स ने किया प्रोटेस्ट
स्कूलों में फीस और बुक्स की मनमानी को लेकर पेरेंट्स ने सामाजिक संस्था के साथ प्रदर्शन किया। वहीं जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के खिलाफ नारे लगाए। वहीं सात सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। इसमें दस फीसदी फीस वृद्धि की मांग की गई थी, वहीं बुक्स पर बीस फीसदी रेट कम करने का हवाला दिया गया था। जिला बेसिक शिक्षाधिकारी जितेन्द्र गौड ने समस्या निस्तारण का आश्वासन दिया है।

बुक्स और फीस वृद्धि का विरोध
बुक्स और फीस वृद्धि को लेकर सामाजिक संस्था के साथ पेरेंट्स ने जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। पेरेंट्स ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों के खिलाफ नारे लगाए। प्रदर्शन को देख अधिकारी और फीस, ड्रेस के साथ ही बुक्स और स्टेशनरी की महंगाई पेरेंट्स को परेशान कर रही है। निजी पब्लिशर की बुक्स के रेट में 70 से 80 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके अलावा स्टेशनरी के दाम भी पिछले साल के मुकाबले बढ़े हैं।

ऐसे में स्कूल में पढ़ाना मुश्किल
पेरेंट्स तनिषा ने बताया कि नए सत्र में बच्चों की पढ़ाई शुरू होने से पहले पेरेंट्स अपनी जरूरतें कम करके एडमिशन, फीस, बुक्स, स्टेशनरी समेत कई जरूरी चीजों पर ध्यान दिया जाता है। हर बार महंगाई बढऩे के चलते उनका पूरा बजट बिगड़ जाता है। बुक्स के बढ़े दाम के अलावा स्कूलों की ओर से तय दुकानों पर फिक्स रेट से सिलेबस मिलने से पेरेंट्स पर दोगुना असर पड़ रहा है। मेरे एक बेटी है, जिसका खर्च एक साल में 1.65 लाख है, अब सत्तर से अस्सी फीसदी इजाफा हुआ है, ऐसे में बच्चों को स्कूल में पढ़ाना मुश्किल है।

एक बुक्स कम तो प्रिंसिपल से साइन
पेरेंट्स ज्योति ने बताया कि बच्चों की सभी बुक्स स्कूल से ही खरीदने का फरमान है। इसके अलावा बुक्स के पूरे सेट से एक भी बुक्स कम लेनी हो उन्हें प्रिंसिपल से साइन कराने को कहा जाता है। इसके बाद प्रिंसिपल बच्चों के भविष्य पर भावुक करके पुरानी बुक्स के कारण बुक्स का पूरा सेट लेने के लिए कहते हैं।

स्कूल वाले बदल देते हैं पब्लिशर
कई बार स्कूल बुक्स की ब्रिकी बढ़ाने के लिए पब्लिशर और लेखक बदलने के लिए वेंडर से समझौता कर लेते हैं। इसके लिए स्कूल का कुछ कमीशन फिक्स कर दिया जाता है। प्रकाशक या लेखक बदलने से पेरेंट्स को फिर सारी नई बुक्स खरीदनी पड़ती हैं।

विजिटिंग कार्ड लेकर घूम रहे पेरेंट्स
शहर में ज्यादातर स्कूलों की अपनी निर्धारित बुक्स और स्टेशनरी के वेंडर है। स्कूल अपनी छवि बचाने के चक्कर में अपने परिसर में बुक्स न बेचकर बाजार में कोई वेंडर निर्धारित कर लेते हैं। स्कूल का नाम और क्लास बताने पर दुकानदार बिना कुछ पूछे ही बुक्स का पूरा सेट निकालकर रख देते हैं। हद तो तब हो गई जब कई पेरेंट्स दुकानों का विजिटिंग कार्ड लिए बाजार में घूमते नजर आ रहे थे।

1100 रुपए का वार्षिक कलेंडर
स्कूल में पढ़ाई से लेकर ट्यूशन तक में रजिस्टर का साथ रहता है। सबसे ज्यादा प्रयोग होने के साथ रजिस्टर के ही दाम ज्यादा बढ़ते हैं। बाजार में पिछले साल 80 रुपए वाला रजिस्टर अब 130 रुपए में बिक रहा है। वहीं स्कूल का कलेंडर ग्यारह सौ रुपए का है। पेरेंट्स का कहना है कि बच्चों को दिया जाने वाला वार्षिक कलेंडर उनके किसी काम का नहीं है, लेकिन लेना पड़ता है।

एनसीईआरटी की किताबों का मूल्य
-छटवीं से आठवीं का सेट- 650 रुपए
-9 वीं से 10 वीं का सेट -850 रुपए
-11वीं व 12 वीं का सेट (विज्ञान वर्ग) - 1250 रुपए
-11वीं व 12 वीं का सेट (मानविकी वर्ग) - एक