इस तरह होता है मडपैक ट्रीटमेंट
ताजमहल पर प्रदूषण की कालिख से लगे दागों को मडपैक ट्रीटमेंट से साफ करने पर 1.74 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। वित्तीय वर्ष 2007-08 से 2022-23 तक 10 बार स्मारक में मडपैक ट्रीटमेंट किया गया। मुख्य मकबरे के अंदर व बाहर, मकबरे की छत पर बनीं चारों बुर्जियों, चमेली फर्श, मीनारों को मडपैक कर चमकाया गया है। ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) बनने के बावजूद ताजमहल पर गंदगी व कार्बन कण जमा होना, यहां वायु प्रदूषण को रोकने के दावों के कागजी होने पर मुहर लगा रहा है। ताजमहल पर मडपैक ट्रीटमेंट और उस पर हुए खर्च की जानकारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रसायन शाखा ने वकील केसी जैन को सूचना का अधिकार (आरटीआई) में उपलब्ध कराई है। मडपैक तैयार करने और उसके प्रयोग की जानकारी भी एएसआई ने दी है। मुल्तानी मिट्टी को डिस्टिल्ड वॉटर में घोलकर गाढ़ा लेप बनाया जाता है। इसे कुछ समय के लिए रख दिया जाता है, जिससे यह अच्छी तरह से तैयार हो सके। इसमें एक से दो प्रतिशत तक माइल्ड सॉल्ट और आवश्यकता के अनुसार कार्बनिक रसायन मिलाया जाता है। लेप को ब्रश से ताजमहल की संगमरमरी सतह पर लगाकर पॉलिथिन की शीट से ढककर 48 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। लेप संगमरमर की सतह पर जमा हानिकारक एसीडिक पदार्थों को अवशोषित कर लेता है। पूरी तरह सूखने पर लेप स्वयं निकलने लगता है। बचे हुए लेप को ब्रश से साफ कर डिस्टिल्ड वॉटर से साफ कर दिया जाता है। रसायन शाखा ने मडपैक ट्रीटमेंट को सुरक्षित प्रक्रिया बताया है। इसमें हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है और मिट्टी का पीएच बहुत कम क्षारीय है।
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मडपैक के सुरक्षित होने पर उठाया सवाल
वकील केसी जैन ने एएसआई की रसायन शाखा के मडपैक ट्रीटमेंट के सुरक्षित होने के दावे पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 में रसायन शाखा के तत्कालीन अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ डॉ। एमके भटनागर ने ताजमहल पर श्वसनीय निलंबित कणों का जिक्र अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में किया था। मडपैक ट्रीटमेंट बार-बार करने से उन्होंने संगमरमर की सतह की स्थिरता को थोड़ा सा प्रभावित करने की बात कही थी। पाड़ बांधने से ताजमहल की दृश्यता प्रभावित होने से पर्यटन पर भी असर पड़ता है। इसलिए ताजमहल पर बार-बार मडपैक ट्रीटमेंट करना सुरक्षित नहीं होगा। ताजमहल के लिए वायु गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है। आईआईटी, कानपुर ने भी ताजमहल के प्रदूषणकारी तत्वों के अध्ययन में यमुना में पानी रहने की सिफारिश की थी।
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बैराज बन सकता है ताज के लिए 'ऑक्सीजनÓ
आईआईटी, कानपुर ने भी ताजमहल के प्रदूषणकारी तत्वों के अध्ययन में यमुना में पानी रहने की सिफारिश की थी। जिससे ताज के आसपास एयर क्वालिटी में सुधार आ सके। वकील केसी जैन ने बताया कि हमें शहर की एयर क्वालिटी सुधारने पर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। यमुना पर बैराज का निर्माण होना चाहिए। पौधे लगाए जाने चाहिए। ताज के आसपास धूल न उड़े इसे लेकर कदम उठाने चाहिए।
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ताजमहल पर मडपैक ट्रीटमेंट करना बार-बार उचित नहीं है। इसका कई बार विरोध हो चुका है। हिस्टोरियन प्रो। रामनाथ ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ताज पर ये ब्यूटीपार्लर ट्रीटमेंट सही नहीं है, इससे सरफेस खराब हो जाएगा। पर एएसआई ऑफिशियल मानते नहीं है। बावजूद इसके बार-बार मडपैक ट्रीटमेंट किया जाता है।
ब्रज खंडेलवाल, पर्यावरणविद्

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ताज पर अगर गंदगी जमा हो जाती है तो उसकी सफाई तो होनी चाहिए। लेकिन बार-बार नहीं होनी चाहिए। इसके लिए विज्ञान शाखा ने भी कहा कि मडपैक ट्रीटमेंट बार-बार नहीं होना चाहिए। एएसआई ने वर्ष 2007 से इंफॉर्मेशन दी है, लेकिन मडपैक इससे पहले से ही किया जा रहा है। हमें शहर के एयर पॉल्यूशन को कम करने पर काम करना चाहिए। अगर एयर क्वालिटी इम्प्रूव हो जाएगी तो ताज पर इस मडपैक ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ेगी।
केसी जैन, वकील


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दिखावा बन गया एयर एक्शन प्लान
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने देश के ऐसे 102 शहरों के लिए एयर एक्शन प्लान तैयार करने के निर्देश दिए थे, जिनमें पिछले पांच वर्षों से एक्यूआई का वार्षिक औसत 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक था। इनमें आगरा भी शामिल था। जून, 2019 में आगरा में एयर एक्शन प्लान लागू किया गया। लेकिन आज भी इसके तहत होने वाले अधिकतर कार्य सिर्फ फाइलों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। एयर एक्शन प्लान को लागू कराने की जवाबदेही डीएम की अध्यक्षता वाली जिला पर्यावरण समिति की थी। प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी को नोडल अधिकारी बनाया गया था। वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए सुझाए गए प्लान को कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी नगर निगम, एडीए, परिवहन विभाग, वन विभाग, उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सौंपी गई थी।


इन विभागों को सौंपी गई थी जिम्मेदारी
- नगर निगम
- एडीए
- परिवहन विभाग
- वन विभाग
- उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

ये होने थे काम

मल्टीलेवल पार्किंग बनाई जानी थीं। मेट्रो, रेलवे व बस स्टेशन पर बाइक जोन व साइकिल जोन बनाए जाने थे। मौजूदा समय में शहर में 100 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन हो रहा है। संजय प्लेस में एक स्थान पर मल्टीलेवल पार्किंग बनाई जा चुकी है। बाइक व साइकिल जोन फाइलों में है। 15 वर्ष से अधिक पुराने व्हीकल आज भी धुआं फेंकते हुए शहर में दौड़ रहे हैं। इन्हें सड़क से हटाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।


2. एक्यूआई की मॉनिटरिंग को वैन नहीं
एयर एक्शन प्लान लॉन्च होने के 180 दिन की अवधि में फैक्ट्री व औद्योगिक क्षेत्रों में वायु प्रदूषण नियंत्रण डिवाइस की स्थापना होनी थी। एयर क्वालिटी इंडेक्स की मॉनिटरिंग को मोबाइल वैन आनी थी, लेकिन मोबाइल सड़क पर नहीं दिखती।

3. धूल उडऩे से रोकने को नहीं हुए काम
ताजनगरी में वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से धूल कण वजह हैं। एयर एक्शन प्लान में धूल उडऩे से रोकने को शहर में मास्टर प्लान के अनुसार 180 दिन में 33 फीसद हरित क्षेत्र बनाने के साथ एक वर्ष में नालों के किनारे खुली जगहों पर इंटरलाकिंग व पौधे रोपे जाने थे। इस ओर भी कुछ खास प्रगति नहीं हुई। निर्माण कार्यों में धूल उडऩे से रोकने के इंतजाम नहीं किए गए। आज भी निर्माण के दौरान धूल उडऩे से रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाते। इसको लेकर कई बार निर्माणदायी संस्थाओं पर जुर्माना लग चुका है।
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