ठीक से नहीं हो रहा बायो मेडिकल वेस्ट का डिस्पोज

आगरा। अगर आप अपने किसी मरीज को लेकर एसएन मेडिकल कॉलेज में इलाज की उम्मीद को जा रहे हैं तो हो सकता है कि आप स्वयं बीमार हो जाएं। यहां आपको इंफेक्शन हो सकता है। कारण, एसएन कॉलेज में जगह-जगह बिखरा पड़ा बायो मेडिकल वेस्ट। शहर के मुख्य हॉस्पीटल एसएन मेडिकल कॉलेज में बायो मेडिकल वेस्ट के डिस्पोज प्रोसेस में ईमानदारी नहीं बरती जा रही है। हालात ये है कि एमजी रोड स्थित इमरजेंसी विंग में स्टेचर पर पड़े ब्लड और ड्रेसिंग के टुकड़ों को कर्मचारी पानी से धो रहा था। कायदे से उस गंदगी को तय स्टैंडर्ड के तहत क्लीन करना चाहिए।

जुलाई में लगा था जुर्माना

बायो मेडिकल वेस्ट न केवल एनवॉयरमेंट को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि इससे आसपास के वातावरण में खतरनाक वायरस भी फैल सकते हैं। इनसे कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं। एनजीटी के आदेश पर यूपी में सॉलिड में वेस्ट मैनेजमेंट कमेटी का गठन हुआ है। इसके चेयरमेन हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज होते हैं। जुलाई में जब वे आगरा आए तो उन्होंने एसएन मेडिकल कॉलेज में बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट में लापरवाही पाने पर 25 लाख का जुर्माना लगाया था। इसके बाद भी एसएन में बायो मेडिकल वेस्ट को डिस्पोज करने में पूरी तरह से ईमानदारी नहीं बरती जा रही है।

250 मेडिकल प्रैक्टिसनर्स को जारी किया नोटिस

ताजनगरी के 250 मेडीकल प्रैक्टिसनर्स को पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने नोटिस जारी कर दिया है। इन्हें यह नोटिस बायो मेडिकल वेस्ट का गलत ढंग से डिस्पोज करने के लिए जारी किया गया है और इनसे सात दिन के भीतर जवाब मांगा गया है। इन 250 मेडिकल प्रैक्टिसनर्स में मेडिकल क्लीनिक, पैथोलॉजी लैब और डे केयर सेंटर शामिल हैं। इन मेडिकल प्रैक्टिसनर्स को बायो मेडिकल वेस्ट को ठीक प्रकार से डिस्पोज न करने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने नोटिस जारी किया है।

ये हैं आंकड़े

भारत में अनुमानित प्रति बेड प्रति अस्पताल में 1-2 किलोग्राम और हर क्लिीनिक पर 600 ग्राम प्रतिदिन मेडिकल वेस्ट / मेडिकल कूड़ा पाया जाता है। इस तरह से अगर कोई 100 बेड का अस्पताल है तो हर दिन वहां से 100-200 किलो मेडिकल वेस्ट उत्पन्न होता है। ऐसा अनुमानित है कि इनमें से करीब 5-10 ग्राम मेडिकल वेस्ट घातक और संक्त्रामक होता है। जो कि 100 बेडेड अस्पतालों में करीब 5-10 किलो प्रतिदिन हो सकता है।

ऐसे होना चाहिए बायो मेडिकल वेस्ट मेनेजमेंट

सबसे पहले वेस्ट को इकट्ठा किया जाता है। इसको भी एक तय स्टैंडर्ड के तहत किया जाता है। बायोमेडिकल वेस्ट दो तरह का होता है। पहले जो हानिकारक होते हैं और दूसरे जो हानिकारक नहीं होते हैं। तय मानकों के हिसाब से इन्हें हॉस्पिटल में अलग-अलग रंग के डस्टबिन में इकट्ठा किया जाता है। इनकी कोडिंग अलग-अलग होती है। उसी अनुसार उनमे कचरा डाला जाता है।

येलो डस्टबिन- इसमें सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैम्पल, खून से युक्त मेडिकल की सामग्री ( रुई/ पट्टी), एक्सपेरिमेंट में उपयोग किये गए जानवरों के अंग डाले जाते हैं। इन्हें जलाया जाता है या बहुत गहराई में दबा देते हैं।

रेड डस्टबिन- इसमें दस्ताने, कैथेटर, आईवी सेट, कल्चर प्लेट को डाला जाता है। इनको पहले काटते हैं फिर ऑटो क्लैव से डिस इन्फेक्ट किया जाता है। उसके बाद जला देते हैं।

नीला या सफेद बैग- इसमें गोलियां, एंटी बायोटिक्स, सुई, कांच के टुकड़े इत्यादि रखे जाते हैं। इनको काटकर केमिकल द्वारा ट्रीट करते हैं फिर या तो जलाते हैं या गहराई में दफनाते हैं।

काला- इनमें हानिकारक और बेकार दवाइयां, कीटनाशक पदार्थ और जली हुई राख डाली जाती है। इसको किसी गहरे वाले गढ्डे में डालकर ऊपर से मिटटी दाल देते हैं।

करनी चाहिए देखरेख

जब तक थैले पूरी तरह भर न जाए, तब तक अवशिष्ट पदाथरें को निश्चित जगहों पर थैलों में भरकर रखा जाता है। इन थैलों पर नाम लिखते हैं और सिक्योरिटी गार्ड रखा जाता है, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति या कूड़ा उठाने वाला उसे गलती से न ले जाए। बाद में हॉस्पीटल की निश्चित गाडि़यों में रखकर इन्हें डिस्पोज करने के लिए भेजा जाता है।

अभी कैंपस इंटीग्रेटेड नहीं हो पाया है। इस कारण थोड़ी अव्यवस्थाएं हैं। जल्द से जल्द इनका निपटारा कर लिया जाएगा।

-डॉ। जीके अनेजा, प्रिंसिपल एसएन मेडिकल कॉलेज