- सुप्रीमकोर्ट ने रद की अंबेडकर विवि से संबद्ध आठ प्राचार्यो की नियुक्ति

- पुराने पद पर होगी ज्वाइनिंग, अतिरिक्त तनख्वाह पड़ेगी लौटानी

आगरा: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध आठ कॉलेजों के प्राचार्यो की कुर्सी छिन गई है। नियुक्ति के आठ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह नियमों को पूरा करते हुए नहीं हुईं। ऐसे में नियुक्ति रद कर दीं। अब इन प्राचार्यो को पुरानी नियुक्ति (लेक्चरर) के पद पर ज्वाइनिंग करनी होगी। साथ ही प्राचार्य के पद पर रहते हुए ली गई अतिरिक्त तनख्वाह लौटानी होगी।

उत्तर प्रदेश के महाविद्यालयों में प्राचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति यूपी स्टेट यूनिवर्सिटी एक्ट 1973 के तहत होती है। इसके तहत कॉलेज स्तर पर नियुक्ति कर दी जाती थी, इसमें धांधली के आरोप लगने लगे। इस पर प्रदेश सरकार ने उच्च शिक्षा सेवा आयोग गठित कर 1980 के एक्ट तहत प्राचार्यो का चयन करने के निर्देश दिए, मगर वर्ष 2007 में प्राचार्यो की नियुक्ति में चयन प्रक्रिया के नियमों का उल्लंघन किया गया।

हाईकोर्ट ने 23 अप्रैल 2012 को रद की थी चयन प्रक्रिया

उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग की ओर से अप्रैल 2006 में प्रदेश में स्नातक व परास्नातक कॉलेजों में प्राचार्यो की भर्ती का विज्ञापन निकाला था। इस पर वर्ष 2008 में 156 प्राचार्यो का चयन हुआ। इसमें असफल रहे आवेदकों ने हाईकोर्ट में चयन प्रक्रिया को यह कहते हुए चुनौती दी कि भर्ती में अनियमितताएं और भ्रष्टाचार हुआ है। आरक्षण का पालन नहीं किया गया। परंतु वर्ष 2009 में 156 प्राचार्यो को हाईकोर्ट के लंबित आदेश के अधीन नियुक्त कराई गई। हाईकोर्ट ने आरक्षण के आरोप को खारिज कर दिया, लेकिन चयन में नियमों का उल्लंघन मानते हुए 23 अप्रैल 2012 के आदेश में चयन प्रक्रिया रद कर दी। कोर्ट ने कहा कि आयोग को नियम 6 (2) के तहत भर्ती के दिशा-निर्देश तय करने चाहिए थे। जिन 1983 के नियमों पर भर्ती हुई, वे दिशा-निर्देश पूर्ण नहीं हैं।

अजब सिंह और योगेंद्र दुबे तो उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग सदस्य

प्राचार्य पद पर जिनकी नियुक्तियां रद हुई हैं उनमें एनडी कॉलेज भोगांव के अजब सिंह यादव और गंजडुंडवारा कॉलेज के योगेंद्र दुबे तो पिछले दिनों उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के सदस्य बनाए जा चुके हैं।