-हाशिमपुर रोड स्थित महावीर भवन था उनका पैतृक निवास

-आश्रम में बीतता था समय, यही होती थी लोगों से मुलाकात

ALLAHABAD: वैसे तो भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या को विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अंतरराष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंहल की कर्मस्थली माना जाता है, लेकिन उनका संगम नगरी से भी गहरा लगाव था। महज 15 साल की उम्र में वह अपने माता-पिता के साथ इलाहाबाद में बस गए थे। हाशिमपुर रोड स्थित उनके पैतृक आवास महावीर भवन में उनकी आत्मा बसती थी। आजीवन अविवाहित रहे सिंहल का अधिकतर समय यहीं बीतता था। इसी भवन के एक ओर बने आश्रम में वह ठहरा करते थे, जहां उनकी विहिप कार्यकर्ताओं और आम लोगों से मुलाकात होती थी।

दान किए आवास के दो हिस्से

हाशिमपुर रोड स्थित उनके आवास का नाम उनके पिता महावीर सिंहल के नाम पर है। अशोक सिंहल ने महावीर भवन के दो हिस्से दान कर दिए थे। भवन के एक हिस्से में अरुंधती वशिष्ठ नाथ पीठ का संचालन होता है। इसके अलावा इसी परिसर में एक भवन का निर्माण कर उसे भी दान कर दिया गया। भवन के एक हिस्से में उन्होंने अपने गुरु की मूर्ति स्थापित की थी। यहां आश्रम का संचालन होता है। शहर आगमन पर वह यहीं ठहरते थे। भवन की देखरेख हालांकि उनका परिवार करता है। उनके भतीजे ने हाल ही में यहां लिफ्ट लगवाई थी। उनके पिता आजादी से पहले प्रशासनिक सेवा में कार्यरत थे। उनके भाई स्व। बीपी सिंहल यूपी के डीजीपी रह चुके थे। झूंसी में उन्होंने गोधाम बनवाकर दान कर दिया था।

जन्म- 15 सितंबर 1926

जन्मस्थली-आगरा

मृत्यु- 17 नवंबर 2015, मेदांता हॉस्पिटल, गुड़गांव

वाराणसी से की थी इंजीनियरिंग की डिग्री

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंहल का जन्म सन 1926 में आगरा में हुआ था। उन्होंने बीएचयू वाराणसी से 1950 में मेटालरजिकल इंजीनियरिंग की बैचलर डिग्री प्राप्त की थी।

पिछले 65 वर्ष से बतौर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक उन्होंने देश, धर्म, समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। बीती सदी के अस्सी के दशक में विराट हिंदू समाज के कार्यक्रम के बतौर संचालक पहली बार सार्वजनिक मंच पर आए अशोक सिंहल ने राम जन्मभूमि आंदोलन, धर्मातरण, अस्पृश्यता, गोरक्षा जैसे मुद्दे पर हुए आंदोलनों का सफल नेतृत्व कर न केवल अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाया बल्कि इस मिथक को तोड़ने में भी कामयाब रहे कि हिंदू कभी एकजुट नहीं हो सकता।

पूरी दुनिया में मनवाया लोहा

छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक रहे रज्जू भैया के जरिए वर्ष 1942 से संघ के संपर्क में आए अशोक सिंहल ने वर्ष 1950 में संघ का प्रचारक बन कर देश, समाज और संस्कृति की सेवा का संकल्प लिया। अपने इसी उद्देश्य के चलते वह आजीवन अविवाहित रहे। खासतौर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही वर्ष 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद आंदोलन में कूद पड़े। इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

पिता ने धमकाया था

बीएचयू से इंजीनियरिंग करने के बाद सिंहल ने जब अपने प्रशासनिक अधिकारी पिता को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में पूर्णकालिक सेवा देने के अपने फैसले से अवगत कराया तो वह अवाक रह गए। नाराज पिता महावीर सिंहल ने पहले तो सिंहल को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि बिना प्रचारक बने भी तो देश सेवा की जा सकती है। इसके बाद न केवल डराया, बल्कि घर से बाहर निकालने तक की धमकी दी। इसके बावजूद जब पिता उनके दृढ़ निश्चय ने नहीं डिगा पाए तो न केवल अपना आशीर्वाद दिया, बल्कि यह भी नसीहत दी कि जब प्रचारक बनना तय कर ही लिया है तो इसे पूरे मन, आत्मा और विवेक से पूर्ण करो।

1981 में विहिप का दामन थामा

विश्व हिंदू परिषद की स्थापना 1964 में हुई थी। 1981 में मीनाक्षीपुरम में विहिप के एक कार्यक्रम के दौरान वह संगठन से बतौर जनरल सेक्रेटरी जुड़ गए। दलितों के धर्मातरण के वह विरुद्ध थे, उनके नेतृत्व में विहिप ने दलितों के लिए विशेष दो सौ मंदिरों का निर्माण कराया। 1984 में नई दिल्ली में हुई विश्व हिंदू परिषद धर्म संसद के आयोजन में उनका अहम योगदान रहा। इस संसद में राम जन्मभूमि को लेकर साधु-संत मुखर हुए और बाद में उनको इस आंदोलन का प्रमुख माना गया। 2011 में स्वास्थ्य खराब होने के चलते डॉ। प्रवीण तोगडि़या को सिंहल की जगह विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व दिया गया। इससे सिंहल ने बीस वर्षो तक इस पद को सुशोभित किया था।