-कोरोना इफेक्ट को देखते हुए इस मर्तबा नहीं निकाला जाएगा मोहर्रम में जुलूस

-इमामबाड़ा पर होगा चरागा, दसवीं को करबला में दफन किए जाएंगे फूल

<-कोरोना इफेक्ट को देखते हुए इस मर्तबा नहीं निकाला जाएगा मोहर्रम में जुलूस

-इमामबाड़ा पर होगा चरागा, दसवीं को करबला में दफन किए जाएंगे फूल

PRAYAGRAJ: PRAYAGRAJ: हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाए जाने वाले मोहर्रम पर इस मर्तबा कोरोना के चलते जुलूस नहीं निकाले जाएंगे। जुलूस न निकाले जाने की वजह कोरोना का बढ़ता प्रभाव है। दसवीं को कर्बला पर ताजिया के फूल दफन किए जाएंगे। गुरुवार को मोहर्रम के चांद का ऐलान होते ही घरों में व इमामबाड़ों में अलम नसब कर दिए। शुक्रवार को पहली मोहर्रम पर शहर के दियाबाद, रानीमंडी, बख्शी बार, दायरा शाह, अजजमल, करैली, चक जीरो रोड, घटाघर, सब्जी मण्डी में मजलिस शहीदे करबला का आयोजन किया गया। इस दौरान प्रशासनिक निर्देश व कोरोना गाइडलाइन फॉलो की गई। उलेमाओं व जाकिरों ने तकरीर करते हुए शोहदा-ए- कर्बला का जिक्र किया। इस बीच मोहर्रम में रखे गए एक रोजा का फल फ्0 रोजा के बराबर बताया गया।

ऑनलाइन हुई मजलिस

चक जीरो रोड स्थित डिप्यूटी जाहिद हुसैन, घंटाघर स्थित इमामबाड़ा सैय्यद मियां व दरियाबाद के बड़े इमामबाड़ों में जहां ज्यादा भीड़ होती थी वहां ऑनलाइन मजलिसें की गई। अंजुमन गुंचा-ए-कासिमया के प्रवक्ता सै.मो। अस्करी के मुताबिक मौलाना रजी हैदर, जाकिर ए अहलेबैत रजा अब्बास जैदी व अन्य उलेमाओं ने ऑनलाइन मजलिस को खिताब करते हुए कर्बला के 7ख् शहीदों की कुर्बानी का जिक्र किया गया। माहे मोहर्रम के चांद के दीदार के साथ मुस्लिम क्षेत्रों में गम और संजीदगी का आलम तारी हो गया।

इमामबाड़े पर लाई गई मोमबत्ती

शाही इमामबाड़ा बेगम सराय अध्यक्ष हाजी अजमत उल्ला की मानें तो इस पर्व पर इमाम बाड़े पर ताजिया रखकर मोमबत्ती व अगरस्ती जलाने व जुलूस निकालने की सदियों पुरानी रही है। मगर, इस मर्तबा कोरोना के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मुस्लिम धर्मगुरुओं ने जुलूस न निकालने का निर्णय लिया है। जुलूस न निकाल कर इमामबाड़ा पर ताजिया रखकर चरागा किया जाएगा। दसवीं को करबला पर सोशल डिस्टेंस के साथ ताजिया के फूल दफन किए जाएंगे।

इमाम हुसैन की याद का माह है मोहर्रम

-हजारों यजीदियों से अपने 7ख् साथियों के साथ जंग लड़े थे हजरत इमाम हुसैन

मुस्लिम धर्मगुरू बताते हैं कि कर्बला यानी आज का सीरिया। यहां सन म्0 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा। वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था। उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, पैगंबर मोहम्मद के खानदान के इकलौते चिराग इमाम हुसैन। वह किसी भी हालत में यजीद के सामने झुकने को तैयार नहीं थे।

हर दर्द को मुस्कुरा करसहे हजरत

सन म्क् हिजरी से यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे। वहां के बादशाह इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कुफा जाने लगे। रास्ते में दो मोहर्रम को यजीद फौज ने कर्बला के रेगिस्तान पर इमाम हुसैन के काफिले को रोक लिया था। वहां पानी का स्रोत फरात नहीं था। इस पर यजीद की फौज ने म् मोहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। इसके बावजूद इमाम हुसैन नहीं झुके। यजीद के लोगों द्वारा इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम रही। आखिर में युद्ध का ऐलान हुआ। इतिहास कहता है कि यजीद की 80000 की फौज के सामने हुसैन के 7ख् बहादुरों ने जंग लड़ी। इस बात की मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही देने लगे थे। लेकिन हुसैन कहां जंग जीतने आए थे। वह तो अपने आपको अल्लाह की राह में त्यागने आए हुए थे।

सजदा करते वक्त यजीद ने किया हमला

हुसैन ने अपने नाना और पिता के सिखाए हुए सदाचार व विचार एवं अध्यात्म और अल्लाह से बेपनाह मोहब्बत में प्यास, दर्द व भूख और पीड़ा पर विजय प्राप्त कर ली।

दसवें मोहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और अपने साथियों के शव को दफनाते रहे। आखिर में खुद अकेले युद्ध किया। फिर भी दुश्मन उन्हें मार नहीं सके।

आखिर में नमाज के वक्त जब इमाम हुसैन खुदा का सजदा कर रहे थे। तब एक यजीदी को लगा कि शायद यही सही मौका है हुसैन को मारने का। फिर उसने धोखे से हुसैन को शहीद कर दिया।

लेकिन इमाम हुसैन तो मर कर भी जिंदा रहे और हमेशा के लिए अमर हो गए और यजीद जीत कर भी हार गए।

उसके बाद अरब में क्रांति आई, हर रूह कांप उठी और हर आंखों से आंसू निकल आए और इस्लाम गालिब हुआ।

मोहर्रम में कर्बला पर ताजिया रखने व जुलूस निकाले जाते हैं। मगर इस मर्तबा जुलूस नहीं निकाले जाएंगे। ऐसा निर्णय कोरोना के प्रभाव को देखते हुए लिए गए हैं। सोशल डिस्टेंस के साथ पर्व को लोग मनाएंगे। मोहर्रम का इतिहास काफी पुराना और लंबा है। जितना बताया जा जाए वह कम है।

-हाजी अजमत उल्ला, अध्यक्ष शाही इमाम बाड़ा बेगम सराय