-शहर में नहीं है मेंटली डिसेबल पर्सस का कोई ठिकाना

-सड़कों पर दिनों दिन बढ़ रही तादाद बनी चिंता का सबब

<-शहर में नहीं है मेंटली डिसेबल पर्सस का कोई ठिकाना

-सड़कों पर दिनों दिन बढ़ रही तादाद बनी चिंता का सबब

PRAYAGRAJ: PRAYAGRAJ: सोशल मीडिया पर मेंटली डिसेबल पर्सस (मानसिक दिव्यांग)<सोशल मीडिया पर मेंटली डिसेबल पर्सस (मानसिक दिव्यांग) की हेल्प करने के वीडियो भले ही वायरल हो रहे हों। लेकिन प्रयागराज में हकीकत कुछ और ही है। यहां पर ऐसे लोगों के रिहैबिलिटेशन का कोई इंतजाम नहीं है। एक बार घर छोड़ने के बाद मेंटल डिसेबल पर्सन सड़कों की खाक छानते फिरते हैं। इनकी हरकतों से कई बार आम लोगों को दिक्कत का भी सामना करना पड़ता है।

एक नहीं, कई हैं संक्रमण के शिकार

शहर में सबसे ज्यादा मेंटल डिसेबल हॉस्पिटल्स के आसपास मिल जाएंगे। खासकर एसआरएन हॉस्पिटल परिसर में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है। इनमें से कइयों के शरीर में कई प्रकार के इंफेक्शन हैं। न तो इनको कोई इलाज दिया जा रहा है और न ही इनके लिए कोई छत है। हॉस्पिटल से पेट भर खाना मिल जाने के लालच के चलते यह परिसर में टहलते रहते हैं। पांच साल पहले डेस्टीट्यूट पेशेंट्स के लिए यहां एक वार्ड जरूर बनाया गया था लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है।

केवल महिलाओं के लिए है शरणालय

शहर में फीमेल मेंटल डिसेबल्स के लिए जरूर शरणालय हैं। खुल्दाबाद स्थित आशा ज्योति व महिला शरणालय में ऐसी महिलाओं को रखकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा रहा है। इनको यहां सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, मोमबत्ती बनाने आदि की ट्रेनिंग दी जाती है। कई बार इलाज के लिए महिलाओं को वाराणसी के मेंटल हॉस्पिटल में ट्रांसफर कर दिया जाता है। लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं है। उनको सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया है।

शासन को भेजा गया है प्रपोजल

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के मनोचिकित्सक डॉ। राकेश पासवान बताते हैं कि कुछ मानसिक मरीजों का इलाज जरूर किया गया। लेकिन उनके रिहैबिलिटेशन की व्यवस्था नहीं होने से वह पुन: मानसिक रोग का शिकार हो जाते हैं। बताते हैं कि शहर में ऐसे लोगों के लिए कम से कम एक शरणालय अवश्य होना चाहिए। उधर, एक एनजीओ के माध्यम से समाजसेवी डॉ। प्रिया ने शासन को पुरुष मानसिक रोगियों के लिए शरणालय का एक प्रपोजल भेजा है। वह महिला मानसिक रोगियों के रिहैबिलिटेशन के लिए भी काम करती हैं।

हमारे पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके जरिए पुरुष मानसिक रोगियों को रिहैबिलिटेट किया जाए। शुरुआत में अनाथालयों में रखने की कोशिश की गई लेकिन कामयाबी नहीं मिली। कुछ मरीजों को जरूर वाराणसी, बरेली या रांची मेंटल हॉस्पिटल भेजा गया है।

-प्रवीण सिंह, जिला समाज कल्याण अधिकारी प्रयागराज