एनसीजेडसीसी में लोक कलाकारों ने प्रस्तुत की कजरी

ALLAHABAD: जब चारों ओर हरियाली छायी हो, प्रकृति खुद श्रृंगार कर सजी संवरी होती हो तो काले बादलों की घनघोर छटा को देख कर भाव विभोर मन में भी कजरी की उमंगे और तरंगे उठने लगती हैं। मौसम के साथ ही कजरी की तरंगों को जीवित करते हुए प्रसिद्ध लोक गायक लल्लन सिंह गहमरी के निर्देशन में एनसीजेडसीसी सभागार में रविवार को कजरी के अवसर पर कजरी महोत्सव 'लोक कला के रंग, कजरी के संग' का आयोजन किया गया। जिसमें लोक कलाकारों ने कजरी की लडि़यां पिरोते हुए लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। कजरी के गीतों को गुनगुनाते हुए व झूमते हुए लोगों ने कजरी का आनंद लिया।

कजरी के साथ चौलर का आनंद

मशहूर कजली गायिका उर्मिला श्रीवास्तव ने कजरी की मधुर धुन छेड़ते हुए पूर्वाचल की मशहूर कजली 'पिया मेंहदी लिया द मोती झील से, जाइके साइकिल से ना' सुनाया तो माहौल कजरी मय हो गया। कामता प्रसाद ने प्रेमिका की अठखेलियों से भरी कजरी 'सखियां जइसन सजना तोर ओइसन मोर बा ना' सुनाई। वहीं निशा श्रीवास्तव, रंजना त्रिपाठी, सुषमा मौर्या व उर्वशी मौर्या ने सामूहिक कजरी 'कहवां से आवेले राम धनुधरिया, पड़ेला झीर-झीर बुनिया' सुनाई। बिजली यादव ने 'अर्जुन यमराज मोहन कइ दिये पयनवां, गइले मोरंग ध्वज के भवनवां ना' सुनाया तो हर कोई भावविभोर हो गया। बबलूराम दीवाना ने 'है यह तन का नहीं ठिकाना, चोला बोला न बोला' गीत गाया। पांचूराम पाल ने कजरी का ही दूसरा रूप चौलर गीत 'हमसे रूठल बा दिलजनियां, एक झुलनियां के बदे' सुनाकर प्रेमिका के नखरे बताए। रागिनी चंद्रा ने 'ससुरे जावे सखी नचिकायल मोर गवनवा' सुनाया।

मिला कलाभूषण सम्मान

सोनाली चक्रवर्ती व सुजाता केशरी ने लोकनृत्य की मोहक प्रस्तुति की। मुख्य अतिथि मंजुल किशोर वर्मा व विशिष्ट अतिथि आरडी वर्मा ने हजारी लाल चौहान को बांसुरी वादन, अतुल यदुवंशी को लोक नाट्यविद्, बद्री चंचल को लोक गायन व अमिता श्रीवास्तव को लोकनृत्य के लिए लोक कला भूषण सम्मान से सम्मानित किया। संचालन वंदना श्रीवास्तव व गौरव बजाज ने किया।