-जिनको लगा चूना, उनके पास बिहार के नंबर से आया था फोन
-क्राइम के बाद नंबर भी बंद, पुलिस लाचार
ALLAHABAD: बिहार का एक गैंग इलाहाबादियों के एकाउंट क्लीन करने में लगा है। सिटी में हाल-फिलहाल में जितने भी मामले साइबर क्राइम के दर्ज हुए, उसमें फोन बिहार के मोबाइल फोन नंबर से किया गया था। एक बार खाता साफ करने के बाद मोबाइल नंबर भी बंद हो जाते हैं। एफआईआर तो दर्ज हो जाती है लेकिन पुलिस के हाथ कभी-कभी ही गुनाहगारों तक पहुंच पाते हैं।
फेक आईडी पर लिए जाते हैं नंबर
मोबाइल फोन पर सारा खेल फेक आईडी के सहारे चल रहा है। क्रिमिनल मोबाइल लेने के बाद ज्यादा देर तक उसे चालू नहीं रखते। इनकमिंग कॉल्स को तो रिसीव किया नहीं जाता, एक बार किसी का खाता क्लीन करने के बाद नंबर भी बंद कर दिया जाता है। सिर्फ जुलाई में ही दर्ज हुए साइबर क्राइम के मामलों में पुलिस की जांच में सामने आया है कि जिन नंबरों से कॉल आई थी, उनमें अधिकांश बिहार के थे।
अब तक 94 मामले हो चुके हैं दर्ज
2015 नंबर में सिटी में साइबर क्राइम के दर्ज मामलों की संख्या 94 हो गई है। खास बात यह है कि जिन लोगों को चूना लगा, उनमें अधिकांश पढ़े लिखे हैं। इस गिरोह के टार्गेट पर रिटायर्ड टीचर, कर्मचारी के साथ ही व्यापारी भी होते हैं। खास बात यह है कि एक ही तरीके से सभी को फोन भी किया जाता है।
अब जीवन सुरक्षा योजना का नाम
बैंक का कर्मचारी बनकर खाता अपडेट करने के नाम पर एटीएम कार्ड नंबर और पिन की जानकारी हासिल की जाती थी, लेकिन अब तरीका कुछ बदल गया है। अब प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना से जुड़ने के नाम पर फोन किया जाता है। अतरसुइया व कीडगंज में इसी महीने दो लोगों को केंद्र सरकार की योजना के नाम पर फोन किया गया था। लोग झांसे में आ गए और हजारों रुपए गंवा बैठे। सभी के खाते से ऑनलाइन शॉपिंग की गई थी।
सिम बेचने वालों पर नहीं कसा शिकंजा
लगातार मामले सामने आने के बाद भी फेक आईडी पर प्री एक्टीवेटेड सिम बेचने वाले हमेशा पुलिस के शिकंजे में आने से बच जाते हैं। पुलिस ने दिल्ली से दो लोगों को पकड़ा भी था, लेकिन असली खिलाड़ी सिम बेचने वालों को कभी गिरफ्त में लेने की कोशिश नहीं की गई। साइबर क्राइम सेल के लोगों का कहना है कि बिहार पुलिस को फेक आईडी पर कार्ड बेचने वालों के बारे में इन्फार्मेशन दी जाती है लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिलता। यूपी पुलिस इस मामले में सीधे दखल नहीं दे सकती।
एक्सपर्ट्स स्पीक
शॉपिंग कंपनियों से लें मदद
पिछले दिनों सिटी में जितने भी लोगों को साइबर शातिरों ने ठगा उनमें एक ही स्टाइल सामने आई है। ज्यादातर शातिरों ने ऑन लाइन शॉपिंग कंपनियों से सामान खरीदा था। इसमें पुलिस उन कंपनियों से शॉपिंग के बाद जिस स्थान पर डिलीवरी की गई उसका पता हासिल कर अपराधियों तक पहुंच सकती है। इस संबंध में टेक्नो एक्सपर्ट अनूप मिश्रा का मानना है कि एकाउंट से रकम कटने के बाद अगर तुरंत बैंक को सूचित किया जाए तो संबंधित शॉपिंग ट्रांजेक्शन को रोककर अपराधियों को पकड़ा जा सकता है।
आईपी एड्रेस से कर सकते हैं ट्रैक
सिटी में जितने भी लोगों को ठग कर शातिरों ने उनके खाते से ऑनलाइन शॉपिंग की है उनके ट्रांजेक्शन के दौरान यूज किए गए आईपी एड्रेस से भी उनको ट्रेक किया जा सकता है। हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसे मामलों में शातिर प्रॉक्सी आईपी एड्रेस भी यूज करते हैं। यह प्रॉक्सी आईपी दुनिया के किसी भी देश या शहर की हो सकती हैं।
पेमेंट गेट-वे भी हेल्पफुल
अनूप के मुताबिक, ऑन लाइन शॉपिंग में ट्रांजेक्शन के दौरान पेमेंट गेट-वे से ही रकम दी जाती है। इसके बाद कंपनी तक रकम पहुंचने में कुछ घंटों का समय लग जाता है। ऐसे में साइबर क्राइम का शिकार पर्सन तुरंत अपने बैंक को सूचित कर इस ट्रांजेक्शन को रुकवा सकता है।
सेफ्टी टिप्स:::
-अपने एटीएम का पिन नंबर किसी को न बताएं
-नेट बैंकिंग के लिए निजी लैपटॉप या पीसी का यूज करें
-अंजान फोन कॉल्स पर बैंकिंग की जानकारी शेयर न करें
-किसी भी तरह की दिक्कत पर बैंक को तुरंत सूचित करें
क्राइम फेक आईडी पर लिए गए सिम से किए जाते हैं। सिम कार्ड बंद हो जाने के कारण अक्सर अपराधी हाथ नहीं आते। फेक आईडी पर सिम बेचने वालों के बारे में जो जानकारी मिलती है, उसे दूसरे स्टेट की पुलिस से शेयर किया जाता है।
ज्ञानेंद्र राय, इंचार्ज साइबर क्राइम सेल