मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक से हवा हुए सियासी मुद्दे

सप्ताह शुरू होने के दिन तक देश विदेश के मुद्दों पर बहस में जुटी थी पब्लिक

अब है बस एक मिशन, कौन सा बैंक खुला है, किस एटीएम से पैसे मिल रहे पैसे

ALLAHABAD: सात नवंबर को सप्ताह शुरू होने के दिन देश में सियासी मुद्दों की कमी नहीं थी। प्रदेश स्तर से लेकर जिला स्तर पर भी तमाम इश्यूज पर डिस्कशन का दौर चल रहा था। अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव विदेश का सबसे बड़ा इश्यू था तो ओआरओपी की मांग को लेकर धरना दे रहे पूर्व फौजी की आत्महत्या और तीन तलाक जैसे इश्यूज पिछले मंगलवार तक चर्चा का केन्द्र बिन्दु थे। प्रदेश स्तर पर चुनाव का मुद्दा गरमाने लगा था। लेकिन, मंगलवार की रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन के बाद सारे मुद्दे हवा हो गए। कौन-कौन से थे ये मुद्दे? आज इसी पर बात

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव

यह वह इंटरनेशनल इश्यू था, जिसके बारे में हर आम और खास जानना चाह रहा था। डोनाल्ड ट्रंप पर हर वर्ग की नजर थी। अमेरिका में हुये दिलचस्प चुनाव का रिजल्ट उसी दिन आया, जिस दिन नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की। अगले दिन अखबारों और टीवी चैनल्स ने इसे विशेष कवरेज तो दी, लेकिन ट्रंप की जीत नोट की चोट के आगे फीकी ही नजर आई।

ओआरओपी

ओआरओपी मतलब वन रैंक वन पेंशन, पिछले कुछ दिनो में यह एक ऐसा इश्यू था। जिसे लेकर विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को घेर रखा था। इस बीच जब दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान एक रिटायर्ड सैन्य कर्मचारी ने सुसाइड कर लिया तो जैसे सभी विपक्षी दलों में जान आ गई। सभी केन्द्र सरकार की कथनी और करनी को लेकर जांच पड़ताल में जुट गए थे। अब इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही।

तीन तलाक

देश में सबसे अधिक शोर तीन तलाक के मुद्दे को लेकर मचा था। यह मुद्दा लोगों के बीच इस कदर हाईप पा चुका था कि जहां देखो वहां तीन तलाक और यूनिफार्म सिविल कोड को न लागू किये जाने की ही बात सामने आ रही थी। करेंट में लोगों की जुबां से एकाएक तीन तलाक गायब हो चुका है।

यूपी विधानसभा चुनाव

यूपी में चाचा-भतीजे की लड़ाई को लेकर सपा में घमासान मचा। इसकी आंच ठंडी पड़े। इससे पहले तक विरोधी दल और जनता अपने अपने तरीके से बनते बिगड़ते समीकरण का आंकलन कर रही थी कि मोदी के ट्रंप कार्ड ने पूरा माहौल ही चेंज कर दिया। अब हाल ये है कि सपा की रार को कौन पूछे मुहाने पर खड़े यूपी के चुनाव पर भी लोग चर्चा नहीं कर रहे।

ऐसे छंटी धुंध

दिल्ली की तर्ज पर प्रदेश में छाई धुंध ने बैठे बिठाये लोगों को मुद्दा थमा दिया था। हर कोई सरकार से ही सवाल पूछ रहा था कि धुंध का जिम्मेदार कौन? ऐसे में प्रदूषण के जिम्मेदार सरकारी महकमों के अफसर भी एकाएक एक्टिव हो गये थे। लेकिन अब जब सब नोट गिन रहे हैं तो उन्हें भी राहत है कि चलो पिंड छूटा।

भूल गये डेंगू का डंक

धुंध की तरह ही डेंगू के डंक का भी खूब डंका बज रहा था। इसका पूरा साथ चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी बीमारियां दे रही थीं। लेकिन नोट गिनने में मशगूल जनता को करेंट में मच्छरों पर मानो तरस आ गया है। कारण, कोई उन्हें गरियाता नजर नहीं आ रहा। ऐसे में मच्छरों की मार से त्रस्त हेल्थ डिपार्टमेंट चैन से है।

ट्रैफिक मंथ

नवम्बर आया नहीं कि दुपहिया और चारपहिया वाहन चालकों की शामत आ जाती है। कोई भूले से नम्बर प्लेट को नेम प्लेट बनाता नजर भर आ जाये तो फिर देखिये। ऐसे में बिना डीएल के अभी तक गली कूंचे से निकल रहे लोगों को मौजूदा माहौल मुफीद नजर आ रहा है। रोकने-टोकने वाले यदा कदा नजर आ रहे हैं। ऐसे में वे भी फर्राटे से बाइक दौड़ा रहे हैं।

अवस्थापना निधि

पिछले कुछ समय में इस निधी के पैसे को लेकर इलाहाबाद के नगर निगम सदन में खूब हाय तौबा मची। मेयर अभिलाषा गुप्ता ने तो इसके लिए कमिश्नर तक को घेर लिया। बहरहाल, जैसे तैसे पैसा तो जारी हो गया। लेकिन फिर सवाल वहीं आकर अटक गया है कि लेन देन प्रभावित हो जाने से विकास के कार्य हों भी तो भला कैसे?