-ग्राउंड पर सुविधा के अभाव में दम तोड़ रही फुटबाल खिलाडि़यों की मेधा

-सरकार तो दूर, स्थानीय प्रशासन भी नहीं दे रहा ध्यान

ALLAHABAD: सिटी के कॉलेजों के फुटबाल खिलाडि़यों में मेधा की कमी नहीं है। सुविधाएं मिलें तो वे नेशनल व इंटरनेशनल गेम्स में जीत का डंका बजाने की कुव्वत रखते हैं। लेकिन, सिस्टम है कि उनका ध्यान ही नहीं दे रहा। आलम यह है कि कॉलेजों के पास ग्राउंड तो पर्याप्त है, पर सुविधाएं नहीं के बराबर हैं।

ग्राउंड पर तीन रेफरी जरूरी

यहां एक दर्जन कॉलेजेज ऐसे हैं जिनके ग्राउंड पर फुटबाल प्रैक्टिस होती है। प्रैक्टिस करने वाले छात्रों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक कोच ने बताया कि जिस भी कॉलेज में फुटबाल की प्रैक्टिस कराई जाती है, उनके पास ग्राउंड पर्याप्त है। लेकिन सुविधाएं नहीं हैं। उनकी मानें तो फुटबाल के ग्राउंड पर तीन रेफरी का होना आवश्यक है। साथ ही फुटबाल, नेट और गोलपोस्ट भी होने चाहिए। खिलाडि़यों के पास फुटबाल बूट व पैड का होना भी जरूरी होता है। एक-दो कॉलेज को छोड़ दिया जाए तो कहीं पर भी ये सुविधाएं नहीं हैं। कुलभास्कर डिग्री कॉलेज के कोच डॉक्टर पवन पचौरी ने खुल कर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इंटर कॉलेज हो या डिग्री कॉलेज, फुटबाल खिलाडि़यों को सरकार पर्याप्त सुविधा नहीं दे पा रही है। खेल में बेहतर प्रदर्शन के लिए नियमित व सुविधायुक्त ग्राउंड पर योग्य ट्रेनर द्वारा प्रैक्टिस की जरूरत होती है। बगैर अच्छी प्रैक्टिस के खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रहे।

बाक्स

इन कॉलेजों में होती है प्रैक्टिस

-केपी इंटर कॉलेज ग्राउंड

-एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज ग्राउंड

-बीएचएस ग्राउंड

-बिशप जॉनसन स्कूल एंड कॉलेज

-इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ग्राउंड

-दिल्ली पब्लिक स्कूल ग्राउंड

-केंद्रीय विद्यालय न्यू कैंट ग्राउंड

-टैगोर टाउन पब्लिक स्कूल ग्राउंड

-भारत स्काउट एण्ड गाइड ग्राउंड

-आर्मी स्कूल न्यू कैंट ग्राउंड

-सैमफोर्ड इंटर कॉलेज ग्राउंड

कॉलिंग

मेरा सपना है कि देश का नाम रोशन करूं। सरकारी सुविधाएं कुछ नहीं मिलतीं। ऐसे में हम क्या कर पाएंगे यह पता नहीं है।

-अनिकेत जायसवाल केपी कॉलेज ग्राउंड

ग्राउंड की हालत आप देख ही रहे हैं। सरकार से हमें कोई सुविधाएं नहीं मिलतीं। मैं कई प्रतियोगिताओं में खेल चुका हूं। सुविधा न होने से बहुत मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं।

-सिद्धार्थ पटेल, केपी कॉलेज ग्राउंड

कॉलेज से हमें बॉल और नेट दी गई है। ग्राउंड हमारे कोच व हमने मेहनत करके तैयार कर लिया है। बाकी फुटबाल बूट वगैरह हमें कुछ भी सरकार से नहीं मिलते। कॉलेज से जितना हो सकता है कर रहा है।

मिथलेश पांडेय

एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज ग्राउंड

क्या सरकार नहीं जानती क्या कि वे हम खिलाडि़यों को क्या देती है? लेकिन उसे जब फर्क पड़े तब न। अभी तो एक जुनून है कि मैं एक दिन अच्छा खिलाड़ी बनूंगा सो मेहनत कर रहा हूं।

-सुशील सिंह, एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज ग्राउंड

वर्जन

शहर में कई कॉलेजों के ग्राउंड पर फुटबाल प्रैक्टिस कराई जाती है। लेकिन सुविधाएं नहीं हैं। कॉलेजेस को जो चीजें सरकार से मिलती हैं वे छात्रों को दी जाती हैं। अभाव के बीच जो प्रदर्शन यहां के खिलाड़ी करते हैं, वह सराहनीय है।

-रविंद्र मिश्र, कोच एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज