इलाहाबाद से ही सब कुछ सीखा
1977 से मैं लगातार कुंभ स्नान करने प्रयाग आता रहा हूंप्रयाग ही क्यों हरिद्वार, उज्जैन और नासिक कुंभ में स्नान करने भी मैं जाता हूंमैंने इलाहाबाद से ही सब कुछ सीखा है। 1973 से 1982 तक नाटक संघ से जुड़ा रहानाटककार शरणबली से मिला, उनसे प्रेरणा लीउस समय प्रयाग के रत्न धर्मवीर भारतीया, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा के संपर्क में रहाउनसे काफी कुछ सीखने को मिलाफिर राष्ट्रीय नाटक मंडल में काम करते-करते मुम्बई जा पहुंचावहां संघर्ष करता रहामुम्बई में सब कुछ ठीक थावहां की आबोहवा की बात ही निराली है, कुछ खटकता था तो वहां की लैंग्वेजजाइला, आएला और खायलाइस तरह की बातें मन को ठेस पहुंचाती थी जबकि हमारे इलाहाबाद की मीठी बोली सबके दिलों को छू जाती है

Fame बढ़ाने का मौका मिला
अनुपम श्याम ओझा कहते हैं कि मैं शुरू से चाहता था कि इलाहाबाद की लैंग्वेज को लाइम लाइट में लाया जाए ताकि सभी को हमारी मिठास के बारे में जानकारी हो सके
प्रतिज्ञा सीरियल में मुझे यह मौका मिल गयामैंने इलाहाबाद के बारे में इलाहाबादी लैंग्वेज में सबको बताना शुरू कियासीरियल के माध्यम से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, कटरा, पुराना कटरा, मनमोहन पार्क, ममफोर्डगंज, संगम पर बड़े हनुमान जी, सुलाकी की मिठाई आदि के बारे में अपनी स्क्रिप्ट में लिखता रहाप्रतिज्ञा सीरियल में भले ही सज्जन अनपढ़ है लेकिन उसने अपनी बुलंद आवाज से सबको अपनी ओर अट्रैक्ट किया हैइलाहाबाद के बारे में लोगों को जानने के लिए उत्सुकता पैदा किया

ठाकुर साहब बोलबो
अनुपम बताते हैं कि आज भारत के कोने
-कोने से ही नहीं बल्कि लंदन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों से जब भी कोई फोन करता है तो यही कहता है कि ठाकुर साहब बोलबो कि न बोलबोये तो कुछ भी नहीं हैमैं दावे के साथ कह सकता है कि हमारी लैंग्वेज लोगों की इतनी पंसद आई है कि आज बड़ी बड़ी हस्तियां भी अपने घरों में इसी तरह बोलती हैंसीरियल की कॉपी करते हैंइसमें राज साहब का परिवार हो या गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी का या फिर बिहार के फेमस लीडर लालू यादव हो, सभी लोग अपने घरों में इलाहाबादी लैंग्वेज ही बोलते हैंसबसे फेमस खाना दे बो कि नाई, हम बता दे रहे हैंआदि बोलना अब उनके रूटीन में शामिल हो चुका है

प्रणाम वालेकुम वालेकुम प्रणाम
प्रतिज्ञा सीरियल के बाद हम एक फिल्म में काम कर रहे हैं जो होली के समय तक पूरा हो जाएगा
उम्मीद है कि होली में फिल्म रिलीज भी हो जाएगीइस फिल्म का नाम प्रणाम वालेकुम-वालेकुम प्रणामजैसा कि नाम से ही क्लीयर है कि हिन्दी और मुस्लिम दो धर्मों का मिलन हैइस फिल्म में पालमपुर और आलमपुर दो गांव हैंदोनों गांव में इतनी मित्रता है कि एक गांव में गेहूं की खेती होती है तो दूसरे गांव में चक्की लगी है जहां गेहूं पीसा जाता हैलेकिन गांव में एक सरदार जी के आने के बाद कहानी में ट्वीस्ट आ जाता हैदोनों गांव में लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैंदोनों गांव को मिलने के लिए एक नौटंकी वाले आते हैं जो अपनी नौटकी से गांव वालों का मतभेद दूर करते हैंबाकी स्टोरी आप फिल्म में ही देखना

मैं तो अब यहीं रहना चाहता हूं
अनुपम श्याम कहते हैं मुम्बई मैं रोजगार की तलाश में गया था
आज मैं जो भी कमाता हूं उसे चार लड़कियों की पढ़ाई में खर्च कर देता हूंएक लड़की बीएससी तो दूसरी एमएससी की पढ़ाई कर रही हैंदोनों के परिवार में कुछ ऐसी परिस्थितियां आ गई थीं कि उसकी मां उनकी पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पा रही हैंमैंने दोनों बच्चियों को आज तक देखा भी नहीं है लेकिन उनकी इच्छा पूरी कर रहा हूंअब मैं इलाहाबाद में ही रहना चाहता हूंआप सबका सहयोग चाहिएअगर आप सहयोग करें तो 2014 का लोकसभा का चुनाव लड़कर आपकी सेवा करूं

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