प्रयागराज (ब्यूरो) माघी पूर्णिमा स्नान के बाद रही सही कसर मंगलवार को त्रिजटा स्नान के साथ पूरी हो गई। बड़ी संख्या में रुके हुए कल्पवासी और साधु संत गंगा में डुबकी लगाने के बाद माघ मेला से विदा हो गए। ऐसे में दोपहर में तमाम पांटून पुलों पर घर वापसी के वाहनों की लंबी कतार लग गई। कल्पवासियों की घर वापसी को सुरक्षित रखने के लिए मेला प्रशासन की ओर से रूट प्लान तैयार किया गया था।

क्या है त्रिजटा स्नान का महात्म्य

त्रिजटा स्नान पर संगम में डुबकी लगाने के बाद दान पुण्य करने से यश मिलता है। यह स्नान माघी पूर्णिमा से तीन दिन बाद होता है। यह भी माना जाता है कि त्रिजटा स्नान के बाद ही कल्पवास का पूर्ण फल प्राप्त होता है। यही है कि बड़ी संख्या में कल्पवासी इस स्नान का इंतजार करने के लिए मेला एरिया में रुके रहते हैं। पूर्वा फाल्गुनी व सुकर्मायोग लगने से मंगलवार को त्रिजटा स्नान का आयोजन हुआ। यही कारण है कि कल्पवासी माघी पूर्णिमा स्नान के बाद कल्पवास की पूर्णाहुति करते हैं पर तीन दिन और रुककर स्नान करते हैं। इसके बाद ही संगम क्षेत्र छोड़ते हैं।

महाशिवरात्रि तक रहेगा फन जोन

मंगलवार के बाद कल्पवासी और साधु संत तो नही मिलेंगे लेकिन माघ मेले के परेड स्थित फन जोन महाशिवरात्रि तक लगा रहेगा। जिससे शहर के लोग यहां आकर इंज्वॉय कर सकें। यह भी बता दें कि साधु-सन्त व कल्पवासी माघी पूर्णिमा स्नान के बाद दिशा शूल मानते हैं। कल्पवास के लिये तीन दिन और रुके रहते हैं। वह त्रिजटा स्नान कर मेला क्षेत्र से अपने गन्तव्य को वापस हो जाते हैं। माघ मेला क्षेत्र से कल्पवासियों के वाहनों को आराम से निकलने के लिए मंगलवार को भी रूट निर्धारण किया गया था।

त्रिजटा राक्षसी के नाम पर स्नान

त्रिजटा स्नान की मान्यता त्रेता युग में सीता के पंचवटी प्रवास से की गई है। बताया जाता है कि जब रावण माता सीता को हरण कर ले गया था और पंचवटी में रखा था, तब त्रिजटा नामक राक्षसी को सीता की निगरानी के लिए रखा गया था। लेकिन अपने श्रद्धा और समर्पण भाव से राक्षसी ने मोक्ष प्राप्त कर लिया था। यही कारण है कि मंगलावार को आचार्य बाड़ा और दंडी बाड़ा में रुके संन्यासी गंगा स्नान के बाद रवाना हुए।