थानों व ट्रैफिक पुलिस लाइंस में वर्षों से सड़ रही हैं करोड़ों के कीमत की गाडिय़ां
झूंसी व घूरपुर में बनाए गए डंपिंग यार्ड में भेजे गए हजारों वाहन, फिर भरने लगे थाना परिसर
प्रयागराज (ब्‍यूरो)। जिले में कुल 41 थाने हैं। हर एक थाने के परिसर में खड़ी सैकड़ों गाडिय़ां सड़ रही हैं। केवल थानों में ही नहीं, यह कंडीशन ट्रैफिक लाइंस में भी देखी जा सकती है। थाना परिसरों में कबाड़ हो रही गाडिय़ां का ढेर लग गया था। पकड़ी गई दूसरी गाडिय़ां खड़ी करनी की जगह नहीं थी। यह देखते हुए पुलिस व प्रशासनिक अफसरों द्वारा दिमाग लगाया गया। थानों से सड़ रही गाडिय़ों को हटा कर एक जगह डंप कराने का प्लान बनाया गया। हजारों वाहनों को एक जगह डंप किया जा सके, इतनी बड़ी जगह को तलाशने में पसीने छूट गए। मसले का तोड़ निकालने के लिए अफसरों संग बैठकें हुईं। यह कसरत एक डेढ वर्ष पूर्व की गई थी। निर्णय लिया गया कि एक के बजाय दो जगह इन गाडिय़ों के लिए डंपिंग यार्ड बनाया जाय। मसौदे के अनुरूप झूंसी और घूरपुर इलाके में जगह चिन्हित की गई। इन स्थानों पर थानों में सड़ रही गाडिय़ों को डंप कराने का आदेश अफसरों द्वारा जारी किया गया। आदेश के बाद थानों में वर्षों से खड़े-खड़े कबाड़ हो रही इन गाडिय़ों को उन दोनों डंपिंग यार्ड में खड़ी करा दी गईं। मगर ट्रैफिक पुलिस लाइंस की गाडिय़ां जस की तस आज भी वहीं सड़ रही हैं। बावजूद इसके थानों में खाली हुई जगह फिर ऐसी गाडिय़ों से फुल होने लगी है। वर्षों से डंपिंग यार्ड और थानों के परिसरों में सड़ रही इन गाडिय़ों का पहाड़ बनता जा रहा है।

पुलिस के पास न समय है न इच्छाशक्ति
थानों में सड़ रही इन गाडिय़ों में ज्यादातर विभिन्न कारणों से सीज की गई हैं। विभागीय लोग बताते हैं सीज के अतिरिक्त वह गाडिय़ां भी इनमें यहां सड़ रही हैं जो जहां तहां लावारिश मिली हैं। साथ ही कुछ गाडिय़ां माल मुकदमाती यानी अलग-अलग आपराधिक मुकदमों में पकड़ी गई हैं, और उनका मुकदमा कोर्ट में विचाराधीन है। इन कबाड़ वाहनों में कितनी गाड़ी किस कंडीशन और मुकदमें में हैं यह सवाल विभाग के लिए पसीने छुड़ाने वाला है। क्योंकि इसकी प्रॉपर मानीटरिंग की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। गाडिय़ों को खींच कर लाया गया, रजिस्टर में दर्ज होने के बाद उसे थानों के जिम्मेदार भूल जाते हैं। गाडिय़ों का असली मालिक कौन है यह मालूम करने की सिरदर्दी पालना पुलिस मुनासिब नहीं समझती। क्योंकि लावारिश या बरामद गाडिय़ों के मालिक का पता लगाने और पूछताछ करने में वक्त और लिखा पढ़ी व तलाश काफी करनी पड़ेगी। अब पुलिस के पास थाने पर न तो इतना वक्त है और न ही इच्छाशक्ति। लिहाजा जो मालिक अपनी गाड़ी को पाना भी चाहते हैं उन्हें यह मालूम नहीं चल पाता कि उनकी गाड़ी शाने में पुलिस डंप की है। गाड़ी थाने में है यह जानते हुए भी जो मालिक छुड़ाने नहीं आते उसकी कई वजह हो सकती है। मगर जिन्हें मालूम ही नहीं वह नहीं आ रहे इसके पीछे की बड़ी वजह पुलिस की अनदेखी ही मानी जा रही है।

इसलिए काड़ी में नहीं डाल रहे मूड़

थानों व ट्रैफिक पुलिस लाइंस में कबाड़ हो रही गाडिय़ों की नीलामी के लिए पहले उन्हें धारा व नंबर एवं बरामदगी का ब्योरा छाटना होगा
कौन सी गाड़ी किस विभाग ने कब सीज की या पकड़ी है यह देखकर उस विभाग को पत्र भेजना होगा।
फिर जिस भी विभाग ने गाड़ी सीज की होती है वही महकमा उस गाड़ी की नीलामी के लिए परसू करता है।
सबसे पहले उस गाड़ी को कंडम घोषित कराना होता है, इसकी अथार्टी अलग- अलग होती है
कंडम घोषित होने के बाद संबंधित गाड़ी के बारे में देखना होता है कि वह देश में किसी हिस्से में मुकदमें से सम्बंधित तो नहीं है।
इसके लिए क्राइम रिकार्ड ब्यूरो से परमीशन लेने की जरूरत पड़ती है, यह इतना तो शुरुआती प्रोसीडिंग बताई जाती है
विचाराधीन मुकदमों से सम्बंधित गाडिय़ों की नीलामी के प्रावधान नहीं बताए जाते, लावारिश या सीज की गई ऐसी गाड़ी जिसे वर्षों से कोई पूछ रहा वही नीलाम हो सकती है
तमाम प्रक्रियाओं के बाद आरटीओ या उनकी द्वारा गाड़ी की कीमत निर्धारित की जाती है, इसके लिए बाई चैनल आना पड़ता है
नामित राजस्व अफसर की मौजूदगी में आरटीओ या उनके द्वारा नामित टीम गाडिय़ों की कीमत निर्धारित करती है
कीमत निर्धारण बाद गजट अखबारों में कराना पड़ता है, ताकी बोली लगाने वाले लोग नीलामी लेने के लिए निर्धारित तिथि पहुंचें
जानकार कहते हैं कि चूंकि कंडीशन कबाड़ की हो गई होती है लिहाजा बोली लगाने ज्यादातर कबाड़ी ही आते हैं
कबाड़ी गाड़ी की बोली निर्धारित रेट से काफी कम लगाते हैं, इस तरह की अन्य जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना होता है
यह सारी प्रक्रिया इतनी आसानी पूरी नहीं हो पाती, जिसके चलते कोई भी काड़ी में मूड़ डालना उचित नहीं समझता

नीलामी की प्रक्रिया काफी जटिल है। ट्रैफिक लाइन में ज्यादातर गाडिय़ां आरटीओ या उनके विभाग द्वारा खड़ी कराई गई हैं। इसलिए उनकी नीलामी भी वही करा सकते हैं। प्रक्रिया इतनी लंबी है कि उसे पूरा करने में महीनों लग जाते हैं। यही वजह है कि लोग चाहकर भी नीलाम नहीं कराएंगे।
अमित कुमार, ट्रैफिक इंचार्ज