प्रयागराज ब्यूरो । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत गुजारा भत्ता दिलाने में देरी मानवाधिकार का हनन है। शौहर अपनी तलाकशुदा बीवी को गरिमामय जीवन जीने से वंचित नहीं कर सकता। न्यायिक प्रक्रिया के बहाने पति को पत्नी का शोषण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कानूनी प्रक्रिया न्याय देने में बाधक नहीं बन सकती। प्रक्रियात्मक उलझाव के कारण न्याय रथ का पहिया रुक नहीं सकता। पिछले 21 साल से गुजारा भत्ते के एक भी पैसे का भुगतान नहीं हो पाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इस टिप्पणी के साथ जस्टिस संजय कुमार सिंह ने सहाबी खातून की याचिका मंजूर कर ली है।

फैमिली कोर्ट का निर्णय रद
कोर्ट ने पांच जून 2023 को दिए गए प्रधान न्यायाधीश परिवार अदालत के आदेश को रद कर दिया और 18 दिसंबर 2021 को जारी आदेश को बहाल करते हुए शौहर को एक माह में पूरी बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है। कहा है कि याची पांच हजार रुपये प्रतिमाह की दर से 20 दिसंबर 2002 को अर्जी दायर करने की तिथि से भुगतान करे। आगे भी लगातार पांच हजार रुपये माह की 10 तारीख को जमा करते रहने का शौहर को निर्देश दिया है। आदेश का पालन न करने पर परिवार अदालत को वसूली कार्रवाई करने की छूट दी है तथा पूरे बकाये का भुगतान सुनिश्चित कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा, परिवार अदालत बलिया ने चार बार अंतरिम गुजारा भत्ता देने का एकपक्षीय आदेश दिया। इसे शौहर ने अर्जी देकर वापस कराया। आदेश का पालन नहीं कर शौहर ने न्याय प्रशासन में न केवल अवरोध उत्पन्न किया, वरन न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया। इससे कड़ाई से निपटना चाहिए।

1986 में हुई थी शादी
याची और जमाल खान की 12 जून 1986 को शादी हुई। तीन बच्चे पैदा हुए। शादी के 13 साल बाद मनमुटाव हो गया और शौहर ने तलाक देकर याची को घर से बाहर कर दिया। वह पिता के घर रहने लगी। शौहर ने बच्चों को अपने पास रखा। याची ने दो हजार रुपये गुजारा भत्ते के लिए धारा 125 में अर्जी दी। चार बार एकपक्षीय अंतरिम आदेश हुआ। इसे शौहर की अर्जी पर बार बार वापस ले लिया गया। याची को कोई भुगतान नहीं हुआ। जमाल बंगाल में कोल फील्ड कंपनी में सर्वेयर है और उसका वेतन 96,616 रुपये मासिक है। अदालत ने पांच हजार रुपये प्रतिमाह की दर से 18 दिसंबर 2021 को 12 लाख रुपये बकाया के भुगतान का आदेश दिया। इसका पालन नहीं किया गया तो वसूली वारंट जारी हुआ। परिवार अदालत ने पांच जून 2023 को बतौर हर्जाना 80 हजार रुपये देने का आदेश दिया, इसे हीला-हवाली के बाद जमा किया गया, किंतु याची को एक पैसा नहीं मिला।