नई परंपरा कायम करने को तैयार नहीं माघ मेला प्रशासन,

आसान नहीं है दस हजार वर्गमीटर

जमीन देना

पहली बार मकर स्नान करना चाहता है जूना अखाड़ा

ALLAHABAD:

जूना अखाड़ा को माघ मेला में जमीन मिलना आसान नहीं है। सूत्रों की माने तो प्रशासन ने अखाड़े को जमीन नहीं देने का निर्णय लिया है.अधिकारियों का मानना है कि नई परंपरा पड़ी तो आइंदा के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

पहले से कम है जमीन

इस साल माघ मेले में गंगा की कटान के चलते वैसे भी जमीन की उपलब्धता कम हो गई है। ऐसे में माघ मेले में हर साल आने वाली संस्थाओं और साधु-संन्यासियों को जमीन देना मुश्किल होता जा रहा है। ऊपर से जूना अखाड़े ने मेला प्रशासन को पत्र भेजकर दस हजार वर्गमीटर जमीन की मांग कर दी है। अखाड़ा 2016 उज्जैन सिंहस्थ कुंभ से पहले माघ में मकर स्नान करना चाहता है।

क्यों पीछे हट गया है प्रशासन?

सोर्सेज की मानें तो प्रशासन ने अखाड़े को जमीन नहीं देने का लगभग फैसला कर लिया है। कारण साफ है कि दस हजार वर्गमी जमीन दी गई तो बाकी संस्थाओं की जमीनों में कटौती करनी पड़ेगी, जिससे हंगामा खड़ा हो सकता है। जूना अखाड़े के आने के बाद बाकी अखाड़े भी जमीन की मांग करेंगे। चूंकि मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं, सो नई परंपरा की शुरुआत करने के लिए मेला प्रशासन को काफी कसरत करनी पड़ सकती है। लिहाजा अधिकारियों ने जूना अखाड़े को मना करने का मन बना लिया है।

इतना आसान भी नहीं है मांग ठुकरा देना

हालांकि, अपना फैसला सुनाने में प्रशासन को काफी सोच विचार भी करना पड़ सकता है। अखाड़ों की मांग को ठुकराना कभी भी अधिकारियों के लिए आसान नहीं रहा है। यही कारण है कि सबकुछ जानते हुए भी मेला प्रशासन अपना निर्णय सुनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। जूना अखाड़े की जमीन की मांग के बाद बाकी संस्थाओं में भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। उन्हें पता है कि मेले के लिए जरूरी 1540 बीघा जमीन जुटाना प्रशासन के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। ऐसे में अखाड़े की दावेदारी पक्की हो गई तो उनकी जमीनों में कटौती लगभग निश्चित होगी।

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एक विवाद सुलझाना मुश्किल

हाल ही में जमीन आवंटन को लेकर दंडी स्वामी और तीर्थ-पुरोहितों के बीच उपजे विवाद को सुलझाना मेला प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। गंगा की कटान और रेती का बढ़ जाना भी चिंता का सबब बना हुआ है। विभागों को 31 दिसंबर से पहले अपने काम भी खत्म करने हैं। जिसको लेकर संशय बना हुआ है। इन सबके बीच जूना अखाड़े की मांग पूरी करना प्रशासन के लिए वाकई बहुत बड़ा सवाल बना हुआ है?

वर्जन

अखाड़े ने मेला प्रशासन से जमीन की मांग की है। जिसकी समीक्षा की जा रही है। हालांकि नई परंपरा की शुरुआत करना इतना आसान नहीं है।

हरिओम शर्मा, प्रभारी माघ मेला अधिकारी