प्रयागराज ब्यूरो । कवि की उक्त पंक्ति लोगों को दिल बहलाने के लिए चेहरे बदल कर प्रस्तुति देने वाले उन बहुरुपिये कलाकारों पर ठीक बैठती है जो अपनी खूबियों और कड़ी मशक्कत के बाद इस कला को जिंदा रखे हुए हैं। वे मंच पर विभिन्न आयोजनों के जरिए जहां लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर खूब तालियां बंटारते हैं वहीं इनके चेहरे के पीछे असली जिंदगी का स्याह सच भी है। आय के कोई ठोस साधन नहीं होने से इन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। सरकार की तरफ से मिलने वाले अनुदान पर ही इनका जीवन निर्वाह चलता है। इनमें से एक हैं बहुरूपिया कलाकार महबूब। एनसीजेडसीसी में प्रस्तुति देने आए महबूब से दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर नेे बातचीत की तो इन्होंने अपनी पीड़ा सुनाई। कहा कि इस विलुप्त होती कला को बचाने की जरूरत है। इसका प्रचार-प्रसार नहीं होने से युवा इससे काफी दूर जा रहे हैं। इतना ही नहीं सरकार की तरफ से मिलने वाला अनुदान भी काफी कम होने से इसके प्रति आकर्षण कम होता जा रहा है।

घुमक्कड़ प्रवृत्ति के होते हैं

महबूब पेशे से बहुरूपिया है। उत्तर प्रदेश में इनका जन्म हुआ। यहां से वे राजस्थान में जाकर रहने लगे। महबूब बहुरूपिया जाति से आते है, इसे घुमक्कड़ जाति भी कहते है। महबूब का कहना है कि

बहुरूपिया को घुमक्कड़ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये जगह जगह घूम घूम कर अपनी कला प्रदर्शन कर लोगों का मनोरंजन करते है। ये इसके लिए किसी प्रकार की धनराशि की डिमांड नहीं करते हैं। जो लोगों ने खुशी से जो दे दिया उसे रख लेते हैं। महबूब कहते हैं कि उनकी जेब खाली रहती है फिर भी लोगों को खुशियां बांटते हैं।

भगवान विष्णु है प्रेरणा के स्त्रोत

महबूब की माने तो बहुरूपिया जाति का इतिहास भगवान विष्णु के समय से है। ये जाति भगवान विष्णु को अपना प्रेरणा का स्त्रोत मानती है। जिस प्रकार विष्णु ने कई सारे रूपों को धारण किया था वैसे बहुरूपिया भी कई सारे रूपों को धारण करने की काबिलियत रखता है। बहुरूपिया को नक्काल भी कहते है। नक्काल का अर्थ होता है किसी नकल कर उसे हू ब हू वैसा ही भेस धारण कर लेना।

जयपुर राजघराने में दर्ज हैं इनके पूर्वजों के नाम

महबूब की मानें तो बहुरूपिया का काम

वह पिछले 16 वर्षों से कर रहे है। महबूब का कहना है की ये उनका खानदानी पेशा है। इसे इनके पूर्वज कई वर्षों से करते आ रहे है। इनका दावा है कि इनके पूर्वज जयपुर के राजा जय सिंह के दरबार के राज दरबारी थे। जिस वजह से महबूब के पूर्वजों का नाम जयपुर के राजघराने मे दर्ज है।

मनोरंजन संग देते थे खुफिया जानकारी

महबूब की माने तो राजाओं के दरबार में बहुरूपिये भी मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। ये जगह जगह घूम घूम कर लोगों का मनोरंजन किया करते थे। भेष बदलकर

राजा के लिए गुप्तचर का काम करते थे। राजा को अपने राज्य की जानकारी लेनी होती थी या फिर दुश्मनों की रेकी। इन सभी के लिए बहुरुपियों का इस्तेमाल किया जाता था। चंूकि ये रूप बदलने में माहिर हुआ करते थे इसलिए इन्हें पहचान पाना भी मुश्किल होता था। इन्हें कोई पकड़ नहीं पाता था और राज्य की सारी खुफिया जानकारी राजा तक इनके माध्यम से पहुंच जाती थी।

सरकारी अनुदान काफी नहीं

बहुरूपिया एक कला है। इस कला को जीवंत रखने के लिए सरकार कलाकारों को 800 रूपए प्रतिदिन का अनुदान प्रदान करती है। महबूब कहते है कि इस सरकारी अनुदान में उनके परिवार का खर्च नही चल पाता है। आजीविका चलाने के लिए उन्हें अन्य कई काम करने पड़ते हैं। महबूब गदर वन मे काम सहायक कलाकार का किरदार भी निभा चुके है।

घूम-घूम कर करते हैं प्रदर्शन

ये अलग-अलग जगहों-जगहों पर जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। कोई ठोस इनकम नहीं होने से घर भी नहीं बना सके।

घर न होने के चलते इनके बच्चे पढ़ नहीं पाते है और मजबूरन उन्हें बहुरूपिया का काम करना पड़ता है। यही उनके कमाई का एक मात्र जरिया रह जाता है।