प्रयागराज (ब्‍यूरो)। यह संकेत देता है कि आईटी एक्सपर्ट का यूज माफिया न सिर्फ समझते हैं बल्कि उसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। उमेश पाल हत्याकांड की तफ्तीश के दौरान पुलिस के साइबर सेल को तमाम ऐसी जानकारियां मिली हैं, जिनके बारे में उन्हें पहले से कुछ भी पता नहीं था। अभी तक सिस्टम की आईपी तक पहुंचने के लिए सिर खपाने वाली पुलिस की आईटी टीम के सामने नया चैलेंज आकर खड़ा हो गया है। इस प्राब्लम से निबटना शायद उनके लिए बड़ी बात नहीं होगी। प्राब्लम यह है कि जिस सिस्टम से उन्हें माफिया के नेक्सस और उनके आईटी सेल तक पहुंचना है, वह खुद ही हांफ रहा है। फिलहाल तो साइबर सेल सिस्टम की जंग ही लड़ रहा है। एक और बड़ी समस्या यह है कि वह इस पर खुलकर कुछ बोल भी नहीं सकते। ऐसा करने पर वह विभाग में ही अफसरों की नजर में चढ़ जाएंगे।

टेक्नोलॉजी का खूब हुआ है यूज
उमेश पाल हत्याकांड के बाद जो तथ्य सामने आए हैं, उससे संकेत मिलते हैं कि इस कांड की योजना काफी पहले तैयार कर ली गयी थी। काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए ग्राउंड टीम तैयार की जा रही थी तो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने वाले एक्सपट्र्स यह मैनेज करने में लगे थे कि कैसे लोकेशन में ही पुलिस को घुमा दिया जाय। शुक्रवार को तीन नये तथ्य सामने आये थे। पहला था फेस टाइम एप का इस्तेमाल किया जाना। इस एप का डिटेल निकालने के लिए साइबर सेल को लगाया गया तो पता चला कि यह ऐसा एप है जिस पर होने वाली कोई भी गतिविधि तभी तक एक्टिव रहती है जब तक की एप पर रजिस्टर्ड कराये गये फेस मोबाइल के सामने होते हैं। चेहरा हटने के साथ ही एप आटोमेटिकल डीएक्टिव हो जाता है। माफिया की आईटी सेल हाल के कुछ सालों में बनी मूवीज से भी आइडिया लेने में पीछे नहीं थी। शायद यही कारण था कि घटना के दिन यानी 24 फरवरी को अतीक के बेटे असर के एटीएम से लखनऊ में ट्रांजैक्शन कराया गया। उसका मोबाइल भी लखनऊ में रखा गया ताकि पुलिस लोकेशन की ट्रैकिंग करते तो वह स्पॉट पर दिखे ही नहीं। यह प्लान इसलिए फेल हो गया क्योंकि असद खुद गाड़ी से निकलकर बाहर आ गया और फायरिंग करने लगा। इससे उसका चेहरा सीसीटीवी में कैद हो गया। जबकि, शायद प्लान में उसे गाड़ी से उतरना नहीं था। उसकी जिम्मेदारी गाड़ी में बैठे रहते हुए फेस टाइम एप के जरिए सबकुछ लाइव करना था। इसे देखने वाला कौन था? यह पता लगाना भी साइबर सेल के लिए टेढ़ी खीर हो गया है।

पुलिस की तीन टीमें कर रही काम
अपराधियों द्वारा हाईटेक एप व टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करता देख पुलिस अफसरों ने सर्विलांस व आईटी सेल के साथ साइबर एक्सपर्ट की टीम को अतीक गैंग पर नजर रखने व ब्योरा निकालने की जिम्मेदारी सौंपी है। इन टीमों को बिना संसाधनों के ही नजर रखने व ब्योरा निकालने में लगा दिया गया है। टीम पूरी तरह से अपने आपको अपंग महसूस कर रही है। इन्हें नए एप व हाईटेक टेक्नोलॉजी तक के बारे में जानकारी नहीं है। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने अपने स्तर पर एप के बारे में जानकारी जुटाई तो कई चीजें चौकाने वाली समाने आई।

सर्विलांस के भरोसे हो रहा वर्क
दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की टीम ने जब आईटी सेल से लेकर साइबर एक्सपर्ट से बातचीत की तो कई चीजें निकल कर सामने आई। रिपोर्ट से नाम न छापने की शर्तें पर कुछ पुलिस कर्मियों ने बताया कि उनके पास कोई हाईटेक सिस्टम, टेक्नोलॉजी या सॉफ्टवेयर तक नहीं है। सर्विलांस के भरोसे पूरा वर्क हो रहा है। नंबरों के आधार पर लोकेशन व लोगों की एक दूसरे से कनेक्टिविटी चेक की जा रही है। घटना के वक्त जिस फेसटाइम एप का इस्तेमाल किया गया था। उस एप तक के बारे में किसी भी पुलिसकर्मी को मालूम नहीं है। उस एप का लोकेशन व किस-किस मोबाइल फोन पर इस्तेमाल हो रहा था। यह तक पता नहीं कर पा रही है।

क्या बला है फेसटाइम एप
इस एप को सिर्फ आई फोन पर डाउनलोड किया जा सकता है। यह एंड्रायड फोन के लिए नहीं है।
इस पर रजिस्टर करने के लिए फेस स्कैन कराया जाता है। वही फेस दिखने पर यह एप काम करता है
इसे एप की यूजर आईडी और पासवर्ड में अपडेट होना अनिवार्य है
इस एप पर एक साथ अधिकतम 27 लोग कनेक्ट हो सकते हैं।
खास बात यह भी है कि कोई बाहरी व्यक्ति एप के जरिए कॉल करके किसी को ट्रैक करने की कोशिश करे तो सफल नहीं होगा क्योंकि उसकी कॉल सामने वाले के सिस्टम पर उसी तरह रिफलेक्ट होगी जैसा सिंगल यूज के समय होती है।
एप तभी तक काम करेगा जब तक रजिस्टर्ड व्यक्ति आईफोन के कैमरे के सामने मौजूद होगा
रजिस्टर्ड फेस के हटते ही एप आटोमेटिकली काम करना बंद कर देता है
यह एप फ्री ऑफ कास्ट नहीं है। एप डाउनलोड करने के बाद जो टर्म एंड कंडीशन दिखायी देती है उसके मुताबिक चार्ज अलग अलग मॉडल के साथ अलग अलग हो सकता है।
इस एप को 15 जुलाई 2022 को लास्ट अपडेट किया गया है। अपडेट करने वाला इंडियन ही है।
इस एप को वाईफाई से कनेक्ट किया जाता है तो आईपी एड्रेस वही शो करेगा जो वाईफाई के लिए रजिस्टर्ड यूजर का दिखायेगा
यानी जिस मोबाइल पर डाटा यूज किया जा रहा है उसका आईपी एड्रेस शो नहीं होगा

असद के फोन से मिली है डिटेल
प्रयागराज पुलिस का कहना है कि लखनऊ पुलिस ने जब असद के लखनऊ फ्लैट स्थित आईफोन मिला तो एक नए एप के बारे में जानकारी हुई। उस एप का नाम था फेसटाइम। यह एप बिल्कुल सुरक्षित बताया जाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ आईफोन पर किया जा सकता है। इस एप में फेसटाइम के साथ व्यक्ति जुड़ता है। फेस हटते ही वीडियो कॉल डिस्कनेक्ट हो जाता है। फिर से फेस आते ही वीडियो कॉल ऑन हो जाती है। इस एप का इस्तेमाल करते वक्त लोकेशन तक शो नहीं करता। ऐसे में इस एप से होने वाले वीडियो कॉल का रिकॉर्ड निकाला पुलिस के लिए चैलेंज बन गया है।

सूत्र बताते हैं कि घटना में इस्तेमाल हुए गाड़ी में असद व उसका एक दोस्त इसी एप के जरिए वीडियो कॉल पर थे। जब एक शूटर ने गोली मारी तो उमेश पाल गिर गया। उसके बाद अचानक से उठकर भागने लगा। यह देख असद घबरा गया। उसको लगा उमेश बच जाएगा। वीडियो कॉल पर जुड़े अन्य लोग कुछ कमांड देते है। तब तक वह कार से कूद कर खुद ही मैदान में उतर गया। वह उतरते ही गोली चलाने लगा। इतने देर में फेसटाइम एप वीडियो कॉल डिस्कनेक्ट हो गया। जब वह वापस आकर क्रेट कार में बैठा, तब फिर वीडियो कॉल कनेक्ट हो गया। वीडियो कॉल पर जुड़े उधर से आवाज आती है कि तुमको उतरना नहीं था।

मेल का होता है सहारा
साइबर सेल के एक्सपर्ट की माने तो कोई साइबर की घटना होती है तो उनके पास सिर्फ बैंक को मेल करने के अलावा कोई सहारा नहीं होता है। यहां तक कि मोबाइल का आईपी एड्रेस तक ट्रेस नहीं कर पाते है। वह सारे हाईटेक टेक्नोलॉजी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। बैंक ने समय पर मेल देखकर जवाब दे दिया तो पीडि़त का पैसा दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर हो जाने से बच जाता है। पैसे को वहीं होल्ड कर दिया जाता है। उसी पैसे को वापस पीडि़त के अकाउंट में मांगवाया जाता है।