प्रयागराज ब्यूरो । इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक महाविद्यालय ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के दर्शन शास्त्र विभाग की तरफ़ से आयोजित 'दर्शन और साहित्यÓ विषयक एकल व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता आलोचक डॉ। कुमार वीरेंद्र ने दर्शन और साहित्य के रिश्ते पर विस्तारपूर्वक बात की। उन्होंने कहा दर्शन और साहित्य का रिश्ता समन्वय का रिश्ता है। निराशा के आवरण को तोडऩे का काम मृत्यु नहीं ज्ञान करता है। इस बहाने कुंवर नारायण के आत्मजयी का जिक्र 'साहित्य और दर्शनÓ के संबंध को रेखांकित करते हुए उन्होंने बताया कि दोनों में बुनियादी अंतर स्व और पर का है। असहमति को अवसर देना साहित्य का बुनियादी प्रश्न है।
असहमति से ही बुद्धि का सर ऊंचा होगा
असहमति के अवसर से ही बुद्धि सर ऊंचा कर सकती है, सवाल कर सकती है। कविता में मैं नहीं, दर्शन में मैं का प्रभुत्व है। मैं पन का निषेध करता है साहित्य। इस बहाने निराला के अधिवास कविता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बुद्ध का पूरा दर्शन ही दु:ख की जमीं पर अंकुरित है। विज्ञान के निष्कर्ष प्राय: एक रेखीय होते हैं जबकि दर्शन और साहित्य के निष्कर्ष बहुरेखीय होते हैं। वक्रता दर्शन के बजाय साहित्य में अधिक है। इतिहास और साहित्य के रिश्ते को भी स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा इतिहास घटित को दिखाता है, साहित्य घटमान को दिखाता है। छांदोग्य उपनिषद के हवाले स्वेतकेतु के महत्वपूर्ण संवाद जिसमे मन के अन्न से निर्मित का जिक्र भी किया। साथ ही अन्य विभिन्न उदाहरणों के माफऱ्त दर्शन और इतिहास के अंतर्संबंध को रेखांकित किया। संचालन और धन्यवाद ज्ञापन डॉ। अमिता पांडेय ने किया। डॉ। कृपा किंजलकम, डॉ। विकास, अवनीश यादव, संकट मोचन आर्य, रीमा यादव , जगत कुमार मौर्य सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।