प्रयागराज ब्यूरो । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कोविड-19 के समय हमने भयावह दृश्य देखा। जब शव दाह की समुचित व्यवस्था और सुविधाओं की किल्लत थी। आज भी शवदाह गृहों की स्थिति दयनीय है। हर दिन जनसंख्या बढ़ रही है और शवदाह केंद्रों में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आम लोग जीवन भर संघर्ष करते हैं और अंतिम सांस छोडऩे के बाद उनके शवदाह में बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं। कोर्ट ने टिप्पणी की कि हम एक ट्रिलियन की इकोनामी बन गये हैं, लेकिन कॉमनमैन के अंतिम संस्कार की समुचित व्यवस्था करने में नाकाम हैं।

दो जजों की बेंच कर रही सुनवाई

यह टिप्पणी जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने राजेंद्र कुमार वाजपेयी की याचिका की सुनवाई करने के दौरान की। बेंच ने सरकार को शवदाह केंद्रों की दशा सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 18 जनवरी नियत करते हुए अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी को आदेश की जानकारी अपर मुख्य सचिव, शहरी विकास विभाग व पंचायत राज विभाग सहित मुख्य सचिव को देने के लिए कहा है। कोर्ट के 20 नवंबर 2023 के आदेश पर सचिव, नगर विकास विभाग ने विस्तृत हलफनामा दिया।

नगर निकायों को बनाया पक्षकार

जिलाधिकारी कानपुर नगर ने भी हलफनामा दाखिल कर बताया कि एसडीएम सदर के मौका मुआयना के बाद शवदाह गृह में सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। नगर निकायों को विद्युत शवदाह गृहों के रखरखाव व विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वर्ष 2018-19 में 42.62 लाख रुपये प्रत्येक नगर पालिका परिषद व 28.79 लाख रुपये प्रत्येक नगर पंचायत को बजट दिया गया है। इससे शवदाह स्थलों पर पानी, बिजली, पार्किंग शेड आदि व्यवस्था की जानी है। अपर महाधिवक्ता ने कहा, 'नगर पालिका एक्ट की धारा 114 (20) के तहत शवदाह गृहों के रखरखाव व विकास की जिम्मेदारी स्वायत्त स्थानीय निकायों की है। ग्रामीण क्षेत्रों की जिम्मेदारी पंचायत राज विभाग की है। नगर विकास विभाग का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है.Ó इस जानकारी पर कोर्ट ने दोनों विभागों के अपर मुख्य सचिवों को याचिका में पक्षकार बना दिया। साथ ही कृत कार्यवाही की जानकारी मांग ली।