-हॉस्पिटल में आने वाले दमा के मरीजों की संख्या 60 प्रतिशत तक बढ़ी

-आतिशबाजी ने बढ़ाया प्रदूषण, घरों में कैद हुए दमा पीडि़त

>BAREILLY

दीपोत्सव का त्योहार दमा और त्वचा रोग पीडि़त पेशेंट के लिए मुसीबत लेकर आया। आतिशबाजी के बाद बढ़े वायु प्रदूषण ने उन्हें घर में कैद होने पर मजबूर कर दिया। इसके साथ ही कॉर्बनडाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने पर उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई। त्वचा पीडि़त मरीजों को बढ़े प्रदूषण के कारण जलन की समस्या महसूस हुई। वहीं, हॉस्टिपल्स में दमा पीडि़त मरीजों के आने का ग्राफ तेजी से ऊपर बढ़ा। डॉक्टर्स के मुताबिक रोजाना के मुकाबले करीब 60 प्रतिशत पेशेंट जिले भर के अस्पतालों में गए। इसके अलावा करीब एक दर्जन पेशेंट आतिशबाजी करते वक्त झुलस गए, जो उपचार के लिए अलग-अलग अस्पताल आए।

प्रशासन था अलर्ट

दिवाली के मौके पर करीब 10 करोड़ के पटाखे फोड़े गए। दिवाली के मौके पर जैसे ही आतिशबाजी शुरू हुई, वैसे-वैसे वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगी। इसके साथ ही ध्वनि प्रदूषण और बारूद गंध हवा में बढ़ने लगी। जिस कारण दमा पीडि़त मरीजों को सांस लेने में प्रॉब्लम महसूस होने लगी। दमा पीडि़त मरीजों ने समस्या से बचने के लिए घरों में कैद होने में ही भलाई समझी। लेकिन जब बात नहीं बनीं, तो वह उपचार के लिए शहर के अलग-अलग अस्पताल में गए। वहीं, प्रशासन भी पहले से अलर्ट था। उसने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन को हर स्थिति से निपटने के निर्देश दिए थे। डीएम पंकज यादव के आदेश पर सीएमओ डॉ। विजय यादव ने बर्न वार्ड में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स तैनात किए थे। इसके अलावा प्राइवेट हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने दिवाली के मौके पर होने वाले हादसों के शिकार पेशेंट के लिए स्पेशल तैयारी की थी।

60 प्रतिशत बढ़े मरीज

डॉ। सर्वेश गिरि ने बताया संडे और मंडे को दमा और त्वचा पीडि़त मरीजों की संख्या में रोजाना के मुकाबले 60 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई। रोजाना जहां पांच से छह दमा के मरीज इलाज के लिए आते थे। वहीं, संडे और मंडे को 10-12 पेशेंट उपचार के लिए आए।