- रुहेला सरदारों की शख्सियत को बयान करती हैं ऐतिहासिक इमारतें

- रुहेलखंड की राजधानी थी बरेली, जहां से बजा था क्रांति का बिगुल

>BAREILLY: 'क्षत्रिय एकता का बिगुल फूंक, सब धुंधला धुंधला छंटने दो, हो अखंड भारत के राजपुत्र, खंड खंड में न सबको बंटने दो' ये पंक्तियां रोहिला सरदारों की शख्सियत बखान करती हैं। रुहेलखंड के बारे में जानते तो सब हैं कि लेकिन इसकी गौरव गाथा से शायद ही कोई परिचित हो। वर्ष 1702 से 1720 तक रोहिलखंड में रोहिले राजपूतों का शासन था। जिसकी राजधानी बरेली थी। जिसकी छाप दिखाई देती है बरेली में बनाए गई ऐतिहासिक इमारतों में। जो आज भी अनगिनत वीर गाथाओं को खुद में समेटे गर्व से अमिट छाप छोड़ रही हैं। पितृपक्ष के दूसरे दिन आई नेक्स्ट आपको बरेली के रोहिला सरदारों के अदम्य साहस और शौर्य गाथा से आपको परिचित कराएगा।

इमारतों में कैद वीर गाथाएं

मध्यकालीन भारत में राजपूत लड़ाकों को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया था। रोहिला साम्राज्य 19वीं शताब्दी में इस्लामिक दबाव के बाद स्थापित हुआ। मुसलमानों ने इसे उर्दू में रुहेलखंड कहा। रोहिले राजपूतों के महान शासक राजा इन्द्रगिरी ने रोहिलखंड की पश्चिमी सीमा पर रोहिला किला बनवाया था। रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह का किला, रानी तारादेवी सती का मंदिर, सतियों का मंदिर समेत बरेली की लाल कोठी और पीली कोठी का भी नाम जुड़ा हुआ है। क्योंकि रोहिलखंड की सीमा बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी। इसी सीमा रेखा के बीच में बरेली में भी कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण हुआ था।

रूहेला सरदार की वीरगाथाओं का प्रमाण ऐतिहासिक इमारतों में झलकता है। जो कौमी एकता और सद्भावना की पैरवी करता हैं। जिसकी शुरुआत रुहेला सरदार हाफिज रहमत खान के शासनकाल से हुई थी। 1857 में शहीद क्रांतिकारी खान बहादुर खान उन्हीं के वंशजों में थे।

सुधीर विद्यार्थी, लेखक