डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में एमडीआर वार्ड में पिछले दो महीने में 3 मरीज लौट गए

खुद के लिए ही नहीं, बाकियों के लिए भी इंफेक्शन के लिहाज से बड़ा खतरा

>BAREILLY:

बेशक, डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पूरे बरेली मंडल के मरीजों के लिए इलाज की बड़ी उम्मीद हो, लेकिन बिगड़ी टीबी यानि एमडीआर के मरीज यहां इलाज कराने के दौरान भागने की फिराक में जुटे हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के सेंकेंड कैंपस में बने एमडीआर वार्ड में बरेली मंडल के मरीजों के इलाज की व्यवस्था के लिए एमडीआर वार्ड बनाया गया है। पिछले 2 महीने में 4 मरीज बीच में इलाज छोड़कर वार्ड से गायब हो गए थे हालांकि एक एमडीआर मरीज को वार्ड के स्टाफ समझा बुझाकर वापस वार्ड लाने में कामयाब रहे। एमडीआर मरीजों के बीच में ही अधूरे इलाज को छोड़कर जाने से न सिर्फ उनकी जान को बल्कि उनके संपर्क में आने वाले हेल्दी लोगों को भी बड़ा ख्ातरा है।

18 बेड, सिर्फ 8 मरीज

बरेली मंडल में एमडीआर टीबी के मरीजों के इलाज की कोई व्यवस्था न होने से पहले इन्हें लखनऊ रेफर कर दिया जाता था। अगस्त में पूर्व राज्य मंत्री भगवत सरन गंगवार ने हॉस्पिटल में 18 लाख की लागत से बने एमडीआर वार्ड का उद्घाटन कर बरेली में ही जानलेवा एमडीआर बीमारी के पुख्ता इलाज की व्यवस्था की। हॉस्पिटल के आइसोलेशन वार्ड को बनाए गए एमडीआर वार्ड में 18 बेड की व्यवस्था है। वहीं करीब 80 लाख की लागत वाली सीबी नॉड मशीन से मरीज में एमडीआर की जांच की जाती है। एमडीआर वार्ड में इलाज से कतराने वाले मरीजों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि हर महीने बरेली में 40-50 मरीज डायग्नोज किए जाते हैं, लेकिन मौजूदा समय में 18 बेड वाले वार्ड में महज 8 ही मरीज इलाज करा रहे हैं।

लंबे इलाज का डर हावी

एमडीआर के मरीज को वार्ड में कम से कम 5-7 दिन तक एडमिट रखा जाता है। ज्यादा गंभीर मामलों में मरीज को वार्ड में रोकने की मियाद भी बढ़ जाती है। शुरुआती 40 दिन तक एमडीआर मरीजों की रेगुलर मॉनीटरिंग किए जाने की कवायद जरूरी है। जिससे इलाज में कोई लापरवाही न हो। एक्सपर्ट के मुताबिक एमडीआर के मरीज का रेगुलर इलाज 6 महीने से ज्यादा तक खिंच जाता है। दरअसल यही मरीज के भागने और एमडीआर के इलाज के लिए न आने की बड़ी वजह है। लंबे समय तक हार्ड दवाएं खाने की मजबूरी मरीजों से डरकर अक्सर मरीज पहले तो वार्ड में आते ही नहीं और अगर आ भी जाएं, तो जल्द जाने की फिराक में रहते हैं।

क्या है एमडीआर बीमारी

मल्टी ड्रग रजिजस्टेंस या एमडीआर टीबी की बीमारी का ही एक बिगड़ा रूप है। यह ऐसी बीमारी है, जिसमें टीबी के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएं मरीज के इलाज में काम नहीं आती। वजह टीबी के पूरी तरह से इलाज के लिए तय समय का एक कोर्स होता है। बीमारी की गंभीरता को देखते हुए अमूमन यह समय तीन महीने से 9 महीने तक होता है, लेकिन कई बार इलाज के कुछ हफ्तों या महीनों बाद ही अच्छा महसूस करने पर मरीज दवाएं लेना बंद कर देते हैं। इससे बीमारी के लिए दी जा रही एंटी बायोटिक का असर खत्म हो जाता है। साथ बीमारी पर इन दवाओं का असर भी खत्म हो जाता है। टीबी के बिगड़ा रूप ही एमडीआर बन जाता है। जिससे टीबी की कई दवाएं असर नहीं करती और मरीज की जान को खतरा हो जाता है।

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एमडीआर के मरीज इलाज कराने से कतराते हैं। कई बार समझाने के बावजूद मरीज इलाज के नहीं आते। एडमिट होते हैं, तो जल्द जाने की कोशिश में रहते हैं। ऐसे मरीजों की काउंसलिंग की जाती है।

- डॉ। डीपी शर्मा, एक्टिंग सीएमएस