-कोतवाली से संबंधित मजिस्ट्रेट के यहां बयान लेने के लिए भेजा गया था मेमो

-एसीएम सेकंड के छुट्टी होने के बाद एसीएम फ‌र्स्ट के पास भेजा गया था मेमो

BAREILLY: बर्न पेशेंट के अंतिम बयान बेहद अहम होते हैं। बरेली के प्रशासनिक अधिकारियों के लिए शायद यह बात मायने नहीं रखती। यही वजह है कि बर्न पीडि़ता का बयान लेने के लिए कटा मेमो शाम सवा 5 बजे से पूरी रात एक अफसर के आवास से दूसरे अफसर के यहां मूव करता रहा, लेकिन कहीं रिसीव नहीं हो सका। करीब 12 घंटे बाद मंडे सुबह मेमो एसीएम फ‌र्स्ट के यहां रिसीव हुआ। तब कहीं जाकर बयान हो सका। गनीमत रही महिला कम झुलसी थी, नहीं तो यह लापरवाही भारी पड़ जाती।

बंटवारे को लेकर विवाद

65 वर्षीय बसंती कन्हैया टोला किला में रहती है। उसके दो बेटे हरीशंकर और अंकित है। हरीशंकर, प्रेमनगर एरिया स्थित एक हॉस्पिटल में काम करता है। हरीशंकर की पत्‍‌नी ने बताया कि अंकित अक्सर बंटवारे को लेकर झगड़ा करता रहता है। वह कई बार मां के साथ मारपीट कर चुका है। आधा दर्जन से अधिक बार कपड़ों में भी आग लगा चुका है। एक दिन उसने मां का गला भी दबाने की कोशिश की थी। शिकायत करने पर पुलिस पकड़कर ले गई थी, लेकिन घरेलू मामला होने के चलते हरीशंकर ही उसे छुड़ाकर लाए थे।

बेटे पर लगा आरोप

हरीशंकर की पत्‍‌नी ने बताया कि अंकित ने संडे दोपहर बाद को बंटवारे के झगड़े को लेकर कपड़ों में आग लगा दी। उसके बाद उसने मां को धक्का दे दिया जिससे मां जल गई। मां को हरीशंकर ने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में एडमिट कराया। मेमो के मुताबिक बसंती को संडे दोपहर बाद 4 बजकर 40 मिनट पर हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। हॉस्पिटल में हरीशंकर ने एडमिट कराया। इसमें डॉक्टर ने मेमो में दिए गए कॉलम में लिखा कि कृपया मजिस्ट्रेट द्वारा मृत्यु पूर्व बयान नोट कराने का प्रबंध करें। जिसके बाद मेमो डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से बार्ड ब्वॉय पंकज सैनी लेकर पहुंचा।

शाम को चला, सुबह रिसीव

कोतवाली से होमगार्ड दिनेश कुमार, 5 बजकर 15 मिनट पर मेमो लेकर रवाना हुआ। वह रोस्टर के तहत एसीएम सेकंड के आवास पर मेमो लेकर पहुंचा, लेकिन यहां पर मेमो रिसीव करने से इनकार कर दिया गया, जिसके बाद वह लिंक अफसर एसीएम फ‌र्स्ट के आवास पर पहुंचा तो यहां भी मेमो रिसीव नहीं किया गया। उसके बाद वह कोतवाली लौटकर आ गया। जब दोनों जगह मेमो रिसीव नहीं किया गया, तो होमगार्ड को एडीएम सिटी के आवास पर भेजा गया। यहां से एसीएम फ‌र्स्ट को मेमो रिसीव करने के निर्देश दिए गए, लेकिन इसमें भी रात बीत गई और मंडे सुबह जाकर मेमो रिसीव किया गया। उसके बाद मजिस्ट्रेट ने जाकर बयान लिए। झुलसी महिला ने पुलिस को बताया कि उसका बेटा झगड़ा कर रहा था और घर में आग लगाने की धमकी दे रहा था, रोज-रोज की किचकिच से आजिज आकर मैंने खुद आग लगा ली थी।

इस वजह से बताई गई देरी

जब इस बारे में प्रशासनिक अधिकारियों से पूछा गया कि तो बताया गया कि एसीएम सेकंड छुट्टी पर गए हुए थे। इस बारे में लिंक अफसर एसीएम फ‌र्स्ट को जानकारी नहीं थी तो उनके यहां से एसीएम सेकंड के यहां भी मेमो रिसीव करने के लिए भेजा गया। जब पता चला कि एसीएम सेकेंड छुट्टी पर हैं तो फिर एसीएम फ‌र्स्ट को ही मेमो रिसीव कराकर बयान कराए गए हैं। संबंधित मजिस्ट्रेट की रोस्टर के हिसाब से ड्यूटी लगी हुई है और मजिस्ट्रेट बयान लेने जाते हैं।

पुलिस ने शुरू की जांच

रात में किला पुलिस को इस संबंध में जानकारी दी गई। किला पुलिस मौके पर पहुंची तो पता चला कि सभी परिवार हॉस्पिटल में हैं। उसके बाद किला पुलिस ने हॉस्पिटल में जाकर पूछताछ की। पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है।

पुलिस भी करती है लापरवाही

मजिस्ट्रेट के अलावा पहले थाना लेवल पर भी मेमो पर एक्शन लेने में लापरवाही बरती जाती है। कई बार शिकायतें मिलती हैं कि थाने में मौजूद पुलिसकर्मी ने मेमो रिसीव करने से इनकार कर दिया। मेमो पर डॉक्टर इस बात को लिख भी देते हैं। कई बार थाने में मेमो रिसीव तो कर लिया जाता है, लेकिन संबंधित थाना को जानकारी देर से दी जाती है, जिसकी वजह से कई बार छोटी वारदात, बड़ी वारदात का रूप ले लेती है। पुलिस अधिकतर जहरखुरानी के केस में ऐसा ही करती है। मेमो रिसीव करने के बाद किसी को सूचना नहीं दी जाती है, क्योंकि वारदात स्थल दूसरे डिस्ट्रिक्ट एरिया में होती है। इसी वजह से न तो एफआईआर होती है और न ही कभी जहरखुरान पकड़े जाते हैं।

मेमो रोस्टर के तहत एसीएम सेकंड के पास भेजा गया था। एसीएम सेकंड के छुट्टी होने पर एसीएम फ‌र्स्ट के पास भेजा गया, लेकिन उन्हें एसीएम सेकंड के छुट्टी पर जाने की जानकारी नहीं थी। मेरे पास मामला आया तो फिर एसीएम फ‌र्स्ट को निर्देश देकर मेमो रिसीव करा दिया गया।

ओपी वर्मा, एडीएम सिटी